राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : धरना तेरी किस्में अनेक...
13-May-2020
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : धरना तेरी किस्में अनेक...

धरना तेरी किस्में अनेक...

दारूबंदी की मांग को लेकर भाजपाई अपने घरों पर धरने पर बैठे। बड़े नेता रमन सिंह, बृजमोहन अग्रवाल, रामविचार नेताम और अजय चंद्राकर के धरने को मीडिया में जगह जरूर मिली, लेकिन इसके लिए पार्टी के मीडिया सेल को भरपूर मेहनत करनी पड़ी। बृजमोहन को छोडक़र ज्यादातर बड़े नेता शहर के बाहरी इलाके मौलश्री विहार में रहते हैं। और यहां लोगों की आवाजाही भी कम रहती है। ऐसे में लोगों तक इस अनोखे धरने की जानकारी के लिए मीडिया ही एकमात्र स्त्रोत रह गया था।

दूसरी तरफ, प्रेमप्रकाश पाण्डेय के धरने को मीडिया कवरेज ज्यादा नहीं मिला, लेकिन वह यहां आम लोगों की निगाह में रहा। प्रेमप्रकाश का बंगला शंकर नगर में है और बंगले के ठीक सामने ट्रैफिक सिग्नल है।प्रेमप्रकाश अपने बंगले के पोर्च में  डॉ. सलीम राज और आकाश विग के साथ कुर्सी डालकर बैठे थे। बंगले का दरवाजा खोल दिया गया था और ट्रैफिक सिग्नल के पास लोगों की जमा भीड़  प्रेमप्रकाश का हाथ जोडक़र-हिलाकर अभिवादन करते दिखी। खुद सीएम भूपेश बघेल का काफिला प्रेमप्रकाश के बंगले के सामने से होकर गुजरा। भूपेश ने प्रेमप्रकाश और थोड़ी दूर आगे बृजमोहन के धरने को देखा। बाकी के धरने का हाल जंगल में मोर नाचा...जैसा रहा। मगर प्रेमप्रकाश और बृजमोहन का धरने का नजारा सबने देखा वाला रहा।

 दारू या मज़दूर ?

दारूबंदी के खिलाफ धरने से भाजपा का एक बड़ा खेमा असहमत था। यह खेमा लॉकडाउन के चलते मजदूरों की बेहाली, क्वॉरंटीन सेंटर की बदहाली जैसे मुद्दे को उठाने के पक्ष में था। मगर दारूबंदी को धरना-प्रदर्शन का मुख्य विषय बनाने पर कुछ बड़े नेताओं के बीच आपस में किचकिच भी हुई। पार्टी के एक बड़े नेता का कहना था कि दारू का सरकारीकरण भाजपा की सरकार ने किया। हर चुनाव में मतदाताओं को रिझाने के लिए दारू का खुलकर इस्तेमाल करती थी।

विधानसभा चुनाव का हाल तो यह रहा कि सरकारी दबाव के चलते बाकी दल के प्रत्याशियों को दारू जुटाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी थी।और यह तमाम बातें आम जनता की जानकारी में भी थीं. जबकि भाजपा प्रत्याशियों और समर्थकों की दारू तक आसान पहुंच थी। विधानसभा चुनाव में  बड़े पैमाने पर दारू पकड़ी भी गई। ऐसे में जब कोरोना प्रकोप के चलते लोगों की नौकरियां जा रही है, देश-प्रदेश में भय का वातावरण बना हुआ है। ऐसे में तात्कालिक मुद्दों को नजर अंदाज करने से कोई अच्छा संदेश नहीं जा रहा है। चूंकि धरने का मुद्दा संगठन में हावी खेमा ने तय किया था, इसलिए ज्यादातर नेता औपचारिकता ही निभाते दिखे।

