राजपथ - जनपथ
मुखियाओं का नो रिस्क चैलेंज
छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक, पुलिस और जंगल विभाग के मुखिया प्राय: सभी कार्यक्रमों में एक साथ दिखाई देते हैं। राज्य शासन की प्रमुख बैठकों में भी इस तिकड़ी को खास तवज्जो मिलती है, लेकिन कोरोना काल में इन अधिकारियों ने अपने आपको सीमित कर लिया है। संकट के इस दौर में जब पूरा अमला कोरोना से निपटने में लगा है तो प्रशासनिक मुखिया राम वनगमन पथ, खारुन रिवर फ्रंट या बूढ़ातालाब की सफाई जैसे प्रोजेक्ट्स में ज्यादा सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। हालांकि ये तमाम सरकार की महत्वाकांक्षी योजनायें हैं। प्रशासनिक मुखिया के बारे में कहा भी जाता है कि वे टारगेट ओरिएटेंड काम में काफी निपुण हैं, लिहाजा उन्हें इन योजनाओं की मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी दी गई होगी, लेकिन संकट के इस समय में उनका बहुआयामी उपयोग किया जा सकता है। इसी तरह पुलिस प्रमुख भी फास्ट एक्शन टेकिंग अफसर के रुप में जाने जाते हैं। पुलिस में सुधार की बात हो या फिर अपराध पर नियंत्रण का मामला हो। आम लोगों की समस्याओं का तुरंत समाधान करना भी उनकी प्राथमिकता में होता है। वे भी पुराने पुलिस मुख्यालय में टेंट लगाकर अपने तरीके से काम कर रहे हैं। इसी तरह वन प्रमुख की छवि फील्ड में बेहतर रिजल्ट देने वाले अफसर के रुप में है। इसके बाद भी इन काबिल अफसरों की सीमित भूमिका पर लगातार चर्चा होती है। इनके कामकाज को करीब से जानने वाले इस बात से वाकिफ हैं कि अगर इन्हें फ्री हैंड दिया जाए, तो और बेहतर काम कर सकते हैं। दरअसल, प्रशासनिक मुखिया के पास समय कम है वे इस साल सितंबर में रिटायर हो जाएंगे, जबकि पुलिस और वन मुखिया के रिटायरमेंट में समय है। पुलिस मुखिया साल 2023 में और वन प्रमुख साल 2022 में सेवानिवृत्त होंगे। सभी रिटायरमेंट तक पद पर बने रहना चाहते हैं, लिहाजा वे भी ऐसा कोई काम नहीं करना चाहते, जिसकी वजह से उनकी कुर्सी पर किसी प्रकार का खतरा हो। लगता है कि तीनों अफसर नो रिस्क नो चैलेंज के मोड पर चल रहे हैं।
फटाफट अंदाज में शुक्ला
छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आलोक शुक्ला का रिटायरमेंट नजदीक है, लेकिन वे तेजी से काम कर रहे हैं। साफ है कि वे रिटायरमेंट के बाद भी काम करते रहेंगे। लॉकडाउन पीरियड में ही उन्होंने ऑनलाइन पढ़ाई के लिए वेब पोर्टल डेवलप किया। इसी तरह 40 उत्कृष्ट स्कूल शुरू करने का प्रोजेक्ट भी उन्हीं का है। वे आईटी के एक्सपर्ट माने जाते हैं। उन्हें स्कूल शिक्षा विभाग में कसावट लाने की जिम्मेदारी दी गई है। वे सीएस आरपी मंडल से एक साल सीनियर हैं, लेकिन नान मामले के कारण वे प्रमुख सचिव तक ही पहुंच पाए हैं। नई सरकार में पोस्टिंग के वक्त विभाग के लोगों को लगा था कि उन्हें काम करने के लिए ज्यादा वक्त नहीं मिलेगा, तो उनकी योजनाएं लटक जाएंगी। लेकिन ऐसा होगा, इसकी संभावना नहीं दिखती, क्योंकि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के साथ ही उनकी वापसी इसी भरोसे के साथ हुई थी कि इस सरकार में रिटायर नहीं होंगे। यही वजह है कि काम संभालते ही उन्होंने फटाफट क्रिकेट की तरह अपनी पारी शुरु की और टारगेट को पूरा करने बड़े शॉट्स भी लगा रहे हैं।
नांदगाव में महंत का दबदबा
राजनांदगांव के कांग्रेस संगठन में विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत के समर्थकों का दबदबा बढ़ा है। जिले के कांग्रेस विधायक दलेश्वर साहू को डॉ. महंत का करीबी माना जाता है। महंत की सिफारिश पर शाहिद भाई और डॉ. थानेश्वर पाटिला की महासचिव पद पर नियुक्ति की गई। शाहिद भाई को कोरबा का प्रभारी महासचिव बनाया गया है। कोरबा संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व डॉ. महंत की पत्नी ज्योत्सना महंत करती हैं। यही नहीं, कुलबीर छाबड़ा को राजनांदगांव शहर का दोबारा अध्यक्ष बनवाने में डॉ. महंत की भूमिका रही है।
पार्टी हल्कों में चर्चा है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा का संसदीय जीवन खत्म होने के बाद से राजनांदगांव की राजनीति में महंत खेमे का दखल बढ़ा है। इससे पहले तक राजनांदगांव में जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में वोरा की सिफारिशों को ही महत्व मिलता था। वोराजी राजनांदगांव से एक बार सांसद रहे हैं। राजनांदगांव जिले की सीटों से तेजकुंवर नेताम और भोलाराम साहू विधायक रहे, ये दोनों वोरा के समर्थक रहे। तेजकुंवर को विधानसभा में टिकट नहीं मिली, दूसरी तरफ भोलाराम साहू लोकसभा चुनाव हार गए। इसके बाद से वोरा के समर्थक महंत से जुड़ गए, ऐसे में महंत का दबदबा बढऩा स्वाभाविक है।