राजपथ - जनपथ
कुछ करने की हिम्मत क्यों नहीं?
बिलासपुर विधायक शैलेष पाण्डेय से बदतमीजी का मामला पीसीसी के लिए गले की फांस बन गया है। पीसीसी ने जांच के लिए कमेटी बिठाई थी। कमेटी ने विधायक के साथ बदतमीजी की पुष्टि की है, और इसके लिए ब्लॉक अध्यक्ष तैय्यब हुसैन को जिम्मेदार ठहराया है। कार्रवाई का आधार घटना के बाद ब्लॉक अध्यक्ष द्वारा मीडिया पर दिए गए बयान को बनाया गया। जिनमें से एक वाक्य को खास तौर पर आपत्तिजनक माना गया जिसमें उन्होंने कहा कि- हमारे विधायक, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से ज्यादा ड्रामेबाज हैं। रिपोर्ट तो पीसीसी चीफ मोहन मरकाम को दे दी गई है, लेकिन रिपोर्ट पर कार्रवाई अपेक्षित है। कहा जा रहा था कि वर्धा से लौटने के बाद पीसीसी चीफ कार्रवाई करेंगे, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ।
पीसीसी चीफ ने सिर्फ इतना ही कहा है कि रिपोर्ट का अध्ययन किया जा रहा है। बहरहाल, रिपोर्ट की भनक मिलते ही विधायक विरोधी खेमा भी सक्रिय हो गया है और कोशिश कर रहा है कि ब्लॉक अध्यक्ष को कार्रवाई से बचा लिया जाये। विरोधी खेमे की तरफ से यह आरोप भी लगाया गया कि विवाद को विधायक कम्यूनल कलर देने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी तरफ यह भी हुआ है कि ब्लॉक अध्यक्ष के समाज के कुछ लोगों ने एक बैठक कर उन पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं करने की मांग की है। विरोधियों के दबाव के चलते ब्लॉक अध्यक्ष पर कार्रवाई नहीं हो पा रही है। मगर रिपोर्ट तो आ गई है, और इस पर कुछ न कुछ कार्रवाई होना जरूरी है।
ऐसे में अब बीच का रास्ता निकाला जा रहा है, कि रिपोर्ट पर कार्रवाई टालने के लिए हाईकमान से मार्गदर्शन लेने का फैसला लिया जा सकता है। ये अलग बात है कि अंतागढ़ कांड उजागर होने के बाद पीसीसी ने उस समय मरवाही के विधायक अमित जोगी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था, और पूर्व सीएम अजीत जोगी के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई कर दी थी। तब हाईकमान से पूछा तक नहीं गया था। अब विधायक के साथ बदतमीजी के मामले को कार्रवाई में आनाकानी पर सवाल तो खड़े हो रहे हैं।
समन्वयक उम्मीद से
विधानसभा चुनाव से पहले सभी विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस ने समन्वयक बनाए थे, और उन्हें चुनाव प्रचार खत्म होने तक इलाके में डटे रहने के लिए निर्देशित किया गया था। यह भी भरोसा दिलाया गया था कि पार्टी की सरकार बनने पर सबको कुछ न कुछ दिया जाएगा। विधानसभा समन्वयकों ने प्रत्याशी चयन से लेकर चुनाव प्रचार में पूरा योगदान दिया। अब सरकार बन गई है, तो वे उम्मीद से हैं।
निगम-मंडलों की एक सूची जारी हो गई है, लेकिन दो-तीन को ही पद मिल पाया है। दूसरी सूची का इंतजार किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि दूसरी सूची के संभावित नामों पर चर्चा हो चुकी है। हल्ला है कि दूसरी सूची में भी ज्यादातर के नाम नहीं हैं। ये अलग बात है कि सूची का ही कोई अता-पता नहीं दिख रहा है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि शायद 26 जनवरी के बाद सूची को लेकर हलचल हो। यदि ऐसा नहीं होता है, तो फिर बजट सत्र तक के लिए मामला ठंडे बस्ते में जा सकता है।
चाय के कप में बीयर कभी पी है?
