पंचायत सचिवों का काम संभालने से इंकार
छत्तीसगढ़ में पंचायत सचिवों की हड़ताल को लगभग एक माह हो चुका है, लेकिन सरकार की ओर से अब तक ऐसा कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला है जिससे यह लगे कि उनकी मांगों पर स विचार हो रहा है। दिसंबर 2023 में भाजपा ने मोदी की गारंटी के तहत जिन वादों की घोषणा की थी, उनमें पंचायत सचिवों को शासकीय कर्मचारी का दर्जा देने का वादा भी शामिल था।
पंचायत सचिव गावों में न केवल प्रशासनिक कार्यों की रीढ़ हैं, बल्कि वहां जनमत के निर्माण में भी उनकी भूमिका होती है। पिछली विधानसभा में कांग्रेस सरकार को सत्ता से हटाने में इन सचिवों की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
फिलहाल, पंचायत सचिव जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। उन्हें शासकीय सेवा की मान्यताओं और अधिकारों का लाभ नहीं मिलता, और वे वेतन के स्थान पर मानदेय पर कार्यरत हैं। यह मानदेय औसतन 25,000 से शुरू होकर वरिष्ठता के आधार पर 45,000 रुपये तक पहुंचता है। लेकिन उन्हें अपनी सेवा की अनिश्चितता और रिटायरमेंट के बाद की असुरक्षा परेशान करती है। सेवा निवृत्ति के बाद उन्हें न तो पेंशन मिलती है, न कोई अन्य सुविधा। अनेक पंचायत सचिव इस समय रिटायरमेंट की दहलीज पर हैं, शायद इसलिए उनका आंदोलन इस बार निर्णायक लड़ाई का रूप ले रहा है।
गत वर्ष जुलाई में पंचायत सचिवों ने अपने संगठन का स्थापना दिवस मनाया था। तब उन्हें आश्वासन मिला था कि एक समिति गठित कर तीन माह में सुझाव प्रस्तुत किए जाएंगे। उस अवसर पर महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े ने भावनात्मक संबोधन देते हुए कहा था कि उनके पति भी पंचायत सचिव रह चुके हैं, इसलिए वे सचिवों की पीड़ा भलीभांति समझती हैं।
यह विडंबना ही है कि जिन पंचायत सचिवों के हाथ में लाखों-करोड़ों रुपये के बजट का प्रबंधन होता है, उन्हें स्वयं भविष्य की सुरक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। पंचायतों में विकास कार्य हों या गड़बड़ी, सफलता और विफलता, दोनों का सीधा दायित्व पंचायत सचिवों पर ही आता है। कोविड काल में जहां कुछ जिलों में सचिवों ने अभूतपूर्व सेवा दी, वहीं कुछ स्थानों पर घोटाले भी सामने आए। हाल ही में जारी पंचायतों के सतत विकास लक्ष्य सूचकांक में छत्तीसगढ़ का निचला स्थान यह दिखाता है कि जमीनी स्तर पर व्यवस्था में और भी सुधार की आवश्यकता है।
स्थिति यह है कि हड़ताल के कारण प्रशासनिक कामकाज प्रभावित हो रहा है। कई जिलों में पंचायत सचिवों की अनुपस्थिति में शिक्षकों, कृषि विस्तार अधिकारियों और पटवारियों को अस्थायी रूप से सचिव का कार्यभार सौंपा गया है। परंतु ये अधिकारी-कर्मचारी इस जिम्मेदारी से बच हैं। उन्हें वित्तीय लेन-देन में फंसने की आशंका है।
वास्तव में, पंचायत सचिवों को यदि शासकीय सेवा में सम्मिलित कर लिया जाए तो इससे न केवल उनकी आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि पंचायत स्तर की शासन व्यवस्था भी अधिक उत्तरदायी और पारदर्शी बन सकेगी। हालांकि, यह निर्णय आसान नहीं है। राज्य की लगभग 11,693 पंचायतों में से 10,978 में पंचायत सचिव कार्यरत हैं। इतनी बड़ी संख्या में कर्मचारियों को शासकीय सेवा में लेना राज्य के बजट पर भारी पड़ सकता है।
जंगल में मंगल?
आईएफएस अफसरों की ट्रांसफर सूची अटक गई है। करीब चार महीने पहले डीएफओ, सीएफ, और सीसीएफ स्तर के अफसरों की सूची तैयार की गई थी। इनमें परिवीक्षा अवधि पूरी कर चुके आईएफएस अफसरों के नाम भी थे। बताते हैं कि सूची के नामों को लेकर असहमति रही है। सूची में मंत्रालय स्तर पर कुछ बदलाव किया गया। इसके बाद समन्वय को भेजा है। तब से अब तक सूची पड़ी हुई है। अब सुशासन तिहार शुरू हो गया है। फील्ड से शिकायतें आ रही हैं। ऐसे में जल्द से जल्द सूची जारी करने के लिए दबाव भी है। विभागीय मंत्री भी इस कोशिश में लगे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
दुल्हन मिले तो सुशासन आए
सडक़ नाली बनवाते रहना, मुझे तो दुल्हन दिलवा दो। कुछ इस अंदाज में सुशासन तिहार के लिए आवेदन अंबिकापुर में महिला बाल विकास विभाग को एक 46 वर्षीय युवक मनोज टोप्पो ने दिया है। उसने लिखा है-अब तक मेरी शादी नहीं हुई है, कोई लडक़ी तलाश कर जल्दी शादी करा दी जाए। अब भला अफसर क्या करें, ऐसे आवेदन का?