राजपथ - जनपथ
निराश ओपी फोन से बाहर
चर्चा है कि पूर्व कलेेक्टर ओपी चौधरी कोप भवन में चले गए हैं। उन्होंने पार्टी के प्रमुख नेताओं का फोन उठाना बंद कर दिया है। वैसे तो उनकी नाराजगी जायज है, क्योंकि वे युवा मोर्चा का अध्यक्ष अथवा प्रदेश भाजपा का महामंत्री बनना चाहते थे। मगर उन्हें मात्र प्रदेश मंत्री का पद दिया गया।
चौधरी के पहले अविभाजित मध्यप्रदेश में अजीत जोगी इंदौर कलेक्टर रहते नौकरी छोडक़र कांग्रेस में आए थे। तब उन्हें हाथों-हाथ लिया था। कांग्रेस ने जोगी को तुरंत राज्यसभा में भेजा था। राष्ट्रीय प्रवक्ता की जिम्मेदारी दी। मगर चौधरी कलेक्टरी छोडक़र आए, तो भाजपा ने उन्हें खरसिया जैसी बेहद कठिन सीट पर झोंक दिया। जहां भाजपा कभी जीत नहीं पाई थी। यद्यपि भाजपा के कुछ लोग मानते हैं कि खरसिया में चौधरी को जिताने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखी गई थी। कसडोल से ज्यादा खर्च खरसिया में हुआ था। सारे संसाधन झोंकने के बाद भी ओपी चौधरी बुरी तरह हार गए।
नौकरशाह से नेता बने चौधरी ने कांग्रेस नेताओं को खूब भला-बुरा कहा था, तो उनका भी काला-पीला निकलना था। दंतेवाड़ा कलेक्टर रहते जमीन घोटाले की फाइल खुल गई, जिसमें सीधे-सीधे चौधरी पर आक्षेप लगे हैं। यद्यपि चौधरी को हाईकोर्ट से जांच के खिलाफ स्थगन मिला हुआ है, लेकिन तकलीफ तो है ही। रायपुर में इन्होने डीएमएफ से लायब्रेरी बनवाई, जिसे लेकर कांग्रेस ने सवाल खड़े किये. अब पार्टी में भी उन्हें अपेक्षाकृत सम्मान नहीं मिल रहा है, तो बुरा लगना स्वाभाविक है।
सुनते हैं कि प्रदेश भाजपा के एक संगठन के बड़े नेता ने उन्हें फोन लगाया, तो उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। जबकि कार्यकारिणी की घोषणा से पहले प्रमुख नेताओं से उनकी बात होते रहती थी। सरगुजा और अन्य जगहों से पार्टी के लोग उन्हें मोबाइल लगा रहे हैं, तो उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिल रहा है। यह भी संभव है कि चौधरी किसी और कारण से फोन नहीं उठा पा रहे हैं। फिर भी पार्टी के भीतर चौधरी के बदले रूख पर चर्चा हो रही है।
मरवाही बाहरी नेताओं के भरोसे...
मरवाही उप-चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही स्थानीय नेताओं के भरोसे नहीं हैं। दोनों ही दलों ने बिलासपुर, कोरबा और रायपुर के नेताओं को जिम्मेदारी दे रखी है। स्थानीय सिर्फ जोगी कांग्रेस के नेताओं को कहा जा सकता है क्योंकि जो मरवाही का नेता है वही उनका राज्य स्तर का भी नेता है। जोगी के रहते दोनों ही दलों ने यहां से चुनाव लडऩे में इतनी गंभीरता नहीं दिखाई जितनी उनके जाने के बाद दिखाई जा रही है। कांग्रेस के पास विधानसभा में बहुत बड़ा बहुमत है पर सवाल जोगी की सीट और कांग्रेस सरकार की लोकप्रियता का है, इसलिये लगातार दौरे पार्टी नेता कर रहे हैं और अपनी 70वीं सीट हासिल करने के लिये मेहनत कर रहे हैं। भाजपा जरूर कई चुनावों में दूसरे स्थान पर रही लेकिन जीत-हार का फासला बहुत कम रहा। उसे लगता है कि जोगी के नहीं रहने पर उनके लिये भी संभावना बन सकती है। प्रतिष्ठा दोनों ही दलों की दांव में लगी है। चुनाव के पहले कांग्रेस के मंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, सांसद और कई विधायक तो आते ही रहे अभी भी बिलासपुर और रायपुर के नेताओं को चुनाव प्रचार और संचालन की जिम्मेदारी दी गई है। यही हाल भाजपा का है। पूर्व मंत्री, सांसद, नेता प्रतिपक्ष सब वहां दौरे कर रहे हैं। जोगी के रहते दोनों ही दलों में कोई स्थानीय नेता अपनी बड़ी पहचान नहीं बना पाये। इस चुनाव के नतीजों से तय होगा कि मरवाही से कोई स्थानीय नेता उभरकर सामने आ पायेगा या नहीं। फिलहाल तो सब जिले के बाहर के नेताओं ने मोर्चा संभाल रखा है।
वैसे भी यह नया जिला बना है, जीपीएम, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही. नाम शायद देश में सबसे बड़ा, इसीलिए बोलचाल में छोटा, जीपीएम, कर लिया गया है. राज्य सरकार ने पिछले महीनों में लगातार यहां अफसर-कर्मचारियों की पोस्टिंग करके सरकारी काम पटरी पर लाने की कोशिश में कोई कसर भी नहीं रखी है. नए जिले का पहला चुनाव, अफसरों के जिम्मे सरकार को खुश रखना भी है।
छत्तीसगढ़ में सिर्फ 1 प्रतिशत मौत !
कोरोना को लेकर दो ख़बरें आज सुबह-सुबह मिल गईं। देश में कोरोना से मौतों की संख्या एक लाख पहुंच गई तो छत्तीसगढ़ में भी यह संख्या एक हजार को पार कर गई। वैसे तो राष्ट्रीय औसत के आधार पर कहा जा सकता है कि मौतें सिर्फ एक प्रतिशत हैं। पर एक भी मौत क्यों होनी चाहिये। अप्रैल-मई में जब छत्तीसगढ़ में बहुत कम कोरोना केस थे तब हम अपनी पीठ थपथपा रहे थे कि हमने कोरोना से लडऩा सीख लिया है पर धीरे-धीरे यह संख्या बढ़ती गई और अब भी बढ़ ही रही है। बहुत से रिसर्चर तो बल्कि यह कह रहे हैं कि ठंड के दिनों में संक्रमण तेजी से फैलेगा। अब तक कोरोना का कोई वैक्सीन नहीं आया है, शर्त लगाकर कोई नहीं कह सकता कि आने वाले दिनों में प्रकोप घटेगा ही। हाल के लॉकडाउन से हमने देख लिया कि व्यापार, काम-धंधे बुरी तरह प्रभावित हो जाते हैं। हो सकता है हमारी ही लापरवाही से फिर केस बढ़ें और हमें फिर लॉकडाउन की तरफ लौटने के अलावा कोई चारा दिखाई न दे। इसलिये सिर्फ एक प्रतिशत मौतें होने पर चैन की सांस लेने के बजाय नये केस घटाने और रिकवरी दर बढ़ाते रहने पर काम होना चाहिये।