राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कितने इंतजाम करें?
25-Apr-2020
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कितने इंतजाम करें?

कितने इंतजाम करें? 
लॉकडाउन के चलते व्यसन के आदी लोगों को काफी दिक्कतें हो रही है। सुनते हैं कि भाजपा के एक ताकतवर नेता को भी पान मसाले-जरदे की बुरी लत लगी है। उनके लिए पान मसाला-जर्दा का बंदोबस्त करने में पार्टी के लोगों को काफी परेशानी हो रही है। नेताजी संगठन के कर्ता-धर्ता माने जाते हैं। ऐसे में उनके लिए पान मसाले-जर्दा का जुगाड़ करने के लिए कई नेता लगे रहे। नेताजी को विशेष ब्रांड का पान मसाला ही पसंद है। मगर लॉकडाउन की वजह से उनके लिए मनपसंद ब्रांड का पान मसाला नहीं मिल पा रहा था। 

किसी तरह कुछ नेताओं ने थोक व्यापारी के पता ठिकाना ढूंढकर नेताजी के लिए दो-तीन डिब्बा किसी तरह पान मसाला का बंदोबस्त किया। नेताजी भी शौकीन निकले। खाली बैठे-बैठे हफ्ते-दस दिन के कोटे को दो-तीन दिनों में ही खत्म कर दिया। पार्टी के लोग नेताजी के पान मसाले के व्यसन से काफी परेशान हैं। पहले पार्टी ने उन्हें पीएम केयर के लिए राशि जुगाड़ करने का दायित्व सौंप दिया है और अब नेताजी के लिए पान मसाला-जर्दा का इंतजाम करने की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी आन पड़ी है, जो कि पीएम केयर के लिए धन राशि जुटाने से ज्यादा पड़ रहा है।

ठलहा बनिया का करय...
छत्तीसगढ़ी में एक कहावत काफी मशहूर है कि ठलहा बनिया का करय, ये कोठी के धान ल वो कोठी म करय। यह कहावत दरअसल व्यापारियों के लिए है, जो कभी खाली नहीं बैठते। और तो और वे खाली समय में एक कमरे का सामान दूसरे कमरे में रखने का जुगाड़ निकाल लेते हैं। भले ही दूसरों के लिए इसका कोई औचित्य न हो। लॉकडाउन के इस समय में कई लोग ठलहा बनिया हो गए हैं, उनके पास भी कोई काम नहीं है तो एक कोठी के धान को दूसरे में करने में लगे हैं। ऐसा ही नजारा छत्तीसगढ़ के पत्रकारिता विश्वविद्यालय में देखने को मिल रहा है, जहां पर एक कोठी के धान को दूसरे कोठी में करने के लिए पानी की तरह पैसे बहाए जा रहे हैं। साल भर पहले रुसा से विश्वविद्यालय को 20 करोड़ रुपए मिले थे। जिसमें से करीब 7 करोड़ रुपए भावी पत्रकारों के लिए स्टूडियो बनाने में खर्च किया गया।  स्टूडियो बनाने के बाद भी 13 करोड़ रुपए बच गए। ऐसे में यहां के अफसरों ने साल भर पहले बने स्टूडियो में ही तोड़ फोड़ शुरु कर दिया। बताया जा रहा है कि लॉकडाउन में यहां की टाइल्स उखाड़ दी गई, जबकि टाइल्स बिल्कुल सही सलामत है। बावजूद इसके यहां नई टाइल्स लगवाई जा रही है। विवि प्रशासन ने लॉकडाउन में ठलहा बनिया की तरह धान को इधर से उधर करने का काम तो ढूंढ लिया, लेकिन उनको कौन बताए कि ठलहा बनिया पाई पाई का सही उपयोग करता है और एक रुपए का भी नुकसान करने के बारे में सोच भी नहीं सकता। लेकिन पत्रकारिता विवि में तो अफसर करोड़ों रुपए फूंक कर ठलहा बनिया बनने की कोशिश कर रहे हैं। इतना सब कुछ होने के बाद भी उन्हें कोई रोकने टोकने वाला नहीं है। एक तो यहां लॉकडाउन का उल्लंघन करके मजदूरों से काम करवाए जा रहा है, उलटे सरकारी पैसों का खुलकर दुरुपयोग किया जा रहा है। पहले ही इस निर्माण कार्य में भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। उससे भी अधिकारियों का मन नहीं भरा तो तोडफ़ोड़ कर करोड़ों का वारा न्यारा करने में तुले हैं। ऐसे उदाहरण और दूसरे विभागों में मिल जाएंगे, जहां सिर्फ सरकारी पैसों की अफरा-तफरी के लिए अधिकारी ठलहा बनिया बनते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि ऐसा करने की छूट कैसे मिल सकती है। लोगों का मानना है कि छत्तीसगढ़ में पिछले कई सालों से सेठों और धन कुबेरों की सरकार थी, तो संभव है कि उस दौर में ठलहा बनिया की परिभाषा बदल गई हो, लेकिन एक बरस से ज्यादा समय से राज्य में खालिस छत्तीसगढिय़ा की सरकार है। ऐसे में तो उम्मीद की जानी चाहिए कि इस छत्तीसगढ़ी कहावत का सही मायने निकाला जाएगा।

