राजपथ - जनपथ
उपेक्षित रोये तो रोये, उपासने भी !
छत्तीसगढ़ भाजपा प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने के उस बयान से पार्टी में हलचल मची हुई है, जिसमें उन्होंने कहा कि पार्टी में परिश्रम से ज्यादा परिक्रमा करने वालों को महत्व मिला, जिससे पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा। उपासने का बयान ऐसे समय में जब आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत रायपुर में ही थे। उपासने के बयान के मायने निकाले जा रहे हैं। वैसे तो उपासने को 15 सालों में सब कुछ मिला, जिसकी हसरत आम कार्यकर्ताओं को रहती है। उन्हें मलाईदार ब्रेवरेज कॉर्पोरेशन का चेयरमैन बनाया गया था।
विधानसभा हारने के बाद भी मेयर चुनाव की टिकट दी गई। हार के बाद भी उन्हें संगठन में अहम दायित्व मिला है। पार्टी के एक नेता याद दिलाते हैं कि विधानसभा चुनाव में हार के बाद दोबारा विधानसभा की टिकट नहीं मिली, तो उपासने के भाई और कुछ करीबी लोगों ने एकात्म परिसर में जमकर हंगामा खड़ा किया था। वरिष्ठ नेताओं पर टिकट बेचने का आरोप तक मढ़ दिया था। इतना सब-कुछ होने के बावजूद उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि को देखते हुए पार्टी हमेशा उन पर मेहरबान रही है और वे संगठन में महत्वपूर्ण बने रहे हैं।
अब पार्टी प्रवक्ता जैसे अहम पद पर रहते उपासने की खुले तौर पर बयानबाजी को एक खेमा अनुशासनहीनता करार दे रहा है, तो उनके करीबी लोग मानते हैं कि उपासने जिन्हें कुछ नहीं मिला, उनके लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं। उपासने ने अपने बयान में किसी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन कुछ लोग अंदाजा लगा रहे हैं कि उनका निशाना सौदान सिंह की तरफ था।
सुनते हैं कि विष्णुदेव साय के अध्यक्ष बनने के बाद से सौदान के खिलाफ संगठन में हाशिए पर चल रहे बड़े नेताओं ने मोर्चा खोल दिया है। पार्टी के भीतर सौदान के खिलाफ मुहिम चल रही है। असंतुष्टों की नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि जिलाध्यक्षों के चयन में गुट विशेष के लोगों को ही महत्व दे रहे हैं।
एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि, जो कि लॉकडाउन के कठिन समय में सौदान के लिए रजनीगंधा का बंदोबस्त करते थे, वे भी चुपचाप दिल्ली में सौदान सिंह के खिलाफ अप्रत्यक्ष रूप से बड़े नेताओं के कान फूंककर आ गए। यह भी चर्चा है कि रायपुर और दुर्ग जिलाध्यक्ष पद को लेकर सौदान सिंह की अपनी पसंद है, जिसे पार्टी के दूसरे नेता पसंद नहीं कर रहे हैं। अगर सौदान की पसंद पर मुहर लगती है, तो पार्टी में असंतुष्टों का गुस्सा फूट सकता है। फिलहाल तो लोग नियुक्ति का इंतजार कर रहे हैं।
बड़े नेता की बड़ी जिद...!
कांग्रेस में निगम-मंडलों की दूसरी सूची तैयार है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि राजीव गांधी जयंती के मौके पर सूची जारी हो सकती है। चर्चा है कि पार्टी के एक बड़े पदाधिकारी इस बात से खफा हैं कि उनकी राय को तवज्जो नहीं दी गई। सुनते हैं कि पदाधिकारी अपने करीबी को एक मलाईदार निगम का चेयरमैन बनाने के लिए अड़ गए थे। उन्हें मनाने के लिए काफी तर्क ढूंढने पड़े। पुराने उदाहरण भी दिए गए, तब कहीं जाकर थोड़े नरम पड़े। अब पदाधिकारी के करीबी को दूसरा पद दिया जा रहा है।
अफसर कम रह गए हैं इसलिए... !
प्रदेश के कई इलाकों में मूसलाधार बारिश हुई है। इस वजह से जगदलपुर और बिलासपुर में दो एनीकट टूट गए। स्वाभाविक है कि एनीकट टूटने पर जिम्मेदारी तय होती है और उस समय के अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होती है। एनीकट के टूटने पर विभाग के अफसरों को आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि दोनों एनीकट की गुणवत्ता खराब थी। दोनों निर्माण कार्यों के एवज में इतना कुछ निचोड़ लिया गया था कि गुणवत्ता अच्छी होने का सवाल ही नहीं था। फिर भी, टूट-फूट पर कार्रवाई तो होनी है। विभाग के एक बड़े अफसर ने विभाग के मुखिया तक खबर भिजवाई कि सीनियर लेवल पर अफसर बेहद कम रह गए हैं, और निलंबन जैसी कार्रवाई से चालू परियोजनाओं पर असर पड़ सकता है। अफसर की सलाह के बाद अब कार्रवाई का दूसरा तरीका ढूंढा जा रहा है। ताकि कामकाज पर असर न पड़े।