राजपथ - जनपथ
पहुंच और किस्मत का धनी अफसर
सरकार किसी की भी हो, लेकिन कुछ अधिकारी ऐसे जुगाड़ू होते हैं कि उनकी हमेशा तूती बोलती है। कई बार तो ऐसी स्थिति आ जाती है जब बड़े अधिकारी और जनप्रतिनिधि भी जुगाड़ुओं का कुछ नहीं बिगाड़ पाते और वे अपनी मनचाही जगह पर जमे रहते हैं। ऐसे ही बलौदाबाजार-भाटापारा जिले में पदस्थ सहायक खाद्य अधिकारी अनिल जोशी हैं, जिनकी सेटिंग और पहुंच का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विधायक-कलेक्टर तक उसको ट्रांसफर के बाद रिलीव नहीं करा पा रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि वो कोई बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, बल्कि इस अफसर का तबादला ही शिकायतों के आधार पर हुआ था। बताते हैं कि इस सहायक खाद्य अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के भी आरोप हैं। जिले के एक पूर्व कलेक्टर ने तो उनके खिलाफ बकायदा गोपनीय जांच करवाई थी और रिपोर्ट सरकार को भेजी थी। जिसमें उन्होंने लिखा था कि उक्त अधिकारी चोरी-छुपे राइस मिल संचालित कर रहा है और विभाग के काम में बेवजह दखलंदाजी करता है। उसे फील्ड से हटाकर ऑफिस में अटैच भी किया गया। कलेक्टर की चि_ी के बाद शासन स्तर पर उसका तबादला कर दिया गया था। सालभर से ज्यादा समय बीत गया है. लेकिन वो रिलीव नहीं किए गए हैं।
कलेक्टर के इतने कड़े पत्र और शासन स्तर पर ट्रांसफर के बाद भी उसका उसी जिले में जमे रहना बड़े अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को चिढ़ाने के लिए पर्याप्त है। उसके खिलाफ जांच में पाया गया कि वह मुख्यालय के बजाए राजधानी में रहता है। तबादला आदेश की तामीली के लिए स्थानीय विधायक ने भी शासन-प्रशासन से पत्राचार और शिकायतें की, लेकिन इस अधिकारी की सेटिंग की दाद देनी पड़ेगी कि उसका बाल भी बांका नहीं हो पाया है। इस मामले में समाचार पत्रों और टीवी में भी खूब खबरें प्रसारित हुई। इसका भी आज तक कुछ असर नहीं हुआ। कई बार तो ऐसे मौके भी आए जब इस अधिकारी की ओर से दूसरे उच्च और समकक्ष अधिकारियों ने मीडिया से लेकर जनप्रतिनिधियों के समक्ष पैरवी की। विधानसभा तक में उसके खिलाफ सवाल लगाए गए। मीडिया के सवाल और जनप्रतिनिधि के दबाव में मंत्री जी ने भी 15 दिनों के भीतर ट्रांसफर करने का ऐलान कर दिया था। लेकिन अभी तक उसका कुछ नहीं हुआ और वह स्थानीय अनाज व्यापारियों और राइस मिलर्स की नाक में दम किए हुए है।
इस अधिकारी के ग्रह नक्षत्र भी उसका भरपूर साथ देते हैं। जैसे ही कार्रवाई की बात जोर पकड़ती है। कुछ ना कुछ जरुरी कामकाज का रोडा अटक जाता है। पिछले दिनों उसका तबादला इसलिए रुक गया था कि धान खरीद का सीजन चल रहा था और किसान सीधे खाद्य विभाग के जुड़े रहते हैं। धान खरीद निपटा तो कोरोना आ गया। इस समय भी राशन वितरण से लेकर तमाम काम खाद्य विभाग के जरिए संचालित हो रहे हैं। ऐसे में ट्रांसफर से कामकाज प्रभावित होने की आशंका से पेंच फंस गया। इस जिले में राइस मिल की कस्टम मिलिंग के चावल में भी करोड़ों की फेरा-फेरी उजागर हुई थी। करोडों रुपए का चावल जमा नहीं किए जाने के कारण एफआईआर भी दर्ज कराई गई थी और खाद्य अफसरों की भूमिका पर सवाल उठे थे। कुल मिलाकर जुगाड़ के साथ-साथ इस अधिकारी की किस्मत भी बुलंद है। जैसे ही कार्रवाई होने की उम्मीद दिखती है, कोई न कोई जुगाड़ फिट हो जाता है और कार्रवाई रुक जाती है। उक्त खाद्य अफसर बड़े-बड़ों को तू डाल-डाल तो मैं पात-पात की तर्ज पर चकमा दे रहा है।
सेवा के बहाने खुद को स्थापित
पीएम केयर में चंदा जुटाने के लिए भाजपा में किचकिच चल रही है। पार्टी के कई इसमें रूचि नहीं ले रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी के गृह जिले कांकेर का हाल यह है कि उन्होंने अलग-अलग समाज के प्रमुखों से पीएम केयर में दान देने की अपील की थी। मगर जिले में प्रभावशाली क्षत्रिय समाज के लोगों ने पीएम केयर के बजाए सीएम कोष में दान दे दिया। जबकि इस समाज के मुखिया महावीर सिंह राठौर हैं, जो कि भाजपा के सीनियर नेता हैं।
राठौर की प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी से नहीं जमती है। ऐसे में उसेंडी की बात मानना उनके लिए जरूरी भी नहीं था। यही नहीं, पार्टी के एक बड़े नेता को पीएम केयर में धन जुटाने का अहम दायित्व सौंपा गया है। मगर नेताजी के बेटे ने खुद एनजीओ का गठन किया और अलग-अलग जगहों से राशि जुटाकर पीपीई किट और अन्य सामग्री बांटना शुरू कर दिया। नेता पुत्र की निगाह अगले विधानसभा चुनाव पर है और वे इसके लिए अभी से तैयारी कर रहे हैं। सेवा के बहाने खुद को स्थापित करने का अच्छा मौका है, वे चूकना नहीं चाहते हैं। ([email protected])