राजपथ - जनपथ
भाजपा हाईकमान ने लॉक डाउन के बीच पदाधिकारियों के लिए नया कार्यक्रम देकर उन्हें उलझन में डाल दिया है। एक तरफ कोरोना संक्रमण के चलते लोगों को घर से बाहर नहीं निकलने की सीख दी जा रही है, तो दूसरी तरफ पार्टी दफ्तर में रोजाना वीडियो कॉफ्रेसिंग हो रही है। जिसमें प्रधानमंत्री केयर्स मद में राशि जुटाने के लिए कहा गया है।
सुनते हैं कि वीडियो कॉफ्रेसिंग के नाम से ही अब जिले के पदाधिकारी कांपने लगे हैं। हरेक पदाधिकारी को कम से कम 40 लोगों को प्रधानमंत्री केयर्स मद में राशि देने के लिए प्रेरित करने कहा गया है। पदाधिकारियों की दिक्कत यह है कि लोगों को प्रेरित करने के लिए घर से निकलना जरूरी होगा। मगर आम जागरूक लोग बाहर से आए लोगों से मेल मुलाकात से परहेज करने लगे हैं।
प्रदेश में वैसे भी पार्टी विपक्ष में हैं, और यहां लोग प्रधानमंत्री केयर्स के बजाए मुख्यमंत्री सहायता कोष में राशि देना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। मुख्यमंत्री सहायता कोष के मद में दान देने वालों का सोचना है कि मुख्यमंत्री कोष में पैसा देने से स्थानीय जरूरतमंदों के लिए ही उपयोग होगा। ऐसे में जिले स्तर के नेता, काफी परेशान हैं। कोरोना संक्रमण के बीच कुछ लोग तो चाह रहे हैं कि उन्हें पद से मुक्त कर दिया जाए। ताकि संक्रमण के जोखिम से बचा जा सके।
इन सबके ऊपर एक बात और हो गयी है. सोनिया गाँधी ने मोदी को लिखी चि_ी में कहा कि मोदी केयर्स नाम से अलग फण्ड बनाने के बजाय प्रधानमंत्री राहत कोष ही चलना चाहिए जो कि सीएजी ऑडिट के लिए खुला भी रहता है. सरकार को दान देने में लोग वैसे भी हिचकते हैं, और जिस फण्ड का ऑडिट ना हो उसमें क्यों दिया जाये? यही वजह है कि बिल गेट्स से लेकर टाटा, और अज़ीम प्रेमजी तक जो दान देते हैं, वे सरकार को नहीं देते, खुद समाजसेवा में लगते हैं, पाई-पाई का इस्तेमाल करते हैं.
आलोक शुक्ला का नया प्रयोग...
लॉकडाउन की वजह से प्रदेश में स्कूलों में परीक्षाएं नहीं हो पाई। और दसवीं और बारहवीं को छोड़कर माध्यमिक शिक्षा मंडल से संबंद्ध स्कूलों में जनरल प्रमोशन हो गया। स्कूलें कब खुलेंगी, यह तय नहीं है। मगर विद्यार्थियों की पढ़ाई का नुकसान न हो, इसके लिए स्कूल शिक्षा विभाग ने अनूठी पहल की है और ऑनलाइन पढ़ाई हो सकेगी। विभाग ने बकायदा पोर्टल भी तैयार किया है और पोर्टल पर जूम एप के जरिए ऑनलाइन इंटरएक्टिव कक्षाएं शुरू होंगी। आम तौर पर सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए इस तरह हाईटेक पढ़ाई भी कल्पना से परे मानी जाती रही है। मगर प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला ने बेहद कम समय में यह कर दिखाया, इसकी काफी सराहना हो रही है।
दिलचस्प बात यह है कि स्कूल शिक्षा विभाग ने बिना किसी बाहरी मदद के खुद तैयार किया है और डॉ. आलोक शुक्ला की पोर्टल तैयार करने में अहम भूमिका रही है। इस सॉफ्टवेयर को तैयार करने में विभाग को कोई खर्च भी नहीं करना पड़ा। वैसे तो शुक्ला चिकित्सा के विद्यार्थी रहे हैं। मगर आईटी में भी उनकी दखल बराबर रही है। चाहे पीडीएस के कम्प्यूराइजेशन हो, या फिर केन्द्रीय चुनाव आयोग में कम्प्यूराइजेशन का काम हो। आलोक शुक्ला ने हमेशा कुछ नया कर दिखाया है, इस पोर्टल से एक बार फिर उनकी योग्यता साबित हुई है। दिक्कत यह है कि आलोक शुक्ला का रिटायरमेंट एकदम करीब है, शायद दो महीने में ही. स्कूल शिक्षा विभाग को पटरी पर लाना हो नहीं सकता अगले दो महीनों में. अगर किसी अफसर को एक्सटेंशन दिया जाना चाहिए तो आलोक शुक्ला को, ताकि स्कूलों का कुछ भला हो सके।
एक दूसरी दिक्कत यह है कि जिस ज़ूम एप्लीकेशन से अब पढाई होने जा रही है, वह दुनिया भर में बदनाम हो रहा है कि उसके रास्ते किसी भी फ़ोन में घुसपैठ हो सकती है. लगातार सायबर सुरक्षा विशेषज्ञ इस कंपनी से सवाल कर रहे हैं कि उसने इतने छेद क्यों रखे हैं जासूसी करने के ?