राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कौन बनेगा आईएएस ?
04-Nov-2020 5:37 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कौन बनेगा आईएएस ?

कौन बनेगा आईएएस ?

अन्य सेवा संवर्ग से आईएएस अवार्ड को लेकर प्रशासनिक हल्कों में उत्सुकता है। सीएस की कमेटी ने आठ अफसरों के इंटरव्यू लिए। इनमें से एक-दो दिन में पांच नाम छांटकर डीओपीटी को भेजा जाएगा। जिन अफसरों को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था, उनमें से तो कुछ नाम तो चौंकाने वाले थे। मसलन राजेश सिंघी, जो कि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के विशेष सहायक हैं। इससे पहले वे पीडब्ल्यूडी मंत्री राजेश मूणत के विशेष सहायक थे। मंत्री स्थापना में पदस्थ अफसरों पर किसी सीनियर अफसर की नजर, तो रहती नहीं है। उनके काम का मूल्यांकन मंत्री ही करते हैं। ऐसे अफसर को इंटरव्यू में बुलाने पर कानाफूसी हो रही है। वैसे यह सब औपचारिकता है। आम तौर पर यह माना जाता है कि सीएम जिसे चाहते हैं, उनके नाम पर मुहर लग जाती है। 

पिछली सरकार में एक रिक्त पद के लिए जिन पांच अफसरों को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था, उन सभी का परफार्मेंस बेहतर था। उस समय भरी मीटिंग में यूपीएससी चेयरमैन दीपक गुप्ता ने राज्य सरकार के अफसरों से कहा था कि आपके पांचों अफसर आईएएस अवॉर्ड के लायक हैं।  जिन अफसरों का इंटरव्यू हुआ था उनमें अनुराग पाण्डेय, राजीव जायसवाल, उमेश मिश्रा, अनुराग दीवान और डॉ. अनिल चौधरी थे। चयन समिति ने अनुराग पाण्डेय के नाम पर मुहर लगार्ई। दरअसल, उस समय उत्तर भारत के एक राज्य में सीएम और सीएस के दबाव में ऐसे अफसर को आईएएस अवॉर्ड के लिए अनुशंसा करनी पड़ी थी, जिसके परफार्मेंस से यूपीएससी और डीओपीटी के अफसर बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं थे। इस बार  उमेश मिश्रा दोबारा इंटरव्यू हुआ है। संभव है कि पांच नामों में उनका भी नाम शामिल होगा, मगर जीएसटी के एडिशनल कमिश्नर गोपाल वर्मा को आईएएस अवार्ड के लिए सबसे मजबूत माना जा रहा है। गोपाल के पक्ष में सारे राजनीतिक और सामाजिक समीकरण दिख रहे हैं। देखना है कि आगे होता है क्या।

और आईएएस बनने का एक किस्सा!

अभी जब छत्तीसगढ़ में डिप्टी कलेक्टरों से परे अन्य सेवाओं के लोगों में से किसी को आईएएस बनाने की मशक्कत चल रही है, तो एक दिलचस्प वाकया याद पड़ता है जो कि अजीत जोगी ने इस अखबारनवीस को खुलासे से सुनाया था। 

जोगी रायपुर में कलेक्टर थे और यहां औद्योगिक विकास केन्द्र में एम.ए.खान जनरल मैनेजर थे। अविभाजित मध्यप्रदेश में जब अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री थे तब ऐसी ही मशक्कत चल रही थी, और राज्य प्रशासनिक सेवा से परे के किसी अफसर के आईएएस बनने की बारी थी। जोगी की तगड़ी सिफारिश पर अर्जुन सिंह ने खान का नाम लिस्ट में रखवा दिया था। 

इसके बाद जब दिल्ली से कमेटी भोपाल पहुंची, और एक-एक करके सभी उम्मीदवारों का इंटरव्यू करने लगी तो एम.ए. खान की जुबान को मानो लकवा मार गया। उनका मुंह ही नहीं खुल पाया। वे एक भी बात का जवाब नहीं दे पाए, और कमेटी दिल्ली लौट गई। इसके बाद जोगी फिर अर्जुन सिंह के पीछे लगे कि किसी तरह से खान का नाम जुड़वाया जाए। उस वक्त दिल्ली और भोपाल दोनों में कांग्रेस की सरकार थी, और अर्जुन सिंह का वजन बहुत था। उन्होंने किसी तरह कमेटी की एक और बैठक रखवाई। इस बार खान को तैयार किया गया कि कमेटी के पूछे हुए कम से कम एक सवाल का तो जवाब दे ही दें। किसी तरह खींचतान कर अजीत जोगी ने एम.ए. खान को आईएएस बनवा दिया। 

