राजपथ - जनपथ
पुरानी कहानी पर नई फिल्म
बात तीस साल पुरानी है रायपुर शहर में एक आबकारी अफसर के यहां छापा पड़ा। अफसर के परिजनों ने नोटों से भरा बैग पड़ोसी के घर फेंका, मगर यह भी छापामार अफसरों की निगाह से नहीं बच पाया और बैग जब्त हो गया। आप सोच रहे होंगे कि पुरानी बातों का यहां जिक्र क्यों हो रहा है? वो इसलिए कि कुछ इसी तरह का वाक्या दोबारा हुआ है। फर्क इतना है कि नोटों से भरा बैग तो बच गया, लेकिन इसमें से नोटों के कुछ बंडल गायब हो गए, जिसको लेकर अभी तक किचकिच चल रही है।
हुआ यूं कि कुछ समय पहले नामधारी लोगों के यहां छापा पड़ा था। इनमें से एक को छापेमार दल के आने की सूचना मिल गई, आनन-फानन में परिवार के एक सदस्य ने नोटों से भरा सूटकेस पड़ोसी के यहां फेंक दिया। जब सब कुछ निपट गया, तो दो-तीन दिन बाद नामधारी पड़ोसी के यहां पहुंचा। उसे बैग जैसे का तैसा मिला।
पड़ोसी ने अपना धर्म निभाया और सूटकेस का पूरा ध्यान रखा। नामधारी, पड़़ोसी के गले लगकर इस उपकार का धन्यवाद दिया। बात यही खत्म नहीं हुई, नामधारी ने बाद में सूटकेस में रखे नोटों की गिनती की, तो इसमें करीब आधा सीआर नोट कम निकले। नामधारी ने पड़ोसी से इसको लेकर पूछताछ की, तो पड़ोसी ने अनभिज्ञता जताई।
थोड़ा बहुत नोट होता, तो कोई बात नहीं थी। पूरा आधा सीआर गायब हो गया। नामधारी की दिक्कत यह है कि इसको लेकर वह कानूनी मदद लेना तो दूर, किसी को बता भी नहीं पा रहा है। एक-दो ने हस्तक्षेप भी किया, मगर कुछ नहीं हुआ। अब पड़ोसी से रिश्ते में खटास आ गई है। मगर करे क्या, कालाधन तो काला ही होता है। पड़ोसी ने सूटकेस सुरक्षित रख इज्जत भी तो बचाई है।
..पहले भी आ सकते थे मगर...
सरकार के एक मलाईदार निगम के प्रमुख अफसर लॉकडाउन की वजह से तमिलनाडु में फंस गए। महीनेभर बाद किसी तरह अनुमति लेकर अब सड़क मार्ग से वापस आ रहे हैं। उनके आने-जाने का किस्सा भी कम रोचक नहीं है। हुआ यूं कि अफसर पड़ोसी राज्य में खेलकूद के लिए गए थे। वहां उनका कंधा लचक गया। अफसर को यहां के डॉक्टरों पर भरोसा नहीं था, उन्होंने तमिलनाडु की तरफ रूख किया, तब से वहां फंसे हैं।
सुनते हैं कि अफसर अनुमति लेकर पहले भी सड़क मार्ग से आ सकते थे। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। अंदर की खबर यह है कि निगम में एक बड़े बिल को लेकर किचकिच चल रही थी। अफसर उसे क्लीयर नहीं करना चाहते थे। लिहाजा, उन्होंने मार्गदर्शन के लिए शासन के पास भेज दिया और खुद लॉकडाउन में फंसे रहे। इसी बीच उन्हें सूचना मिली कि भुगतान को हरी झंडी मिल गई है। पार्टियों को भुगतान करना बाकी है। उन्होंने तुरंत कोशिश कर रायपुर आने की अनुमति प्राप्त कर लिया। मोटा भुगतान है। ऐसे में पार्टियां सेवा सत्कार के लिए स्वाभाविक तौर पर तैयार रहती हैं। ऐसे में अफसर क्यों पीछे रहे।
गाली नहीं प्यार मिला
कोरोना महामारी के इस दौर में पुलिस को कई तरह की चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। कानून व्यवस्था के साथ लॉकडाउन और सार्वजनिक स्थानों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराना मुश्किल टॉस्क है। चौक-चौराहों और सड़कों पर बेवजह घूमने वालों पर कार्रवाई करना, डॉक्टरों और मेडिकल स्टॉफ को सुरक्षा देना जैसे कई काम एक साथ पुलिस के ही जिम्मे में आ गया है। हालांकि छत्तीसगढ़ में दूसरे राज्यों की तरह पुलिस और मेडिकल स्टाफ पर हमले की खबर नहीं मिलना राहत की बात है, लेकिन इन सब कामों में कड़ाई करने के कारण सीधा असर छवि पर पड़ता है और गालियां ही मिलती है। इसके बावजूद छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पुलिस की अच्छी छवि बनी है। पुलिस के जवान और निचले स्तर के कर्मी भी इससे काफी खुश है। दिन रात हर मौसम सड़कों पर ड्यूटी करने वाले जवानों के प्रति सम्मान का भाव जगा है। पब्लिक से लेकर वीआईपी भी उनके इस काम की तारीफ कर रहे हैं। ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि पुलिस को उनके काम के लिए हर वर्ग के लोगों से सराहना मिले। सामाजिक संस्थाओं के कार्यकर्ताओं से लेकर आम व्यक्ति भी पुलिस की मदद के लिए सामने आ रहे हैं। चौक चौराहों में तैनात जवानों को कोई पानी की बोतल दे रहा हैं, तो कोई कोल्ड ड्रिंक दे रहे हैं। इतना ही नहीं उनके खाने पीने के लिए लोग घरों से टिफिन पहुंचाने का काम कर रहे हैं। इसमें घर की महिलाएं और आसपास के बच्चे भी शामिल हैं। लोगों के मन में पुलिस के प्रति सम्मान से जवान भी गर्व अनुभव कर रहे हैं। उनकी बातचीत और काम करने के तरीके में काफी बदलाव देखा जा रहा है। इस महामारी के दौर में राहत की बात है कि पब्लिक और पुलिस के बीच दोस्ताना व्यवहार कायम हो पाया है। पुलिस के जवान भी इस बात को महसूस कर रहे हैं कि ऐसा पहली बार हुआ कि गाली खाने वालों को प्यार मिल रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह बदलाव लॉकडाउन के बाद भी बना रहेगा। ([email protected])