राजपथ - जनपथ
सिंहदेव से मिलना मुश्किल
टीएस सिंहदेव से प्रदेश के बड़े व्यापारी नेता निराश हैं। सिंहदेव के पास वाणिज्य कर (जीएसटी) का प्रभार है, लेकिन व्यापारी नेताओं को लगता है कि वे उनकी समस्याओं के निराकरण के लिए कुछ ठोस नहीं कर रहे हैं। जीएसटी काउंसिल की बैठक में राज्य का पक्ष रखने के लिए सुझाव देने गए चेम्बर पदाधिकारियों की सिंहदेव की व्यस्तता के चलते से मुलाकात नहीं हो पाई, जबकि चेम्बर के पदाधिकारी, कर सलाहकार और एक-दो विशेषज्ञों को लेकर गए थे। मंत्रियों के स्टाफ का हाल यह है कि वे ट्रांसफर-पोस्टिंग की दूकान खोलकर बैठे हैं।
हालांकि बाद में सिंहदेव की तरफ से मैसेज आया कि रात को 10 बजे के बाद आरकेसी गेस्ट हाउस में मिल सकते हैं, परन्तु व्यापारी नेताओं ने हाथ जोड़ लिए। ऐसा नहीं है कि सरकार, व्यापारियों की समस्याओं के निराकरण में रूचि नहीं ले रही है। कुछ व्यापारी नेता मानते हैं कि पिछली सरकार से ज्यादा बेहतर काम अभी हो रहा है। खुद सीएम भूपेश बघेल, व्यापारी नेताओं से खुलकर मिलते हैं और चेम्बर के पूर्व अध्यक्ष पूरन लाल अग्रवाल का सार्वजनिक तौर पर पैर छूने से गुरेज नहीं करते। कुल मिलाकर व्यापारी नेता, सीएम के व्यवहार और कामकाज के तौर-तरीकों से काफी खुश हैं। मगर, जीएसटी से जुड़े मसले पर सिंहदेव का सहयोगात्मक रूख जरूरी है, जो उन्हें नहीं मिल रहा है। राज्य की उपेक्षा के चलते चेम्बर के पदाधिकारियों ने दिल्ली में भाजपा के सांसदों से भी गुहार लगाई है। भाजपा सांसदों की पहल का नतीजा यह रहा कि केन्द्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर जल्द ही छत्तीसगढ़ दौरे पर आएंगे और व्यापारियों से रूबरू होंगे।
लोगों को बेसहारा छोड़ गए
राज्यसभा सदस्य भुबनेश्वर कलिता के पार्टी छोड़ देने से प्रदेश कांग्रेस के कई नेताओं को झटका लगा है। कलिता छत्तीसगढ़ विधानसभा प्रत्याशी चयन के लिए गठित छानबीन समिति के चेयरमैन थे और प्रत्याशी चयन में उनकी अहम भूमिका थी। सुनते हैं कि उस वक्त कई दावेदारों ने टिकट के लिए कलिता का काफी सेवा-सत्कार किया था। टिकट नहीं मिली, तो भी ये नेता उम्मीद से थे कि कलिता की सिफारिश पर निगम-मंडलों में जगह मिल जाएगी। परन्तु अचानक धारा-370 के मुद्दे पर ये असमिया नेता, इन नेताओं के सपनों पर पलीता लगाकर निकल लिए।
सत्ता देखी है, मुसीबत नहीं...
इस सरकार के मंत्रियों ने अभी तक सिर्फ सत्ता देखी है, किसी मुसीबत के वक्त लोगों के जिस साथ की जरूरत होती है, उसकी अहमियत उन्हें समझ नहीं आई है। पिछली सरकार में जो मंत्री अलग-अलग समय पर परेशानी में पड़े, उन्हें मीडिया की जरूरत भी समझ आ गई, और दूसरे प्रभावशाली तबकों के बीच अपनी साख ठीक रखने की जरूरत भी दिख गई। आज कई मंत्रियों को मीडिया के लोगों के फोन का जवाब देना भी जरूरी नहीं लग रहा है। उन्हें बृजमोहन अग्रवाल जैसे पिछले मंत्रियों से यह नसीहत लेना चाहिए कि एकदम मुसीबत के वक्त दोस्ती नहीं खरीदी जा सकती। जो लोग पांच बरस के कार्यकाल के लिए हैं, उन्हें अनदेखा करना अपनी मुसीबत के वक्त एक संभावित मदद खोने जैसा होता है।
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