इसके बाद का किस्सा और दिलचस्प है, और उसी वजह से जोगीजी यह किस्सा सुनाते भी थे। 

जब अविभाजित मध्यप्रदेश में सुंदरलाल पटवा की सरकार बनी, तो भोपाल में अवैध कब्जे-अवैध निर्माण की झोपडिय़ों को तोडऩे के लिए कार्रवाई हो रही थी, एम.ए.खान उस वक्त भोपाल के कलेक्टर थे, और जाहिर है कि वे पटवाजी के करीबी भी थे। अर्जुन सिंह विपक्ष के होने के नाते इस अभियान का विरोध करने मौके पर पहुंचे थे, और उनके साथ राज्यसभा सदस्य अजीत जोगी भी थे। इस वक्त झोपडिय़ों पर चलते हुए बुलडोजर पर बैनर लगा हुआ था कि मेरे आंख-कान नहीं हैं मुझे दिखता नहीं है, और जो मेरे सामने रहेगा वह कुचला जाएगा। अर्जुन सिंह और जोगी मौके पर तोडफ़ोड़ रोकने की कोशिश कर रहे थे तो लाउडस्पीकर पर एम.ए. खान ने उनसे वहां से हट जाने की घोषणा की। इस पर अर्जुन सिंह ने तिरछी नजरों जोगी को देखते हुए, अपने कुछ तिरछे होठों से धीरे से कहा- ये वही खान हैं जिन्हें आपने आईएएस बनवाया था? 

अब जोगीजी क्या कहते! लेकिन वे यह किस्सा बहुत मजा लेकर सुनाते थे। 

कमिश्नरी फिजूल की हो गयी?

अमृत खलको के राज्यपाल का सचिव बनने के बाद से बस्तर कमिश्नर का पद खाली है। खलको डिप्टी कमिश्नर को चार्ज देकर यहां आ गए थे, तब से नई पदस्थापना नहीं हो पाई है। अविभाजित मध्यप्रदेश में बस्तर कमिश्नर का पद काफी अहम माना जाता रहा है, और काबिल अफसरों की यहां पोस्टिंग होती रही है। सुदीप बैनर्जी, एलके जोशी, विवेक ढांड जैसे अफसर बस्तर कमिश्नर रहे हैं। बस्तर कमिश्नर को वित्तीय अधिकार भी रहा है। 

छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद पहले कमिश्नरी खत्म कर दिया गया, बाद में रमन सरकार में दोबारा कमिश्नरी व्यवस्था बहाल हुई, तो सचिव अथवा विशेष सचिव स्तर के जूनियर अफसरों को भेजा जाने लगा। अब जब कलेक्टर सीधे सीएम हाउस को रिपोर्ट करते हैं, कमिश्नरी की रौनक अब पहले जैसी नहीं रह गई। फिर भी बस्तर में समस्याएं काफी हैं, और यहां  कमिश्नर की जरूरत महसूस की जाती रही है। भूपेश सरकार ने बोधघाट जैसी परियोजना को प्राथमिकता देने का फैसला लिया है। ऐसे में बस्तर कमिश्नर की पदस्थापना न होना समझ से परे है। 

मरवाही में कड़ी टक्कर बरसों बाद...

