राजपथ - जनपथ
कारतूस बाकी हैं?
नक्सलियों को कारतूस सप्लाई के प्रकरण में कुछ और खुलासे होना बाकी है। इस पूरे मामले में दो पुलिस कर्मियों को हिरासत में लेकर पूछताछ चल रही है। कांकेर में जो नक्सलियों को कारतूस की खेप पहुंचाई जानी थी, वह सुकमा पुलिस के शस्त्रागार से निकली थी। सुनते हैं कि पुलिस की टीम ने 11 सौ से अधिक कारतूस जब्त किए, मगर 695 कारतूस की ही बरामदगी दिखाई है। ये कारतूस सुकमा के शस्त्रागार के निकले थे। चर्चा है कि कुछ और लोगों की धरपकड़ होना बाकी है, इसके बाद बाकी बचे कारतूस की बरामदगी दिखाई जाएगी। कुल मिलाकर नक्सलियों को कारतूस सप्लाई के मामले को लेकर पुलिस महकमा काफी गंभीर है, और इससे जुड़े हुए किसी भी व्यक्ति के खिलाफ प्रकरण कमजोर न हो, इसका पुख्ता बंदोबस्त किया जा रहा है। देखना है कि कितने और लोगों के खिलाफ कार्रवाई होती है। आखिर सवाल पुलिस की अपनी जिंदगी का है जो कि इन्हीं कारतूसों से जा सकती थी.
पुराना सुलझा केस, अब जुर्म दर्ज..
दुर्ग-भिलाई इलाके में एक बुजुर्ग के करीब पौन करोड़ के शेयरों की जालसाजी हुई, और उन्हें जयपुर-मुम्बई के दलालों ने उनकी जानकारी के बिना बेचने की कोशिश की। यह मामला सालभर के और पहले दुर्ग पुलिस की जानकारी में आया, और उस वक्त वहां एडिशन एसपी चिटफंड के पद पर ऋचा मिश्रा के सामने पहुंचा। सीनियर अफसरों की जुबानी हुक्म के बाद उन्होंने जयपुर, अहमदाबाद, और मुम्बई चारों तरफ जांच की, टेलीफोन पर, और उन प्रदेशों में अपने परिचित अफसरों की मदद से। पूरा केस सुलझा लिया, लेकिन उस वक्त पुलिस ने उसे थाने में दर्ज करने से मना कर दिया था, और सुलझा हुआ केस तमाम सुबूतों के साथ पड़े रह गया। अब अफसरों ने इस केस पर एफआईआर करवाई है, और जो लोग साल भर पहले गिरफ्तार हो सकते थे, हो सकता है कि उनके जेल जाने की बारी अब आए।
अंग्रेजी तो अंग्रेजी, हिन्दी का हाल...
अंग्रेजी भाषा की गलतियां होने पर लोग मजाक उड़ाते हैं कि अंग्रेज चले गए अंग्रेजी छोड़ गए। अब छोड़ी गई चीज तो टूटी-फूटी होगी ही। लेकिन जो अंग्रेज न लाए थे, और न छोड़ गए, उस पर क्या कहा जाए? खासकर हिन्दी इलाके में हिन्दी की गलतियों पर?
रायपुर के एक पत्रकार अनिरुद्ध दुबे को अभी एक दफ्तर में हिन्दी में बना हुआ एक नोटिस मिला, जिसकी हिन्दी पढऩे के बाद यह कहना मुश्किल है कि इसे राष्ट्रभाषा बताते हुए लोग एक वक्त अंग्रेजी हटाओ आंदोलन चलाते थे। और तो और शहर में जो बड़े-बड़े सरकारी बोर्ड लगे हैं, उन पर देशभक्ति के बड़े विख्यात शेर लिखे हैं, या कविताओं के कुछ शब्द लिखे हैं, और वे भी गलत है। बाग-बगीचों में लगे हुए नोटिस की हिन्दी भी चौपट है। अब म्युनिसिपल और सरकार की स्कूलों में इस शहर में हजार-पांच सौ टीचर होंगे, हिन्दी के सैकड़ों टीचर में से भी किसी को यह नहीं लगता कि इसे सुधरवाया जाए।