राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : अब राज्य के भीतर सुनवाई मुमकिन !
10-Apr-2025 4:31 PM
राजपथ-जनपथ : अब राज्य के भीतर सुनवाई मुमकिन !

अब राज्य के भीतर सुनवाई मुमकिन !

नागरिक आपूर्ति निगम घोटाला प्रकरण की सुनवाई नई दिल्ली में विशेष न्यायालय (पीएमएलए) में स्थानांतरित करने, और एक स्वतंत्र मंच के समक्ष नए सिरे से सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर रिट याचिका को ईडी ने वापस ले लिया है। इसके बाद प्रकरण पर अब छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में सुनवाई जारी रह सकती है।

ईडी ने आरोप लगाया था कि अभियोजन पक्ष के विवेक का दुरूपयोग, गवाहों को डराने-धमकाने, और राजनीतिक दबाव के माध्यम से छत्तीसगढ़ में न्याय प्रणाली में हेर फेर किया गया। यह तर्क दिया गया कि वर्ष-2018 में राज्य सरकार ने बदलाव के बाद अभियोजन पक्ष का दृष्टिकोण नाटकीय रूप से बदल गया, और आरोपी अनिल टूटेजा-आलोक शुक्ला सहित कई आरोपियों, जिन्हें याचिका में तत्कालीन सीएम के बहुत करीबी बताया गया था, को अग्रिम जमानत दे दी गई। एजेंसी ने वाट्सएप चैट, और कॉल डेटा रिकॉर्ड का हवाला दिया था, जिसमें कथित तौर पर आरोपियों-एसआईटी व अभियोजन सदस्यों के बीच संवाद दिखाया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण की सुनवाई के दौरान कहा कि रिट याचिका केवल मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर की जाती है, और यह सरकार के साधनों के खिलाफ दायर की जाती है न कि सरकार या उसकी एजेंसियों द्वारा। इसके बाद ईडी ने याचिका वापस ले लिया।

नान घोटाला प्रकरण पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में दायर चार अलग-अलग जनहित याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। ये याचिका हमर संगवारी, अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव, राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र पाण्डेय, और धरमलाल कौशिक द्वारा दायर की गई है। प्रकरण की सुनवाई जस्टिस पी सैमकोसी, और जस्टिस पीपी साहू की पीठ कर रही थी। जस्टिस सैमकोसी का ट्रांसफर हो चुका है। अब नए सिरे से बेंच गठित हो सकती है। दो याचिकाकर्ता सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। देखना है  आगे क्या होता है।

नाम बड़े दर्शन छोटे 

सरकार ने 36 निगम-मंडलों में अध्यक्षों की नियुक्ति की है। अध्यक्षों के एक-एक कर संबंधित विभाग से आदेश निकल रहे हैं, और एक-एक कर नवनियुक्त अध्यक्ष पदभार भी संभाल रहे हैं। ज्यादातर निगम-मंडलों की माली हालत खराब है। कई तो पूरी तरह सरकार पर निर्भर हैं।

शंकर नगर स्थित पुराने पीएससी भवन में करीब आधा दर्जन निगमों के लिए जगह दी गई है। ये बोर्ड पिछली सरकार में गठित हुए थे। इनमें लौह शिल्पकार विकास बोर्ड, रजककार विकास बोर्ड, चर्म शिल्पकार बोर्ड, माटी कला बोर्ड, केश शिल्पी कल्याण बोर्ड सहित अन्य हैं। नए निगमों का कोई सेटअप नहीं है।

पिछली सरकार में भी उस समय के नवनियुक्त अध्यक्ष अपनी सुविधाओं के लिए इधर-उधर भटकते रहे, और फिर सरकार ही चली गई। नए अध्यक्ष की भी स्थिति अभी कुछ वैसी ही हैै। पुराने निगमों में सीएसआईडीसी, और वन विकास निगम सहित एक-दो निगमों को छोड़ दें, तो ज्यादातर दिवालिया होने की स्थिति में है। आरडीए जैसी पुरानी संस्था तो जमीन बेचकर कर्मचारियों को वेतन दे पा रही है। अब सरकार इन निगमों का उद्धार करने के लिए क्या कुछ करती है यह देखना है।

 

बस्तर की शार्क संकट में

बस्तर की जीवनरेखा कही जाने वाली इंद्रावती नदी अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। एक समय यह नदी जल से लबालब होती थी, लेकिन अब कई वर्षों से लगातार इसकी धारा कमजोर पड़ रही है। सूखने के पीछे कई कारण हैं। अवैध रेत खनन, नदी में गंदगी और कचरे का फेंका जाना, गंदे पानी की निकासी, ओडिशा में बहाव को रोका जाना और जोरा नाला के जल का सबरी नदी में चले जाना प्रमुख हैं। 

कुछ वर्ष पहले इंद्रावती को पुनर्जीवित करने के प्रयास में लगभग 130 किलोमीटर लंबी पदयात्रा की गई और इसके बाद चार साल पूर्व तत्कालीन सरकार ने इंद्रावती कछार विकास प्राधिकरण का गठन किया। परंतु, आज किसी को मालूम नहीं है कि प्राधिकरण ने क्या काम किया। इसका हाल भी अरपा विकास प्राधिकरण जैसा ही हो गया है, जिसे कभी साबरमती या टेम्स जैसी नदी के रूप में विकसित करने का सपना दिखाया गया था।

गर्मी के बढ़ते असर के साथ इंद्रावती का जल स्तर तेजी से घट रहा है, जिससे इस नदी में निवास करने वाले अनेक जलचरों और जीव-जंतुओं पर संकट मंडरा रहा है। इन्हीं में से एक है बोध मछली, जिसे स्थानीय लोग बस्तर की शार्क के नाम से जानते हैं।

यह मछली कभी इंद्रावती और कोटरी नदियों में बड़ी संख्या में पाई जाती थी, लेकिन अब इसके दर्शन दुर्लभ हो चुके हैं। अत्यधिक शिकार और नदी के सूखने से यह मछली अब विलुप्ति के कगार पर है। इसकी विशेषता यह है कि यह सामान्य जाल को अपने तीखे नुकीले दांतों से काट देती है, जिसके कारण इसे पकडऩे के लिए लोहे के विशेष जाल का उपयोग किया जाता है। यह मछली पानी से बाहर भी 24 घंटे तक जीवित रह सकती है। बाजार में इसकी कीमत 2000 रुपये किलो तक पहुंच जाती है। बस्तर की कुड़ुकू जनजाति इस मछली को पवित्र मानती है और उसकी पूजा भी करती है। शायद आने वाले दिनों में यह मछली न दिखे।

(rajpathjanpath@gmail.com)

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