ऑनलाइन पढ़ाई के रिस्क

लॉकडाउन पीरियड में स्कूल-कॉलेजों में ऑनलाइन क्लासेस चल रही हैं। यह कितना उपयोगी होगा यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन ऑनलाइन क्लासेस से गुरुजी खासे परेशान हो रहे हैं। ऐसा नहीं है कि उनको पढ़ाने में दिक्कत हो रही है या वे पढ़ाना नहीं चाह रहे हैं, बल्कि वे इसके रिस्क से घबराए हुए हैं। घर से क्लास के लिए शिक्षकों को सुबह से मशक्कत करनी पड़ती है। क्लास शुरु करने से आधा घंटा पहले वे सभी स्टूडेंट्स को कनेक्ट होने के लिए संदेश भेजते हैं या फोन करते हैं। इस दौरान कुछ बच्चे एंड्राइड फोन नहीं होने की बात कह कर बंक मार देते हैं। गिने-चुने बच्चों के साथ क्लास शुरु होते ही पढ़ाई की बात कम व्यक्तिगत समस्याएं ज्यादा होती हैं। कुछ बच्चे तो शिक्षक से पहले ही कह देते हैं कि उनके पास एक केवल एक जीबी का डाटा है और उसको भी पूरे दिन चलाना है, तो आप अपनी बात लिमिटेड समय में खत्म कर दीजिए। ये समस्या स्कूल नहीं बल्कि कॉलेज के बच्चों के साथ भी है। जो थोड़े-मोड़े बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई में दिलचस्पी दिखाते भी है, तो नेटवर्क की प्राब्लम आ जाती है। बच्चों को क्लास शुरु होने से आधा घंटे पहले अपने घर से दूर तालाब किनारे या पेड़ पर चढऩा पड़ता है। ताकि नेटवर्क मिल सके।ऐसे बच्चों को पढ़ाते समय में शिक्षक की चिंता रहती है कि कहीं घर से बाहर निकले स्टूडेंट्स को पुलिस न पकड़ ले या पेड़ से गिर न पड़े। कुल मिलाकर ऑनलाइन पढ़ाई तो ठीक है लेकिन उसके रिस्क और समस्याएं भी कम नहीं।  

 कोरोना के डर ने बनाया आत्मनिर्भर

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को अपने संदेश में आत्मनिर्भर बनने पर खासा जोर दिया। उनका इशारा रोजगार और व्यवसाय को लेकर था, लेकिन लॉकडाउन और कोरोना संक्रमण के डर ने लोगों को कुछ हद तक आत्मनिर्भर बना दिया है। लोगों की छोटे-मोटे कामकाज के लिए आत्मनिर्भरता कम हुई है और उन्होंने खुद काम करने की आदत डाल ली है। वरना नेताओं से लेकर सरकारी अधिकारियों के पास हर काम के लिए अलग-अलग कर्मचारियों की तैनाती हुआ करती था। मसलन, घर के गार्डन की देखभाल के लिए माली, खाना बनाने के लिए बावर्ची, साफ-सफाई के लिए सफाई कर्मी, गाड़ी के लिए ड्राइवर और घर के दूसरे कामों के लिए अलग कर्मचारी। अब ये सब काम घर के लोग आपस में बांट कर रहे हैं। इसका फायदा यह हुआ कि बंगला ड्यूटी की परंपरा कुछ कम हुई है। इन सरकारी कर्मचारियों का मूल काम में उपयोग हो रहा है। कुल मिलाकर जिस परंपरा को कोई नहीं रोक पाया, उसे कोरोना के खौफ ने तो रोक दिया है। कहते हैं ना कि हमारे देश में भय और लालच से कोई भी काम करवाए जा सकते हैं। यहां भी भले ही भय के कारण, लेकिन बरसो से चली आ रही परंपरा पर विराम तो लगा है। अब देखने वाली बात यह है कि यह भय कितने दिनों तक रहता है।

‘अ’सरदार लोग

लॉकडाउन में फंसे मजदूरों की वापसी शुरु हो गई है, लेकिन अभी भी रोजी-रोटी की तलाश में दूसरे राज्यों में गए मजदूर परिवार सहित पैदल और ट्रकों में लद कर लौट रहे हैं। शहर टाटीबंध में इसका नजारा देखा जा सकता है। हालत यह है कि भूखे-प्यासे मजदूर लौट रहे हैं। यहां उनके गंतव्य तक पहुंचने की न कोई व्यवस्था है और न ही उनके खाने-पीने का कोई इंतजाम है। मजदूर जैसे-तैसे अपनी मंजिल तक पहुंचने में लगे हैं। इस दौरान सरकारी अमला पूरा गायब है। वो तो गनीमत है कि इलाके के सिख समाज के लोग वहां मजदूरों की सेवा के लिए डटे हुए हैं। उनके लिए पानी और खाने-पीने के सामान के साथ घर पहुंचाने के लिए नि:स्वार्थ मदद कर रहे हैं। उनके सेवा भाव और मजदूरों की तकलीफ को देखकर किसी का भी दिल पसीज जाएगा। समाज के लोगों की जितनी तारीफ की जाए कम है, क्योंकि वे दिन-रात थके हारे मजदूरों और परिवार जिसमें छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल हैं, उनकी तीमारदारी कर रहे हैं। इस समाज के लोगों की सेवा भावना पूरी दुनिया में मशहूर है, इस संकट के इस समय में भी इसके लोगों ने मिसाल पेश की है।

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