राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : फिर नोटबंदी जैसी नौबत...
22-Sep-2020 7:05 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : फिर नोटबंदी जैसी नौबत...

फिर नोटबंदी जैसी नौबत...

इंकम टैक्स के नियम और लॉकडाऊन की वजह से बंद बैंक मिलकर लोगों के लिए परेशानी खड़ी कर रहे हैं। निजी अस्पतालों में लाखों का बिल बन रहा है, और अस्पताल किसी मरीज के खाते में दो लाख रूपए से अधिक नगद जमा नहीं करते क्योंकि इंकम टैक्स ने यह सीमा बनाई हुई है। दूसरी तरफ बैंक के कार्ड कभी काम करते हैं, कभी नहीं भी करते। एटीएम में कभी कैश रहता है, कभी नहीं रहता है। ऐसे में जिनको अस्पताल में दो लाख के बाद भुगतान करना है उन्हें कार्ड लेकर जाना पड़ता है। अब जिन लोगों ने मुसीबत के वक्त के लिए बैंक से नगद निकालकर रखा हुआ है, वह दो लाख के ऊपर के भुगतान में किसी काम का नहीं है, लॉकडाऊन में बैंक बंद हैं, इसलिए रकम बैंक में वापिस भी नहीं डाली जा सकती। कुल मिलाकर बहुत सी नौबतों में इंसान की हालत मुगल-ए-आजम की अनारकली सरीखी हो गई है, सलीम तुझे मरने नहीं देगा, और हम तुझे जीने नहीं देंगे। जिनके पास अपना खुद का या लोगों से मांगा हुआ पैसा है, वे भी अस्पताल में उसे जमा नहीं कर सकते। फिर कुछ लोगों के खाते में पैसे हैं, तो कार्ड से भुगतान करने जाने पर अधिकतर कार्ड की सीमा एक दिन में अधिकतम 50 हजार रूपए है, उससे अधिक भुगतान कार्ड से भी नहीं हो सकता। नोटबंदी के समय लोगों की जो हालत थी, आज लॉकडाऊन, बैंकबंदी, और इंकम टैक्स के नियमों ने मिलकर कुछ वैसी ही नौबत फिर ला दी है। सेहत के लिए कोरोना और औकात के लिए सरकार एक सरीखे खतरनाक हो गए हैं।

अब अस्पताल से छुट्टी के वक्त लाखों का बिल अगर चुकाना है, तो लोग बैंकबंदी के बीच, शहरबंदी के बीच किस तरह बैंक से अस्पताल को भुगतान कर सकते हैं? और अस्पताल दो लाख से अधिक का कुल भुगतान एक मरीज के लिए नहीं ले सकता। अब लोगों को कई ऐसे दोस्तों-परिचितों के नाम की लिस्ट बनाकर रखनी चाहिए जिन्हें साथ ले जाकर उनके कार्ड से 50-50 हजार रूपए का भुगतान करवाया जा सके। यह डिजिटल अर्थव्यवस्था किस काम की जो कि अस्पताल की बड़ी बीमारी और बड़े दिल की नौबत में भी पैसा रखे हुए लोगों को बेसहारा कर दे।

देखो इंसान कहे जाने वालों को...!

रायपुर की एक सामाजिक कार्यकर्त्ता मंजीत कौर बल ने इंसानों की भयानक करतूत सामने रखी है-

हम लोग एक स्थान पर  चिडिय़ा देखने आए थे तो बया के घोंसले को तोडक़र उसके बच्चों और चिडिय़ा को निकाल कर जला कर उसे भूँजा गया है। यह एक पीड़ादायक और दर्दनाक दृश्य है..देखना कठिन रहा. लेकिन उससे अधिक कठिन हो रहा है कि यह सोचना कि कैसे इसको रोका जाये और समझाया जाये..

हमने सोचा है कि सभी  पंचायतों को एक छोटा सा पत्र या अपील जारी की जाए कि हमको आसपास के चिडिय़ों का सरंक्षण करना है।

 ‘अपील’

आप सभी को हम ये जानकारी देना चाहते हैं कि नया रायपुर के आसपास के क्षेत्र एवं सभी ग्राम पंचायत और पूरे राज्य व् देश में  जून- जुलाई से  लेकर सितंबर अक्टूबर तक बया के घोंसले बनाने का सबसे अच्छा एवं अनुकूल समय होता है. इस दौरान बया बहुत ही सुंदर घोंसले बनाती है जिसे देखकर  पूरे देश में इसको बुनकर चिडिय़ा के नाम से जाना जाता है। इस बुनकर चिडिय़ा के घोंसले बहुत आकर्षक होते हैं और इसका चुनाव लंबा और कठिन होता है । इसमें जो नर  चिडिय़ा होती है वो कई तरह के घोंसले बनाती है फिर मादा चिडिय़ा को देखने के लिए बुलाती है. मादा चिडिय़ा द्वारा घोंसले को देखकर पसंद करने के बाद ही उनका जोड़ा बनता है.

