राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : नाम में राम, पर मारा था मोहन को...
02-Feb-2020
 छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : नाम में राम, पर मारा था मोहन को...

नाम में राम, पर मारा था मोहन को...
नाम में क्या रखा है। दिल्ली में अभी रामभक्त गोपाल ने बेकसूरों पर पिस्तौल लहराई, धमकियां दीं, लोगों को गद्दार कहा, और गोली चलाकर एक को घायल भी कर दिया। नाम में गोपाल भी था, और अपने आपको वह फेसबुक पर रामभक्त भी लिखता था। इसी तरह दुनिया के कई देशों में आतंकी हमले करने वाले लोगों के नाम के साथ कहीं मोहम्मद लिखा होता है, तो कहीं किसी और धर्म का नाम। नामों का ही अगर असर हुआ होता तो फिर नाथूराम ने गांधी को क्यों मारा होता? उसके नाम राम था, और गांधी के नाम में मोहन था। इन दो युगों के बीच ऐसी हिंसा की गुंजाइश क्यों निकलनी थी? 

अब इधर छत्तीसगढ़ में रेलवे के लोहे की इतिहास की सबसे बड़ी चोरी पकड़ाई है तो चोरी का माल खरीदने वाले जिन दो कारखानों से जब्ती हो रही है, उनमें से एक का नाम हिन्दुस्तान क्वाइल लिमिटेड है, और दूसरे का नाम इस्पात इंडिया फैक्ट्री। नाम में हिन्दुस्तान भी है, और इंडिया भी, और ये दोनों हिन्दुस्तानी या इंडियन रेलवे से चोरी की गई पटरियों को गलाकर लोहा बनाते पकड़ाए हैं, और कारखानों में खूब सा लोहा भी बरामद हुआ है। इसलिए नामों के फेर में नहीं पडऩा चाहिए कि नाम भला होगा तो इंसान या कारोबार भी भले होंगे। 

निरर्थक स्वागतद्वारों पर फिजूलखर्च
छत्तीसगढ़ के पहले विश्वविद्यालय, पंडित रविशंकर शुक्ल विवि का इलाका नए और बाद में बने विश्वविद्यालयों की वजह से कटते-कटते अब केवल पुराने रायपुर जिले जितना बच गया है। आज से बीस बरस पहले जो रायपुर जिला महासमुंद, धमतरी, गरियाबंद, बलौदाबाजार को मिलाकर बना था, उसमें अब ये सब जिले बनकर हट गए और सिर्फ आज का रायपुर जिला छोटा सा रह गया है। रविशंकर विश्वविद्यालय फिलहाल अविभाजित रायपुर जिले जितना बड़ा है। अब इस विश्वविद्यालय में एक दूसरी दिशा में एक सड़क निकाली जा रही है जहां पर एक नया गेट बनाने की घोषणा रजिस्ट्रार गिरीशकांत पांडेय ने आज सुबह फेसबुक पर की है। 

हिन्दुस्तान में छोटी सी छोटी पंचायत, या गांव-कस्बे में भी गेट बनाना एक बड़ा ही लोकप्रिय काम है। जिस कस्बे में एक भी सार्वजनिक शौचालय न हो, वहां भी पांच-दस लाख रूपए लागत का एक स्वागतद्वार या गेट बना दिया जाता है। आज भी रविशंकर विश्वविद्यालय में जो अकेला प्रवेशद्वार है, वह इतना बड़ा और महंगा ढांचा है कि वह तस्वीरों में कई बार गिरौदपुरी में बनाए गए विशाल जैतखंभ जैसा दिखता है। इस गेट से विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा में कोई इजाफा नहीं होता। इतनी रकम की किताबें अगर लाइब्रेरी में ले ली जातीं, लाइब्रेरी को रात-दिन चौबीसों घंटे खुलने लायक बनाया जाता तो शायद यूनिवर्सिटी की इज्जत बढ़ती। लेकिन किसी गांव-देहात की तरह विश्वविद्यालय को भी स्वागतद्वार और गेट बनाने का शौक है। 

इंटरनेट पर दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों की तस्वीरों को सर्च करें, तो उनकी सैकड़ों तस्वीरों में भी कोई स्वागतद्वार नहीं दिखता है।

लोगों को याद रहना चाहिए कि पिछली सरकार में जब अजय चंद्राकर कुछ समय पर्यटन मंत्री भी थे, उन्होंने रायपुर-धमतरी सड़क से चंद्राकर के कस्बे कुरूद जाने वाली सड़क पर डेढ़-पौने दो करोड़ रूपए की लागत से स्वागतद्वार बनवाया था। उसकी वजह से एक पर्यटक भी कुरूद की ओर मुड़ा हो ऐसा नहीं लगता, लेकिन कोई शहर-कस्बा अपनी बाकी खूबियों से लोगों का स्वागत करे, उसके बजाय स्वागतद्वार का महंगा निर्माण करना सत्ता की एक रहस्यमय चाह रहती है। इसी तरह पूरी प्रदेश में पिछले बरसों में जगह-जगह ताकतवर मंत्रियों और विधायकों ने अपने इलाकों में पर्यटन-रिसॉर्ट बनवा दिए जो कि अब खंडहर हो रहे हैं। उन्हें ऐसी जगह बनाया गया जहां किसी पर्यटक के पहुंचने की संभावना नहीं थी, और अब आसपास निर्माण का ठेका लेने वाले ठेकेदार ऐसे रिसॉर्ट को अपने गोदाम की तरह इस्तेमाल करते हैं।
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