राजपथ - जनपथ
भाजयुमो से आगे बढऩे का रास्ता
भाजयुमो के अध्यक्ष अमित साहू ने खूब तामझाम के साथ पदभार ग्रहण किया। वे पगड़ी पहनकर आए थे। एकात्म परिसर में पदभार ग्रहण कार्यक्रम के दौरान बृजमोहन अग्रवाल ने कार्यकर्ताओं को संघर्ष करने की सीख दी। उन्हें बताया कि वे युवा मोर्चा के दिनों में किस तरह संघर्ष करते हुए आगे बढ़े हैं।
पुरानी घटनाओं को याद करते हुए बृजमोहन अग्रवाल ने बताया कि अर्जुन सिंह के सीएम रहते जनहित के मुद्दों को लेकर विरोध प्रदर्शन करते हुए उन पर काला झंडा फेंक दिया था। इस पर पुलिस और कांग्रेस के नेताओं ने उनकी जमकर पिटाई की थी। फिर भी वे पीछे नहीं हटे। इसका प्रतिफल यह रहा कि वे विधायक और मंत्री बने।
बृजमोहन की तरह मोहम्मद अकबर को वीपी सिंह की रैली का विरोध करने पर जनता दल के कार्यकर्ताओं की मार झेलनी पड़ी थी। उस समय कांग्रेस के खिलाफ माहौल था। अकबर को अविभाजित मध्यप्रदेश युवा कांग्रेस के महासचिव का पद दिया गया। वे फिर विधायक बने और वर्तमान में मंत्री हैं। ये तो पुराने छात्र नेताओं की बात है। नए नवेले नेता तो पद पाते ही साधन-संसाधन के जुगाड़ में लग जाते हैं, और जल्द बदनाम भी होते हैं।
पिछली सरकार में भाजयुमो के एक नेता तो पद मिलने के बाद ट्रांसफर पोस्टिंग के जुगाड़ में लग गए थे। एक सिंचाई अफसर की पदस्थापना के एवज में काफी कुछ बटोर भी लिया था। इसकी काफी दिनों तक चर्चा होती रही। अब सरकार तो है नहीं, अमित साहू कैसा काम करते हैं यह देखना है।
पर्यावरण बचाने ऐसे पटाखे जिन्हें फोडऩा नहीं, बोना है!
पटाखों से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को देखते हुए उसी शक्ल में एक नया अभियान शुरू किया गया है। पर्यावरण के अनुकूल सामानों की एक दुकान में बीज-पटाखों की बिक्री शुरू की है जो अलग-अलग परंपरागत पटाखों के रूप-रंग में तो हैं, लेकिन जिन्हें जलाना नहीं है, बल्कि बोना है। ऐसे कुछ पटाखों का एक पैकेज नारियल के रेशों से बने हुए दो गमलों के साथ एक पैकेज में करीब 7 सौ रूपए में बेचा जा रहा है। इसमें अनार से लेकर बम तक हर किस्म के पटाखों के भीतर अलग-अलग बीज हैं, और उन्हें स्थानीय लोगों से छिंदवाड़ा जिले की सौंसर तहसील के पारडसिंगा में एक संस्था ने बनवाया है, और इसकी ऑनलाईन बिक्री की जा रही है।
सीजन में भी चूक कर रहे फूड वाले...।
अमूमन लोग इस बात पर ध्यान नहीं देते कि होटलों में साफ-सफाई बरती जा रही है या नहीं। कभी गंदगी या लापरवाही दिखी भी तो नाक भौं सिकोडक़र आगे बढ़ लेते हैं। यह है, बड़ा मुद्दा। होटलों का खान-पान कैसा है इसका हमारी सेहत पर खासा असर पड़ता है और यदि वहां स्वच्छता नहीं हो, तो कार्रवाई के लिये कानून बने हैं। बस नागरिक को जागरूक होना चाहिये। दुर्ग कलेक्टर को एक नागरिक ने फोन कर खबर की कि अमुक होटल में जिस पानी का इस्तेमाल हो उसकी है कि उसकी टंकी सफाई अरसे से नहीं की गई है। इससे बीमारी फैलने का खतरा है। होटल ने पार्किंग के लिये तय जगह पर ताला लगा रखा है, यातायाता में बाधा पहुंचती है। कलेक्टर ने एक्शन लिया। उनके निर्देश पर मातहत गये और जांच के बाद पांच हजार रुपये का जुर्माना ठोक दिया गया। आम तौर पर ग्राहक सजग नहीं होते और इस तरह के लफड़े में नहीं पड़ते। अधिकारियों की तरफ से रिस्पांस मिलेगा या नहीं इसे लेकर भी सशंकित रहते हैं। वैसे यह सीजन तो है ही होटलों में छापा मारने का। दशहरा-दीपावली पर फूड और नगर निगम वालों की कमाई का मौसम। पता नहीं दुर्ग में चूक कैसे हो रही है।
सख्ती हो तो ग्वालियर हाईकोर्ट जैसी...
