राजपथ - जनपथ
अभी दो-चार दिन पहले दिल्ली के खान मार्केट में छत्तीसगढ़ से पहुंचे एक आदमी को चिंतामणि चंद्राकर और मुकेश गुप्ता जाते हुए दिखे।
रमन रमन ही हैं...
इस हफ्ते भाजपा के दो बड़े नेता रमन सिंह और विक्रम उसेंडी का जन्मदिन था। रमन सिंह के जन्मदिन के मौके पर खूब जलसा हुआ। नगरीय निकाय चुनाव लडऩे के इच्छुक नेताओं ने जन्मदिन के बहाने शक्ति प्रदर्शन भी किया। चूंकि वे 15 साल सीएम रहे हैं, ऐसे में उन्हें बधाई देने के लिए भीड़ उमडऩा स्वाभाविक था। पार्टी नेताओं से परे प्रदेश भाजपा की तरफ से भी रमन सिंह को जन्मदिन की बधाई के विज्ञापन भी जारी किए गए। मगर गुरूवार को प्रदेश संगठन के मुखिया विक्रम उसेंडी के जन्मदिन मौके पर कार्यक्रम तो दूर, पार्टी की तरफ से उनके लिए बधाई का संदेश तक जारी नहीं किया गया।
सिर्फ कांकेर और रायपुर के ही कुछ नेता उन्हें बधाई देने पहुंचे थे। विक्रम उसेंडी की गिनती सरल आदिवासी नेताओं में होती है। पार्टी ने लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं दी, तो भी वे शांत रहे। अब प्रदेश में संगठन के चुनाव चल रहे हैं। और दिसंबर तक प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होगा। ऐसे में उसेंडी के जन्मदिन पर पार्टी नेताओं की ठंडी प्रतिक्रिया को भविष्य के संकेतों के रूप में भी देखा जा रहा है। वैसे छत्तीसगढ़ भाजपा के बारे में यह बात साफ है कि विधानसभा चुनाव में पार्टी के चाहे जो नतीजे रहे हों, आज भी रमन सिंह ही पार्टी का चेहरा हैं, और जनता के बीच उन्हीं को प्रदेश भाजपा माना जाता है।
बड़े और महंगे वकीलों का काम...
नान घोटाले के आरोपी चिंतामणि चंद्राकर को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिल पाई। हालांकि उनके लिए पिछली सरकार के प्रभावशाली लोगों ने काफी कोशिश की थी। चंद्राकर की पैरवी पूर्व सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने की थी। यह भी संयोग है कि पिछली सरकार में जब भैंसाकन्हार कांड के खिलाफ भूपेश बघेल सुप्रीम कोर्ट में लड़़ाई लड़ रहे थे, तब रंजीत कुमार ही उनके वकील थे। अब मामूली से एकाउंटेंट के लिए रंजीत कुमार जैसे महंगे वकील की पैरवी करना सरकार रणनीतिकारों को हजम नहीं हो रहा है।
पिछली सरकार के प्रभावशाली लोगों के खिलाफ जिस तेजी से जांच खड़ी हुई थी, वह किसी किनारे लगती नहीं दिख रही है। ये लोग भी हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट में अपने पक्ष में नामी वकील खड़े कर राहत पाने में सफल रहे हैं। सरकार के रणनीतिकारों को मालूम है कि नामी वकीलों के लिए पैसे कहां से आ रहे हैं, और उनके पीछे कौन सी ताकतें काम कर रही है। मगर यह सब जानकार भी कोई कुछ कर पाने की स्थिति में नजर नहीं आ रही हैं। छत्तीसगढ़ में जितने मामले दर्ज हो रहे हैं, उनकी जांच का जो हाल है, उसे देखते हुए पुलिस के अलग-अलग बहुत से अफसरों की भी जांच करवाने की जरूरत है कि आए दिन मामले अदालतों में कमजोर क्यों साबित हो रहे हैं। मामले कमजोर हैं, या पुराने रिश्ते मजबूत हैं?
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