राजपथ - जनपथ
बैलगाड़ी का इंतजाम
छत्तीसगढ़ में भाजपा के अंदरखाने में धान खरीद में अव्यवस्था के खिलाफ 22 तारीख को सभी जिलों में प्रस्तावित धरना-प्रदर्शन कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए बैठकों का दौर चल रहा है। प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी खुद रायपुर में धरने में शिरकत करेंगी। पुरंदेश्वरी ने श्रीचंद सुंदरानी को अपने लिए एक बैलगाड़ी का इंतजाम करने कहा है। वे बैलगाड़ी में बैठकर किसानों की समस्याओं को लेकर ज्ञापन देने राजभवन जाएंगी। हालांकि बैलगाड़ी लेकर राजभवन तक पहुंचना मुश्किल है, लेकिन पुरंदेश्वरी की सक्रियता सेे कार्यकर्ता चार्ज जरूर हो रहे हैं।
पीए को हटाया किसने?
सरकार के एक मंत्री के पीए को कुछ समय पहले हटा दिया गया। मंत्रीजी के निजी स्टॉफ में दूसरी बार बदलाव हुआ। मगर इस बार पीए को हटाए जाने की काफी चर्चा रही। पीए, मंत्रीजी के बेहद करीबी माने जाते रहे हैं। हाल यह था कि पीए के कथन को मंत्री का आदेश माना जाता था। मगर पीए को हटाए जाने का आदेश पहुंचा, तो हर कोई हैरान रह गया। मंत्रीजी ने तो ऊपर से आदेश होना बताया, तो खुद पीए का मानना था कि एक पूर्व आईएएस और कुछ अन्य प्रभावशाली लोगों ने उन्हें मंत्री बंगले से बेदखल करवाया है।
अंदर की खबर यह है कि मंत्रीजी खुद होकर अपने पीए से पीछा छुड़ाना चाहते थे। मंत्रीजी के पीए से काफी पुराने संबंध रहे हैं। वे उनकी बात नहीं काट पाते थे। शिकायतें ज्यादा आने लगी, तो उन्होंने खुद होकर पीए को हटवा दिया, और 'ऊपर' से आदेश होना बता दिया। लेकिन चूंकि पहले भी दूसरे कुछ मंत्रियों के यहां के स्टाफ को ऊपर के आदेश पर बदला गया था। इसलिए पीए, मंत्रीजी के कथन को सही मानकर चल रहे हैं।
भित्ति चित्र से हलबा जाति का गायब हो जाना
प्रदेश में हरेक जिला मुख्यालय की किसी प्रमुख सडक़ का चुनाव कर उसका सौंदर्यीकरण किया जाता है। सडक़ों के किनारे आकर्षक भित्तिचित्रों से उस क्षेत्र की कला, संस्कृति और जीवन शैली को प्रदर्शित किया जाता है। हाल ही में दुर्ग के नाना-नानी पार्क की सडक़ पर ऐसी ही श्रृंखला का मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लोकार्पण किया था। इधर बस्तर जिले में भी जिला प्रशासन ने वन विभाग को यही काम सौंपा। आसना पार्क में छह जनजातियों मूरिया, माडिय़ा, दोरला, गोंड, धुरवा और भतरा की प्रस्तुति की गई है पर इसमें से हलबा या हलबी जनजाति गायब है। बस्तर के अलावा ओडिशा, महाराष्ट्र, गुजरात में इनकी बसाहट है। बस्तर की जन-जातियों पर बात हो और उनमें हलबा का जिक्र नहीं हो, एक बड़ी चूक है। बस्तर जिला प्रशासन की अधिकारिक वेबसाइट में भी हलबा जनजाति का प्रमुखता से उल्लेख है। बस्तर पर लिखी गई अनेक किताबों में भी हलबा जनजाति पर विस्तार से जिक्र है।
बस्तर में 70 प्रतिशत आदिवासी हैं और उनके अपने रिवाज, प्रथा-परम्परा, पद्धति, देवी देवताओं पर मान्यता, वेशभूषा, बोली, सांस्कृतिक गतिविधियां विविध व्यापक हैं। जब अफसर अपनी तैनाती इलाके को समझने की कोशिश नहीं करते हैं तब ऐसी गलती होती है। बस्तर की तो बूझना आसान भी नहीं है।
अखिल भारतीय हलबा समाज प्रशासन की इस लापरवाही पर गुस्से में हैं। उसने कलेक्टर, डीएफओ और उच्चाधिकारियों को इस उपेक्षा को लेकर ज्ञापन दिया है और चेतावनी दी है कि यदि यह गलती नहीं सुधारी गई तो आंदोलन करेंगे।
केंवटीन नहीं केंवट कहो भाई..