चुनावी रैली करने से पहले, सभा में पहुंचने वाले अनुमानित लोगों के लिये मास्क और सैनेटाइजर खरीदने पर जितनी राशि खर्च होगी उससे दुगना कलेक्टर के पास नेताओं को जमा करना होगा। मास्क और सैनेटाइजर देना भी प्रत्याशी की जिम्मेदारी होगी। उनको बताना होगा कि यहां वे वर्चुअल सभा क्यों नहीं कर सकते? चुनाव आयोग इस व्यवस्था से संतुष्ट होंगे, इसी के बाद कलेक्टर की अनुमति प्रभावी मानी जायेगी। यह आदेश मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ का है। कोर्ट ने कहा कि जिस तरह प्रत्याशी को प्रचार करने का हक है उसी तरह लोगों को जीने का। दतिया और ग्वालियर के मामलों में केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के खिलाफ कोर्ट ने एफआईआर का निर्देश दिया है। इन नेताओं की 5 अक्टूबर को रैलियां हुई थीं, जिसमें लोगों ने न मास्क पहने, न सोशल डिस्टेंस का पालन हो रहा था। छत्तीसगढ़ के मरवाही विधानसभा चुनाव की तस्वीर इससे कुछ अलग नहीं है पर यहां सभा, रैलियों की अनुमति आसानी से मिल रही है और सभी दलों के नेता मुक्त प्रचार में लगे हैं। वे कोरोना से बचाव के दिशा-निर्देशों को मानने की बजाय एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। मरवाही गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही जिले के अंतर्गत आता है जहां बीते कुछ दिनों से कोरोना संक्रमण के केस बढ़ रहे हैं। ग्वालियर पीठ ने जो आदेश कलेक्टरों को दिया है, वह यहां लागू क्यों नहीं होना चाहिये?
मरवाही में ठिकाना ढूंढते वीआईपी..
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बीते दिनों गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही के दौरे पर नामांकन के दौरान रखी गई सभा में कह गये कि यह इलाका जिला नहीं बनने के कारण 20 साल पीछे चला गया। उनकी बात कितनी खरी थी, यह कांग्रेस ही नहीं भाजपा के नेता भी इन दिनों महसूस कर रहे हैं। वे यहां ठहरने और भोजन का ठिकाना ढूंढकर परेशान हुए जा रहे हैं। पूरे जिले में गौरेला स्टेशन के आसपास का हिस्सा ही कस्बाई है बाकी सब गांव देहात। यहां कुछ जमा पांच होटल लॉज हैं और इतने ही ठीक-ठाक भोजनालय। सब जगह भीड़। मरवाही में तो यह सुविधा भी नहीं है। चुनाव आचार संहिता के कारण सरकारी रेस्ट हाउस नेताओं को मिलने से रहे। अब वे स्थानीय लोगों से मनुहार कर रहे हैं। कुछ को तो जगह मिल गई है पर ज्यादातर लोगों को, जिनमें महिला नेत्रियां भी शामिल हैं, खासी परेशानी है। कुछ नेता तो अगले एक पखवाड़े के लिये मकानों का मुंहमांगा किराया देने के लिये भी तैयार हैं पर ग्रामीण इसके लिये भी हां नहीं कह रहे हैं। उन्हें बाहर से आये लोगों से कोरोना फैलने का डर है। कांग्रेस से तो कम से 50 वीआईपी हैं, पर भाजपा से भी कम नहीं। करीब इतने ही भूतपूर्व वीआईपी उनकी तरफ भी हैं। कई नेता अमरकंटक, बिलासपुर के रास्ते में इक्के-दुक्के बने रिसॉर्ट में ठहर रहे हैं। कुछ ने कहीं-कहीं से रिश्तेदारी, परिचय निकालकर ठिकाना ढूंढा है बाकी भटक रहे हैं। मना रहे हैं टास्क पूरा हो और यहां से निकल भागें।