राजपथ - जनपथ
सीएम कब तक सम्हालेंगे?
बस्तर में पत्रकार या पत्रकारों पर दजऱ् करवाया गया मामला ठन्डे बस्ते में डालने के लिए तो सीएम भूपेश बघेल ने कह दिया है, लेकिन कब तक? हर महीने दो महीने में पत्रकारों को छेडऩे के लिए कुछ न कुछ कर ही दिया जाता है, और फिर सरकार के लोग ? शांति करने में लग जाते हैं. कुछ हफ्ते पहले फेक न्यूज़ पर रोक के लिए बनी कमिटी की मीटिंग हुई, तो उसके नाम से एक किस्म से मीडिया को चेतावनी जारी कर दी गयी कि सम्पादकों और मीडिया मालिकों के बारे में जानकारी इक_ा की जाएगी. पूरी बैठक का निशाना पहले से तय था, लेकिन प्रेस नोट बनकर आया तो वह अलग ही था. बैठक में दो मनोनीत पत्रकार भी थे, जिन्हें दिखाए बिना बैठक का प्रेस नोट जरी किया गया. कुल मिलकर पुलिस की हसरत बैठक की खबर से पूरी हो गयी, और बैठक के पत्रकार अपने को ठगा सा महसूस करते रह गए. एक अखबारनवीस ने उलाहना दिया कि कुल्हाड़ी के हत्थे को देखकर पेड़ समझे थे कि हमारा ही हिस्सा है, लेकिन कुल्हाड़ी ने तो पेड़ गिराकर जंगल साफ़ कर दिया।
वह बात जोर नहीं पकड़ पाई, हालाँकि पुलिस बड़ी खुश हुई कि जनसम्पर्क की कमिटी उसका औजार बन गयी. अब यह नया बवाल बस्तर के एक कलेक्टर ने खड़ा कर दिया जो पहले भी ऐसा कर चुके हैं. पहले सीएम के एक कार्यक्रम में खामी निकलकर उसने एक सरकारी इंजीनियर को थाने में बिठवा दिया था. इमेज सीएम की खऱाब हुई कि उनका आतंक है. उस खबर को सामने लाने वाले पत्रकार को इस बार जंगल में पत्तों के मास्क को लेकर फोटो-खबर के बताकर जुर्म दजऱ् करवा दिया कि उसने भीड़ लगवाई फोटो के लिए. अब फिर सीएम को बीच में पढ़कर सरकार की बदनामी को रोकना पड़ा.
इस बार भी शायद कुल्हाड़ी के हत्थे की कुछ लकडिय़ों ने सरकार में बैठे कुछ लोगों को भड़काकर पेड़ कटवाने की कोशिश की. लेकिन जिले सम्हाल रहे अफसर मुख्यमंत्री के मिजाज के खिलाफ जाकर इतनी मनमानी करेंगे, किसी ने सोचा नहीं था. अंग्रेजी समझने वाले जो लोग ऐसी हरकतों के पीछे हैं, उन्हें याद रहना चाहिए की सरकार को अवाइडेबल ब्लंडर्स से बचना चाहिए।
कोरोना से राहत !
छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में कोरोना का डर है, लेकिन यह कहा जाए कि किसी को कोरोना से राहत मिली है, तो आपको आश्चर्य होगा। आश्चर्य में पडऩा स्वाभाविक है, पर राहत मिलने वाली बात भी उतनी ही सही है। दरअसल, कोरोना के दहशत के बीच राज्य सरकार ने पत्रकारिता विवि का नाम बदल दिया। ऐसे संकट के समय में इस तरह के राजनीतिक फैसले की आलोचना भी हो रही है। सोशल मीडिया में कोरोना के बाद दूसरा चर्चित इश्यू पत्रकारिता विवि का नामकरण ही है। सरकार के इस फैसले के खिलाफ आग में घी डालने का काम यहां के कुलसचिव महोदय ने भी किया। उन्होंने जनता कफ्र्यू के दौरान थाली लोटा बजाने वालों का मजाक उड़ाने के साथ मीडिया की भी खिल्ली उड़ाई। इससे पत्रकारों और वहां पढऩे वाले भावी पत्रकारों को बुरा लगा, तो उन्होंने भी कुलसचिव के पोस्ट के साथ-साथ नाम बदलने के मुद्दे को ट्रेंडिंग टॉपिक बना दिया। इससे सरकार भी असहज हुई है, लेकिन विवि के संबंध में और कोई फैसला लेकर सरकार ऐसे समय में विवाद को बढ़ाने के मूड में नहीं है, लिहाजा कुलसचिव महोदय को कोरोना के कारण फिलहाल राहत मिलते दिख रही है। हालांकि कुलसचिव के विरोधियों का मानना है कि कोरोना का पीरियड 21 दिन का है, यह समय सही सलामत निकल गया तो कोरोन की तरह कुलसचिव के खिलाफ भी गो-गो के नारे बुलंद हो सकते हैं। ([email protected])