किसी महिला का नाम लिखते समय उनकी जाति का तोड़-मरोडक़र जिक्र किया जाये तो कैसा लगेगा? शर्मा को शर्माईन तो नहीं कहा जा सकता। सरनेम तो अग्रवाल, शर्मा, गुप्ता, ठाकुर वगैरह ही होना चाहिये।
बीते दिनों गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही जिले के दौरे पर पहुंचे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को केंवट समाज की ओर से एक पत्र सौंपा गया। उन्होंने कहा, चकरभाठा एयरपोर्ट को ‘बिलासा बाई केंवटीन’ नाम आपने दिया उससे समाज गदगद है, आभार! सीएम ने धन्यवाद देते हुए पूछ लिया केंवटीन क्यों कह रहे हो? लोगों ने एक दूसरे की ओर सवालिया निगाह से देखा और कहा अखबारों में यही तो छपा है साहब। सीएम ने समझाया बिलासा बाई केंवट थीं तो उपनाम भी केंवट ही रहेगा न। नाम बिलासा बाई केंवट ही हुआ । सबने हामी भरी और कहा कि अब ऐसे ही लिखा बोला करेंगे। इधर प्रशासन द्वारा नामकरण पर जो चि_ी चल रही है, पता चला उसमें भी केंवटीन लिखा गया है। सीएम की सुनने के बाद उसमें सुधार किया जा रहा है। हवाई सेवा शुरू करने के लिये संघर्ष कर रहे एक नेता कहना है कि केंवट या केंवटीन का जिक्र भी क्यों हो, केवल बिलासा बाई एयरपोर्ट कहा जाना अच्छा लगेगा।
हड़ताल भी चालू और काम भी
पंचायत सचिवों का काम ग्राम स्तर पर शासकीय योजनाओं का काम देखना होता है। रोजगार सहायकों का काम महात्मा गांधी नरेगा की निगरानी, मस्टररोल और मजदूरों का वेतन बनाना होता है। पिछले एक पखवाड़े से प्रदेश भर में इनकी हड़ताल चल रही है। मांग है, दो साल की नौकरी के बाद पंचायत सचिवों को शासकीय सेवक का दर्जा मिले। रोजगार सहायकों को नगरीय निकायों की सेवा में रखा जाये, नियमित करें और पंचायत सचिवों की नियुक्ति में अनुभव के आधार पर सीधी भर्ती की जाये।
इस हड़ताल की वजह से ग्राम पंचायतों और मनरेगा के कार्यों की व्यवस्था बिगड़ी हुई है पर, हर जगह नहीं। संगठन के पदाधिकारियों ने देखा कि हड़ताल के पंडाल तो भरे हुए हैं फिर भी पंचायतों में काम रुक नहीं रहा है। पता चला कि कुछ सचिव, रोजगार सहायक हड़ताल पर भी हैं और बाद में काम भी निपटा रहे हैं। संगठन के नेताओं ने इनसे कहा कि अपना-अपना डोंगल जमा करें। इंटरनेट ही नहीं रहेगा तो काम कैसे करोगे। दिक्कत ये है कि लोग डोंगल जमा नहीं कर रहे। डोंगल जमा हो भी गया तो नेट की वैकल्पिक सुविधा इतनी अधिक है उससे काम बंद जैसी स्थिति पैदा ही नहीं हो रही है।