एक नर चिडिय़ा कम से कम 5 से 7 घोंसले बनाती है तब जाकर मादा द्वारा किसी एक घोंसले को पसंद कर अंतिम निर्णय दिया जाता है. घोंसले बनाने के लिए वह खजूर, छिंद के  पत्तों को छीलती है और छीले हुए पत्तों से वह घोंसला बुनती  है ।

यह बहुत सुंदर दृश्य होता है और बरसात में होता है इसलिए ये इस प्रकार बनाया जाता है कि उसके अंदर पानी ना घुसे। इस पूरी मेहनत के बाद उसके अंदर मादा चिडिय़ा अंडे देती है और इस  अंडे से बच्चे बड़े होते हैं और सितंबर के अंत तक यह पूरी प्रक्रिया समाप्त होती है। जैसे-जैसे वातावरण में प्रदूषण बढ़ रहा है, पेड़-पौधे कम हो रहे हैं वैसे भी चिडिय़ों की संख्या  भी कम होती जा रही है।

यह बहुत चिंता का विषय है कि ऐसे समय में हम चिडिय़ों का संरक्षण अधिक से अधिक कैसे करें? क्योंकि पर्यावरण में हर पशु-पक्षी, चिडिय़ों, छोटे-छोटे कीड़े -मकोड़े का भी विशेष महत्व है  ।

आज कोरोना और  कोविड के भय से हम जितना परेशान हैं  इसका भी एक प्रमुख कारण है पर्यावरण का दबाव व्यक्ति पर अधिक हो गया है जिससे वायरस उन व्यक्तियों पर आ रहे हैं.

ऐसे में एक दृश्य देखने को मिला जिसकी फोटो में अपील के साथ लगा रही हूं  और आप इस दृश्य को देखकर  कांप जाएंगे । मैं आसपास के गांव के सभी सरपंचों ,नागरिकों,  सभी से विनम्र अपील करती हूँ कि आप इस बया के घोंसले को बचाने के लिए छोटे बच्चों को  जानकारी एवं शिक्षा दें और आप प्रयास करें  कि हमारा छत्तीसगढ़ एक ऐसा क्षेत्र बने जो अधिक से अधिक घोंसलों को अधिक से अधिक पर्यावरण संरक्षण की ओर जा रहा है. हम ऐसी पंचायत बनाएं जहां कोई भी चिडिय़ा मारी नहीं जाती है, और कोई भी इस तरह के जानवर जिसकी संख्या कम होने से विश्व में पर्यावरण पर दबाव बनेगा।

बस्तर-रायपुर अब सिर्फ एक घंटे में...

बस्तर से कल एलायंस एयर की हवाई सेवा शुरू हुई तो वहां की पुलिस ने एक अनोखा काम किया। दस ऐसे ग्रामीणों को रायपुर की मुफ्त सैर कराई जो हवाई टिकट लेने और आसमान पर उडऩे की सोच नहीं सकते थे। इनके राजधानी घूमने, ठहरने और भोजन की व्यवस्था भी की। बस्तर पुलिस ने यह उदारता क्यों बरती इस पर कुछ साफ नहीं है। इन 10 ग्रामीणों का चुनाव भी किस पैमाने पर किया गया यह भी पता नहीं। इतना जरूर है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस नारे को सार्थक किया कि स्लीपर चप्पल पहनने वाला भी हवाई जहाज पर चलेगा। राजधानी से बस्तर की हवाई सेवा सिर्फ एक घंटे का सफर है। व्यावसायिक रूप से जो लाभ होना है वह तो है ही कानून व्यवस्था और प्रशासन के लिये भी इसका फायदा मिल सकता है। बहुत से लोग बस्तर के अनूठे प्राकृतिक, पौराणिक और ऐतिहासिक धरोहरों को देखने की इच्छा रखते हैं पर लम्बी उबाऊ यात्रा उन्हें रोकती है। उम्मीद है अब हवाई यात्रा से न केवल प्रदेश के, बल्कि देश-विदेश के सैलानियों को वहां की यात्रा करना आसान होगा, उनकी तादाद बढ़ेगी।

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