जय वीरु या गब्बर-ठाकुर? 
कोरोना युग में देशभर में जिलों के एसपी कलेक्टर पर बड़ी जिम्मेदारी है। सभी लॉकडाउन और कानून व्यवस्था के साथ कोरोना संक्रमण के खिलाफ अपने-अपने तरीके से लड़ाई लड़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी एसपी कलेक्टर इस अभियान में जुटे हुए हैं। हालांकि राजधानी होने के कारण पूरी सरकार, पूरा प्रशासनिक अमला और तमाम बड़े लोगों की राजधानी की एक-एक गतिविधियों पर नजर है। ऐसे में उनकी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। राजधानी रायपुर में भी लॉकडाउन का पांचवा हफ्ता गुजरने वाला है। राजधानी को कोरोना संक्रमण और दूसरे मामलों में सुरक्षित माना जा रहा है। ऐसे में एसपी कलेक्टर को तो क्रेडिट का कुछ हिस्सा जाना ही चाहिए। बड़ा हिस्सा तो सरकार और प्रशासन के बड़े लोगों को जाना तय है। फिर भी दोनों अफसरों ने अपने लिए क्रेडिट का कुछ हिस्सा बचा लिया, यह भी बड़ी बात है। हालांकि कुछ हिस्सा पाने के लिए इन अफसरों को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी। राज्य के मुखिया और प्रभावशाली प्रशासनिक अमले के सामने तो ये दोनों अफसर जय-वीरु की जोड़ी की तरह डटे रहे। फ्लैग मार्च और सोशल डिस्टेंशिंग को लागू करवाने के लिए भी दोनों अफसर सड़क पर एक साथ उतरे। 

कलेक्टर-एसपी के बीच जय वीरु का कॉम्बिनेशन वैसे तो काफी पुराना है। रमन सिंह अपने राज में तो कलेक्टर एसपी को इन्हीं फिल्मी किरदारों के अनुरुप तालमेल रखने की हिदायत देते थे, लेकिन उस वक्त विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस ने इसकी आलोचना की थी। अब जब कांग्रेस सत्ता में है और अफसर जय वीरु की तरह दोस्ती निभा रहे हैं, तो किसी को आपत्ति तो नहीं होनी चाहिए। 

किसी जिले को बर्बाद होना हो, तो वह कलेक्टर और एसपी के बीच झगडे से हो सकता है. और यह झगड़ा पानी में हगे की तरह तुरंत ही सतह पर दिखने लगता है. हर राज्य में ऐसे कुछ मामले होते हैं, और तेज मुख्यमंत्री तुरंत ही किसी एक को हटा देते हैं. जय-वीरू की जोड़ी गब्बर और ठाकुर की जोड़ी की तरह हो जाती है जो अधिकारों के लिए, ये हाथ हमका दे-दे ठाकुर, के अंदाज़ में झगड़ते हैं. 

छत्तीसगढ़ की राजधानी में पिछले 40 बरसों से अच्छी तालमेल वाली जोडिय़ां ही आम तौर पर रही हैं. कुछ जोडिय़ां जरूरत से ज्यादा अच्छी भी रहीं. सुनील कुमार कलेक्टर थे, और सीपीजी उन्नी एसपी, दोनों की दोस्ती भी अच्छी थी, और काम भी अच्छा था. दिक्कत यह थी कि दोनों मलयाली थे. और लोगों के बीच आपस में कोई गोपनीय बात करनी होती थी तो मलयाली में शुरू हो जाते थे. कलेक्टर-एसपी की कहानियां अनंत रहती हैं। ([email protected])

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