राजपथ - जनपथ
निपटाने के चक्कर विधायक निपटे
वैसे तो पंचायत चुनाव में भी कांग्रेस को अच्छी सफलता मिली है। लेकिन कुछ जिले जहां विधानसभा और म्युनिसिपल चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा है, वहां हार का सामना करना पड़ा। मसलन, कोरिया, बस्तर, बलरामपुर और जशपुर में कांग्रेस समर्थित जिला पंचायत सदस्य प्रत्याशियों को हार का मुख देखना पड़ा।
पार्टी के अंदरखाने में चर्चा है कि स्थानीय विधायक और जिला संगठन के बीच टकराव के कारण कांग्रेस समर्थित प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा। बैकुंठपुर विधायक अंबिका सिंहदेव ने अपनी पसंद से प्रत्याशी तय करवाए थे। यहां से विधानसभा के पूर्व प्रत्याशी वेदांती तिवारी चुनाव लडऩा चाहते थे, लेकिन अंबिका ने किसी और को अधिकृत करवा दिया। हाल यह रहा है कि वेदांती अच्छे मतों से चुनाव जीत गए और कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे।
दरअसल, विधायकों को डर था कि आने वाले समय में जिला पंचायत के सदस्य विधानसभा टिकट के दावेदार हो सकते हैं। इसलिए उन्हें चुनाव मैदान से बाहर रखने की भरपूर कोशिश की और इन्हीं वजहों से अपनी फजीहत करा बैठे। बलरामपुर में तो स्थानीय विधायक बृहस्पत सिंह और जिला अध्यक्ष के बीच मतभेद पहले से ही चल रहे थे। चुनाव के दौरान यह खुलकर सामने आ गया। इससे पूरे जिले में कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा। बस्तर और जशपुर में भी कांग्रेस के विधायक पंचायतों में अपने करीबियों को बिठाने के चक्कर में पार्टी का नुकसान करा बैठे।
एक पद, और एक ही नाम
कवर्धा जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर भाजपा का कब्जा तय हो गया है। खास बात यह है कि अध्यक्ष का पद अनुसूचित जाति महिला वर्ग के लिए आरक्षित है। जिला पंचायत के चुनाव में एक मात्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सदस्य पद में भाजपा समर्थित उम्मीदवार सुशीला रामकुमार भट्ट चुनाव जीती हैं। ऐसे में कांग्रेस चाहकर भी किसी दूसरे को अध्यक्ष नहीं बना सकती। सुशीला रामकुमार भट्ट का जिला पंचायत अध्यक्ष बनना तय है। हालांकि यहां भाजपा समर्थित प्रत्याशी ज्यादा संख्या में जीतकर आए हैं, लेकिन दोनों दलों से अलग हटकर चुनाव जीतने वालों को मिलाकर कांग्रेस अपना अध्यक्ष बनाने की कोशिश में थी। मगर पार्टी के रणनीतिकारों को झटका लगा है। अध्यक्ष पद खोने के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष पद पर अपनी ताकत झोंकेगी। गौर करने लायक बात यह है कि कुछ इसी तरह की स्थिति 10 साल पहले के जिला पंचायत चुनाव में भी बनी थी। जब अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सीट पर कांग्रेस का कब्जा हो गया था। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सदस्य पद पर कांग्रेस की सीमा अनंत चुनाव जीती थीं और भाजपा के रणनीतिकारों ने उन्हें अपने दल में शामिल करने की कोशिश भी की थी, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल पाई थी।
बजट को ऐसे समझें...
सोशल मीडिया भी बजट के बड़े मजे ले रहा है। एक पोस्ट-
मेरी कामवाली बाई ने कहा कि..वित्तमंत्री ने आपको टैक्स में बहुत बड़ी राहत दी है मेरी भी सैलरी बढ़ा दो।
मैंने कहा ठीक है। तुम्हारे 500 रूपए बढ़ा देता हूं। लेकिन साल भर होली-दीपावली की गिफ्ट नहीं मिलेगी।
अब तुम्हारे पास दो विकल्प हैं। गिफ्ट चाहिए तो पुराने वेतन पर काम करो या तो बढ़ा हुआ वेतन ले लो।
कामवाली ने अभी तक जवाब नहीं दिया है। शायद सी.ए. से विचार-विमर्श करेगी?