राजपथ - जनपथ
अब इंस्पेक्टरों के लिए यही बच गया?
छत्तीसगढ़ सरकार में अलग-अलग बहुत से फैसले ऐसे लिए जाते हैं कि उनके पीछे कोई सोच नहीं है यह बात बड़े-बड़े अक्षरों में लिखी नजर आती है। राजधानी रायपुर में अचानक तय हुआ कि टै्रफिक का कोई भी चालान डीएसपी स्तर का अफसर ही करेगा और सड़क किनारे किसी चालान का भुगतान नहीं होगा, वह सिर्फ ट्रैफिक थाने में ही जाकर होगा। अब मानो ट्रैफिक थाने से 20 किलोमीटर दूर चालान हुआ है, तो उसके भुगतान में एक पूरा दिन बर्बाद हो जाएगा, और सरकार को तो मानो जनता के दिन बर्बाद होने से कोई लेना-देना ही नहीं है। फिर मानो गृहमंत्री की यह मुनादी काफी नहीं थी, तो डीजीपी की तरफ से कल एक और हुक्म जारी हुआ जो कहता है कि चालान तो इंस्पेक्टर और उसके ऊपर के स्तर के अफसर ही कर सकेंगे, और इसके कैशलेस भुगतान के लिए थानों में स्वाईप मशीन लगाई जाएगी जिसे ऑपरेट करने का अधिकारी इंस्पेक्टर रैंक के अफसर को ही होगा।
स्वाईप मशीन को भी मानो रिजर्व बैंक की तिजोरी मान लिया गया है। आज सड़क किनारे के एक-एक छोटे-छोटे ढाबे तक में अनपढ़ वेटर भी स्वाईप मशीन लिए घूमते हैं, पांच हजार तनख्वाह वाले लोग भी स्वाईप मशीन चलाना जानते हैं, चलाते हैं, और ऐसे में थानों में अब केवल इंस्पेक्टर इस मशीन को चलाएंगे मानो इससे भी छोटा पुलिस कर्मचारी घपला कर सकेगा। अगर सचमुच ही डिजिटल भुगतान में छत्तीसगढ़ पुलिस के छोटे कर्मचारी घपला कर सकेंगे, तो यह दुनिया में एक नई तकनीक ईजाद करने के लिए पेटेंट करवाने का मौका रहेगा। पुलिस विभाग के मुखिया इंस्पेक्टरों को हर थाने में स्वाईप मशीन देकर भुगतान लेने के लिए बिठाएंगे, तो मुकेश गुप्ता को पकडऩे के लिए दिल्ली जाने की नौबत ही नहीं आएगी। और पुलिस विभाग में कुछ लोग सच में ऐसा चाहते भी हैं कि पकडऩे का दिखावा होता चले, अपने नंबर बढ़ते चलें, और असर इम्तिहान कभी देना ही न पड़े।
छत्तीसगढ़ में सरकार हड़बड़ी में कई किस्म की मुनादी करती है, मंत्री अपने स्तर पर फैसलों की घोषणा करते हैं, और अफसर अपने स्तर पर। लेकिन जब इन पर अमल की बात आती है तो समझ आता है कि कई घोषणाएं बुनियादी तौर पर गलत ही थीं।
संत युधिष्ठिर लाल का योगदान...
पिछले दिनों पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर अत्याचार का मामला लोकसभा में गूंजा। इंदौर के सांसद शंकर लालवानी ने यह मामला उठाया और भारत सरकार से नेहरू-लियाकत समझौते पर अमल करने के लिए पाकिस्तान पर दबाव डालने का आग्रह किया। इस विषय की प्रतिक्रिया इतनी तेजी से हुई, कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को सफाई देनी पड़ी। सुनते हैं कि संसद में पाकिस्तान में हिन्दुओं पर अत्याचार का मामला उठाने के पीछे शदाणी दरबार के प्रमुख संत युधिष्ठिर लाल की प्रमुख भूमिका रही है।
संत युधिष्ठिर लाल पिछले दिनों दिल्ली गए थे और उन्होंने केन्द्रीय मंत्रियों-सांसदों से मुलाकात की थी। इन सबके बीच संत युधिष्ठिर लाल ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दुओं का जबरिया धर्मान्तरण और उन पर अत्याचार की चर्चा की थी। हर साल पाकिस्तान से सैकड़ों की संख्या में सिंधी समाज के लोग शदाणी दरबार में मत्था टेकने छत्तीसगढ़ आते हैं। यहां से भी श्रद्धालुओं का जत्था पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित धर्म स्थलों के दर्शन के लिए जाता है। दोनों देशों के श्रद्धालुओं के बीच संत युधिष्ठिर लाल महत्वपूर्ण कड़ी हंै। वे पाकिस्तान में हिन्दुओं की स्थिति से वाकिफ रहते हैं और समय-समय पर उनकी समस्याओं से केन्द्र सरकार को अवगत कराते रहते हैं।
उन्होंने ही इकलौते सिंधी सांसद शंकर लालवानी को 1950 में हुए नेहरू-लियाकत समझौते की विस्तार से जानकारी दी थी। इस समझौते में दोनों देशों से शासन प्रमुखों ने एक-दूसरे के यहां अल्पसंख्यकों के जान-माल और हितों की रक्षा सुनिश्चित करने पर सहमति जताई थी। संत युधिष्ठिर लाल ने केन्द्र सरकार से देश में पाकिस्तान से आए हिन्दुओं को नागरिकता देने पर भी चर्चा की। छत्तीसगढ़ में भी बड़ी संख्या में पाकिस्तान से आए हिन्दू रह रहे हैं। केन्द्र सरकार भी मोटे तौर पर उनके रूख से सहमत दिख रही है।
मंत्री और विभाग के बीच लिस्ट
प्रदेश में तबादलों पर से रोक हटी तो मंत्रियों के करीबी लोगों को लग रहा था कि उनके अच्छे दिन आएंगे। कई मंत्री ऐसे हैं जिनकी बनाई हुई लिस्ट अफसरों की टेबिल पर धूल खा रही है, और खुद मंत्रियों को समझ नहीं आ रहा है कि उनके अच्छे दिन आखिर कब आएंगे, या फिर आएंगे ही नहीं। गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने जितने इंस्पेक्टरों के तबादले की लिस्ट पुलिस मुख्यालय भेजी थी, वह संग्रहालय में रख दी गई, और एक नई लिस्ट जारी हो गई। गृहमंत्री अपने गृह में बैठे रह गए। उनके एक समर्थक ने कहा है कि अब पुलिस मुख्यालय से मंत्री की मंजूरी के लिए कोई लिस्ट आए, तो उसे भी फ्रिज के भीतर फ्रीजर में रख देना चाहिए, तभी पीएचक्यू में उनकी गई हुई लिस्ट संग्रहालय से निकाली जाएगी।
लेकिन तबादलों के मौसम में कदम-कदम पर किस्से सुनाई पड़ते हैं। दुर्ग में म्युनिसिपल कमिश्नर दोपहर तक वीआईपी ड्यूटी पर थे, और शाम को उनका विकेट उखड़ गया। यह पता ही नहीं चल रहा है कि खेलने को कोई नया ग्राउंड मिलेगा या नहीं। अब अफसर सिर धुन रहा है कि मंत्रियों के आगे-पीछे घूमने का क्या फायदा हुआ?
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