जो लोग बीयर पीते हैं वे जानते हैं कि इसके लिए सामान्य से बड़े ग्लास इस्तेमाल होते हैं, और एक बड़ी बोतल अधिक से अधिक दो गिलासों में खाली हो जाती है। लेकिन किसी ने चीनी मिट्टी के चाय पीने के लिए बनाए गए कप में बीयर नहीं देखी होगी। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में वीआईपी कही जाने वाली एयरपोर्ट रोड पर बिना दारू-लाइसेंस के एक रेस्त्रां में खुलकर बीयर पिलाई जा रही है, और उससे भरा हुआ गिलास आंखों को न खटके इसलिए वेटर बोतल के साथ चाय वाले कप लेकर आता है, और टेबिल पर कप में बीयर भरकर सर्व कर जाता है। अब इस गैरकानूनी ठिकाने के आसपास जो लोग बार की मोटी लाइसेंस फीस देकर कारोबार कर रहे हैं, वे परेशान हैं, और इस अवैध बीयर बार की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर भेजकर लोगों से मदद की अपील भी कर रहे हैं।
ऑनलाइन ठगी का ऐसा मकडज़ाल
ऑनलाइन ठगी का अपराध रोजाना दर्ज हो रहा है। गूगल सर्च में भी फर्जी कस्टमर केयर और हेल्पलाइन नंबर डाल दिये गये हैं। पुलिस के अलावा बैंकों की तरफ से भी एसएमएस भेजकर सचेत किया जाता है कि फोन पर किसी को अपना कार्ड नंबर न बतायें, पासवर्ड, ओटीपी न बतायें, कोई ऐप डाउनलोड करने के लिये लिंक भेजें तो न खोलें। अधिकारिक वेबसाइट से ही हेल्पलाइन नंबर लें। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया उन अग्रणी बैंकों में है, जो इस तरह की चेतावनी अक्सर अपने ग्राहकों को देता रहता है। पर ठगों ने राजधानी रायपुर के इसी बैंक के एक रिटायर्ड अधिकारी को अपना शिकार बनाया। उन्होंने प्रोविडेंट फंड का बकाया 13 लाख रुपये का भुगतान करने के नाम पर करीब 2.60 लाख रुपये अपने खातों में जमा करा लिया। यह हो नहीं सकता कि मुख्य प्रबंधक पद से सेवानिवृत होने वाले बैंक अधिकारी ने बातचीत और रुपये ट्रांसफर करते समय सावधानी नहीं रखी होगी, इसके बावजू ऐसा मामला सामने आने से पता चलता है कि ठग अच्छे-खासे समझदार लोगों पर भी अपना विश्वास जमाने में सिर्फ फोन के जरिये सफल हो रहे हैं। फिलहाल तो, अकेले पुलिस द्वारा साइबर क्राइम के खिलाफ चलाई जा रही जागरूकता काफी नहीं लगती।
इसी को कहते हैं सरकारी ढर्रा
मुद्रलेखन एवं शीघ्र लेखन बोर्ड हर साल दो बार टाइपिस्ट की परीक्षायें आयोजित कराता है। इसे पास करने के बाद बेरोजगार युवा के पास एक और योग्यता प्रमाण-पत्र हो जाता है। उम्मीद बढ़ जाती है कि जब नौकरी का आवेदन भरा जायेगा तो यह काम आयेगा। सहायक ग्रेड-2 और समकक्ष लिपिक की भर्ती के विज्ञापनों में अक्सर लिखा होता है टाइपिंग जानना अनिवार्य। यदि कोई नहीं जानता तो उसे नौकरी लगने के सालभर के भीतर इसे पास करना भी होता है। हाल में यह परीक्षा प्रदेश के कई जिलों में हुईं। हालत यह थी कि टाइपराइटरों की कमी पड़ गई। परीक्षार्थियों को खुद टाइपराइटर का इंतजाम करना पड़ा, जिसके लिये उन्हें 500 रुपये तक खर्च करने पड़े। बेरोजगारों के सामने दोहरी मुसीबत है, टाइपराइटर पर टाइपिंग सीखना इसलिये जरूरी है क्योंकि नौकरी के लिये आवेदन करते समय अनिवार्य है। कम्प्यूटर पर भी टाइपिंग सीख लेना इसलिये जरूरी है क्योंकि दफ्तरों में इनसे ही काम हो रहा है। जब अफसर यह मानने लगेंगे कि टाइपराइटर का जमाना लद गया और कम्प्यूटर पर ही परीक्षा ली जायेगी, तब शायद यह स्थिति बदले