प्रदेश में मानसून दस्तक दे चुका है, किसान अब खेतों में फसल की तैयारी में जुट गए हैं। खेती शुरू होते ही कीड़े-मकोड़े, पशु-पक्षी सब अपना निवाला-हिस्सा वसूलना शुरू कर देते हैं। फसल मंडी तक पहुंचा तो महाजन के हिस्से किसान का हक चला जाता है। यहां से जो बचा तब अन्नदाता के हाथों। केंद्र सरकार ने किसानों के लिए फसल बीमा शुरू की है। कुछ दिनों में खाद-बीज वितरण के साथ ही फिर फसल बीमा भी शुरू हो जाएगी। इसमें भी जिस तरह से किसान लुट रहा है उसे देखने वाला कोई नहीं है।
प्रदेश के कई इलाकों में अब तक पिछले साल का फसल बीमा क्लेम नहीं मिल पाया है। हालत यह कि किसानों का पैसा बैंक में जमा है, पर उनके खातों तक नहीं पहुंचा है। जबकि भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइन के अनुसार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बीमा कंपनियों द्वारा क्षतिपूर्ति राशि बैंकों को दिए जाने के पश्चात 1 सप्ताह में अनिवार्य रूप से बैंकों द्वारा किसानों के खाते में डालने का आदेश है।
कोरिया जिले में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत बीमा कंपनी एचडीएफसी एग्रो जनरल इंश्योरेंस कंपनी द्वारा 14 करोड़ 54 लाख 98 हजार 383 रुपए की फसल बीमा की क्षतिपूर्ति राशि जिला सहकारी बैंक को 7 मई को उपलब्ध कराई गई है। जो डेढ़ माह से अटकी पड़ी है। बैंक का कहना है कि हेड आफिस से सूची तैयार नहीं होने के कारण राशि डालने में देरी हो रही है।
अब उक्त राशि पर प्रति माह ब्याज 14 लाख 54 हजार 983 होता है। यानि कुछ दिनों में ब्याज की राशि 30 लाख के करीब हो जाएगी। एक दिन भी किश्त में देरी होने पर जुर्माना वसूलने वाले बैंक को मुफ्त में इतनी रकम मिल जाएगी। यानि किसानों के हक के पैसे पर बैंक ही डंडी मार रहा है। पूरे प्रदेश में इस तरह के हालातों की पड़ताल की जाए तो शायद ये आंकड़ा अरबों पार कर जाए।
किसानों के प्रतिनिधि के रूप में राज्य शासन फसल बीमा योजना स्वीकार करता है इसलिए इस योजना की निगरानी एवं क्षति पूर्ति दिलाने के लिए जवाबदेह भी वही है। किसानों का कर्जा माफ करने वाली, नरूआ, गरुआ, घुरुवा, बारी अभियान चलाने वाली भूपेश सरकार क्या विलंब की अवधि का ब्याज सहित भुगतान सुनिश्चित करा पाएगी। कर्ज न पटा पाने से फांसी लगा लेने वाले अन्नदाताओं को, कम से कम बैंक के हाथों इस तरह खुल्लमखुल्ला लुटने से बचा ले।
राहुल का संतुलन
राहुल गांधी सीएम भूपेश बघेल को तो पसंद करते हैं, लेकिन उनकी नजरों में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव की अहमियत कम नहीं है। कई मौकों पर तो वे टीएस को ज्यादा महत्व देते भी दिखे। हुआ यूं कि पिछले दिनों सीएम, प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया के साथ राहुल गांधी से मिलने पहुंचे। विषय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति का था।
सुनते हैं कि दोनों ने एक राय होकर सीतापुर के विधायक अमरजीत भगत का नाम दिया। राहुल ने पूछ लिया कि क्या अमरजीत भगत के लिए सिंहदेव की भी सहमति है? यह कहे जाने पर कि सिंहदेव को ऐतराज नहीं है। राहुल संतुष्ट नहीं हुए और सिंहदेव को बुलावा भेजा। अगले दिन राहुल ने सिंहदेव के साथ प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के साथ-साथ अन्य विषयों पर भी चर्चा की।
अमरजीत को लेकर सिंहदेव का क्या रूख है, यह तो पता नहीं चल पाया है, लेकिन एक बात तो साफ है कि नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति में सिंहदेव की राय को महत्व दिया जा सकता है। शालीन और मृदुभाषी सिंहदेव की खासियत यह भी है कि वे किसी बात पर अड़ते नहीं है। लेकिन यह तय माना जा रहा है कि अमरजीत की मंत्री पद पर नियुक्ति हो या प्रदेश अध्यक्ष पद पर ताजपोशी, सिंहदेव की रजामंदी के बिना संभव नहीं हो पाएगा।
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