मरवाही में मतदान हो चुका, अब दावों-प्रतिदावों, कयासों का सिलसिला चल रहा है जो 10 नवंबर को नतीजा आने के बाद ही थमेगा। कोरोना संकट और फसल कटने की व्यस्तता के बीच हुए इस उप-चुनाव में अनुमानों के विपरीत मतदाता बड़ी तादात में वोट देने निकले। शुरुआती आकलन के मुताबिक 77.25 फीसदी वोट डाले गये। सभी बूथों की ईवीएम मशीनों के पहुंचने के बाद आंकड़ा कुछ घट-बढ़ सकता है। मुख्य मुकाबले में रही कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के नेता और समर्थक इस भारी मतदान को अपनी सहूलियत के अनुसार परिभाषित कर रहे हैं। कांग्रेस के लिये वोटर जिले के गठन और सरकार के विकास कार्यों पर मुहर लगाने के लिये निकले तो भाजपा की निगाह में भीड़ सरकार को सबक सिखाने के लिये बूथों में पहुंची थी। समान बात यह है कि जीत के उस आंकड़े की बात कोई नहीं कर रहा है जिसे जोगी हासिल कर लिया करते थे। दावा, बस अच्छे बहुमत से जीत का किया जा रहा है। मतलब साफ है कि मुकाबला तगड़ा हुआ है। मरवाही के मन में क्या है इस पर नतीजा आने तक चर्चा और लगे हाथ सट्टेबाजी का दौर भी चलता रहेगा।

मरवाही के कुछ दिलचस्प आंकड़े

कोरोना, फसल कटाई और उप-चुनाव के बीच मतदान का जो बढ़ा प्रतिशत लोगों को चौका गया, वह विधानसभा चुनावों की तालिका पर तुलनात्मक नजर डालने से बहुत बड़ा भी दिखाई नहीं देता। तथ्य यह है कि विधानसभा चुनावों में हर बार मरवाही में अच्छी वोटिंग होती रही। 2008 में 75.21 प्रतिशत, 2013 में 84.06 तथा सन् 2018 में जब स्व. अजीत जोगी कांग्रेस से अलग होकर मैदान में थे 80.88 प्रतिशत मतदान हुआ। यानि इस उप-चुनाव का मतदान पिछले चुनाव से करीब 3.6 प्रतिशत कम है। सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में भी 75.11 प्रतिशत तथा 2019 के चुनाव में 74.19 प्रतिशत वोट डाले गये, जो बाकी विधानसभा क्षेत्रों से अधिक थे। हालांकि सन् 2009 के चुनाव में मतदान का प्रतिशत सिर्फ 60.19 प्रतिशत रहा।

मरवाही सीट से जुड़ी एक खास बात और है कि यहां महिला मतदाता पुरुषों से अधिक हैं और वे मतदान में भी आगे रही। पुरुषों का मतदान प्रतिशत 77.13 रहा तो महिलाओं का 77.36 तक पहुंचा। मरवाही में 93 हजार 735 पुरुष तथा 97 हजार 265 महिलायें हैं। थोड़ी सी हैरानी इस बात पर भी हो सकती है कि जोगीसार, जिसे जोगी का गांव समझा जाता है वहां 72.89 प्रतिशत वोट पड़े जो औसत से कम है। इसे मरवाही क्षेत्र में सबसे कम मतदान वाले बूथों में जगह मिली है।

मार्शल के लिये चि_ी रवाना होने से पहले रुकी

संसद में कई बार इतनी अप्रिय स्थिति बन जाती है कि कार्यवाही में व्यवधान रोकने के लिये आंसदी को मार्शल का प्रयोग करना पड़ता है। लोकसभा-विधानसभा में ऐसी व्यवस्था आम है पर अब नगर निगम की सामान्य सभाओं में भी वाद-विवाद बढऩे लगे हैं। कई बार लगता है कि हंगामे को रोकने लिये बल का इस्तेमाल जरूरी है। दुर्ग नगर निगम की सामान्य सभा 9 नवंबर को रखी गई है। आयुक्त ने एक चि_ी तैयार की, पुलिस अधीक्षक को भेजने के लिये। इसमें पुलिस जवान मांगे गये ताकि विवाद न संभले तो उनका इस्तेमाल कर निपटा जा सके। चि_ी की जानकारी महापौर, सभापति को हुई। उन्होंने आयुक्त से मिलकर उनको आश्वस्त किया कि  सभा में कोई बाधा नहीं डालेगा, सब अपने ही लोग हैं। पुलिस को चि_ी लिखने या बुलाने की जरूरत नहीं है। खबर है, आयुक्त मान गये हैं अब वह चि_ी नहीं जायेगी। उम्मीद कर सकते हैं कि सामान्य सभा की साख बनी रहेगी।

 

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