राजपथ - जनपथ
आदिवासी भाजपा नेताओं में तलवारें
भाजपा के दो पूर्व गृहमंत्री रामविचार नेताम और रामसेवक पैंकरा के बीच वर्चस्व की लड़ाई छिड़ गई है। नेताम की पत्नी पुष्पा नेताम जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रही हैं। पुष्पा जिस क्षेत्र से चुनाव लड़ रही है, वह प्रतापपुर विधानसभा का हिस्सा है, जहां से पैकरा विधायक रह चुके हैं। ये अलग बात है कि विधानसभा चुनाव में पैकरा को बुरी हार का सामना करना पड़ा था। सुनते हैं कि पैंकरा कतई नहीं चाहते थे कि रामविचार की पत्नी प्रतापपुर इलाके से चुनाव लड़े।
नेताम अपनी पुत्री को तो अपने विधानसभा क्षेत्र रामानुजगंज से चुनाव लड़ा रहे हैं, लेकिन पत्नी को दूसरे के इलाके से चुनाव मैदान में उतार दिया है। पुष्पा चुनाव जीत जाती है, तो प्रतापपुर में रामविचार की दखल बढ़ जाएगी। वैसे भी रामानुजगंज के बजाए रामविचार प्रतापपुर विधानसभा सीट को अपने लिए ज्यादा बेहतर मानते हैं। यही वजह है कि वे अपनी पत्नी को जिताने के लिए मेहनत कर रहे हैं। दूसरी तरफ पार्टी के स्थानीय नेताओं के बीच चर्चा है कि पैंकरा से जुड़े लोग कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार को मदद कर रहे हैं। ऐसे में पुष्पा की राह आसान नहीं रह गई है। फिलहाल जानकारों की नजर इस हाईप्रोफाइल बन चुके जिला पंचायत सीट पर टिकी हैं।
देवव्रत ने पलटी मारी
वैसे तो म्युनिसिपल चुनाव में जोगी पार्टी के विधायक देवव्रत सिंह ने कांग्रेस का साथ दिया था। मगर पंचायत चुनाव में उन्होंने पलटी मार दी। उन्होंने अपने खैरागढ़ विधानसभा क्षेत्र के जिला पंचायत के चुनाव में पूर्व सीएम रमन सिंह के भांजे विक्रांत सिंह को सपोर्ट किया। देवव्रत की मेहनत का ही नतीजा है कि विक्रांत किसी तरह चुनाव जीतने में सफल रहे। सुनते हैं कि देवव्रत ने अपने इलाके में लोधी फैक्टर को कमजोर करने के इरादे से ऐसा किया है।
खैरागढ़ में लोधी समाज के मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। एक बार देवव्रत की पत्नी लोधी फैक्टर के चलते हार गई थी। खुद विधानसभा का चुनाव सिर्फ इस वजह से जीत पाए कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही लोधी उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे। लोधी मतों के बंटने का फायदा देवव्रत को मिला और वे किसी तरह चुनाव जीतने में सफल रहे। हल्ला यह भी है कि विधानसभा चुनाव में विक्रांत और उनके समर्थकों ने देवव्रत का अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग किया था। ऐसे में देवव्रत ने विक्रांत को सहयोग किया है, तो गलत नहीं है। वैसे भी देवव्रत को छोड़कर जोगी पार्टी के अन्य विधायक भाजपा के ज्यादा करीब दिख रहे थे। अब देवव्रत भी इसी राह पर जा रहे हैं।
हवा बदली है समझो साहब...
छत्तीसगढ़ सरकार में अफसरों को भाजपा सरकार के तीन कार्यकाल के बाद बदले हुए माहौल को समझने में थोड़ा सा वक्त लग रहा है। आज गांधी पुण्यतिथि पर देश भर में केन्द्र सरकार के निर्देश पर लंबे समय से शहीद दिवस मनाया जाता है। केन्द्र सरकार के ही निर्देश का ही जिक्र करते हुए राज्य शासन ने कल एक आदेश निकाला जिसमें स्वतंत्रता संग्राम में शहीद होने वाले लोगों की स्मृति में दो मिनट का मौन रखने के लिए कहा गया। यह आदेश हर बरस से चले आ रहा है, और केन्द्र सरकार में भी यूपीए के समय का है। इसमें गांधी की शहादत की सालगिरह का कोई जिक्र नहीं है। लेकिन छत्तीसगढ़ की नई कांग्रेस सरकार लगातार गांधी को एक मुद्दा बनाकर एक वैचारिक लड़ाई लड़ते आ रही है। ऐसे में इस सर्कुलर में गांधी का जिक्र भी न होना थोड़ा सा अटपटा था, फिर चाहे वह प्रतिवर्षानुसार ही क्यों न हो, चाहे वह केन्द्र सरकार के सर्कुलर के अनुसार ही क्यों न हो। बीती रात जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का ध्यान इस तरफ खींचा गया, तो उन्होंने खासी नाराजगी जाहिर की, और उसके बाद हड़बड़ी में स्कूल शिक्षा विभाग का एक सर्कुलर निकाला गया जिसमें आज गांधी पुण्यतिथि पर दो मिनट के मौन का जिक्र किया गया।
कुछ ऐसा ही हाल मुख्यमंत्री की उस घोषणा का हुआ था जो कुछ महीने पहले उन्होंने विधानसभा में की थी। स्कूलों में संविधान का पाठ पढ़ाया जाएगा, इसकी घोषणा के बाद भी स्कूल शिक्षा विभाग ने ऐसा कोई आदेश नहीं निकाला था, और न ही कोई योजना बनाई थी। अभी चार दिन पहले स्कूल शिक्षा के नए प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला के आने के बाद ऐसा आदेश निकला और स्कूलों में संविधान पर चर्चा शुरू होने जा रही है। सरकार में कामकाज बंधी-बंधाई लीक पर चल रहा है, और देश-प्रदेश में बदली हुई सोच की कोई झलक उसमें कम ही दिखाई पड़ती है।
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