कंवर और श्रीनिवास राव
पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर के पत्र के बाद केंद्र सरकार ने वन रक्षकों की भर्ती में गड़बड़ी के शिकायतों की पड़ताल के आदेश दिए हैं। केन्द्र के पत्र के बाद वन विभाग में हडक़ंप मचा हुआ है। पूर्व गृहमंत्री ने जिन बिंदुओं को रेखांकित किया है, उसका विभागीय अफसर जवाब नहीं ढूंढ पा रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि जिस हैदराबाद की कंपनी की सेवाएं वनरक्षकों की भर्ती प्रक्रिया के लिए ली गई थी, उसी कंपनी को राजनांदगांव में भी आरक्षक भर्ती का काम दिया गया था। जिसमें बड़ी गड़बड़ी सामने आई, और कंपनी के कर्मचारियों समेत 16 लोग जेल में हैं।
कंवर ने 15 सौ वनरक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी का खुलासा किया है। शिकायती पत्र में उन्होंने बताया कि भर्ती प्रक्रिया के बीच कई नियमों को बदल दिया गया। पूर्व गृहमंत्री ने डीएफओ रायगढ़ के पत्र का हवाला दिया, जिसमें रात में भी अभ्यार्थियों का फिजिकल टेस्ट कराया गया, जो कि नियमत: गलत था।
बताते हैं कि कुछ जगहों पर भर्ती प्रक्रिया में छूट के लिए विभागीय स्तर पर एक कमेटी बना दी गई, और कमेटी की अनुशंसा पर छूट दे दी गई। इस तरह भर्ती प्रक्रिया पूरी कराई गई। अंदर की खबर यह है कि विभागीय स्तर पर छूट का फैसला तो ले लिया गया, लेकिन अब तक विभागीय मंत्री से कार्योत्तर स्वीकृति नहीं मिल पाई है। एसीएस (वन) भी इससे सहमत नहीं है। ऐसे में पूरी प्रक्रिया दूषित बताई जा रही है।
वैसे तो पूर्व गृहमंत्री कंवर हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स वी श्रीनिवास राव को इस पूरी गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, और उन पर कार्रवाई के लिए दबाव बनाए हुए हैं। मगर यह सब आसान नहीं है। राव अपने अपार संपर्कों के लिए जाने जाते हैं। पिछली सरकार में पांच सीनियर आईएफएस अफसरों को सुपरसीड कर उन्हें हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स बनाया था। सरकार बदलने के बाद भी उनकी हैसियत में कमी नहीं आई है।
कंवर रमन सरकार में वन मंत्री रह चुके हैं, और उन्होंने आरा मिल घोटाला प्रकरण में संलिप्तता पर राव के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की थी, लेकिन कार्रवाई तो दूर वो प्रमोट हो गए। ये अलग बात है कि विधानसभा की लोक लेखा समिति इस मामले में अब तक सरकार से सवाल-जवाब कर रही है। अब ताजा मामले को राव कैसे हैंडल करते हैं, यह देखना है।
मध्यम वर्ग और स्क्रैप पॉलिसी
प्रदूषण रोकने 15 वर्ष पुरानी कार बाइक, बस ट्रकों को ऑफ रोड करने केंद्र सरकार ने व्हीकल स्क्रैप पॉलिसी जारी कर दी है। इसे लेकर छोटे वाहन मालिक सोशल मीडिया पर जागरूकता अभियान चलाए हुए हैं। इसमें वे, इन वाहनों को इस पॉलिसी से बाहर रखने केंद्र पर दबाव बनाने एकजुट कर रहे हैं। इसमें कहा गया कि-दुपहिया, चौपहिया वाहनों के लिए एन. जी. टी. ने जो 10 एवं 15 वर्ष के नियम लगाए जा रहे हैं वे आम जनता के खिलाफ हैं। अत: उनको वापस लेना जरूरी है। क्योंकि यह नियम केवल व्यावसायिक वाहनों के लिए तो ठीक है परन्तु निजी वाहनों के लिए बिल्कुल भी लागू नहीं होने चाहिये।
हम सभी जानते हैं कि निजी वाहन इतने समय में कुछ ज्यादा नहीं चल पाते हैं। अति आवश्यक होने पर ही ये सडक़ पर निकलते हैं। हम सभी परिवार की सुविधा के लिए ही वाहन खरीदते हैं ताकि बसों एवं ट्रेनों की भीड़ से बचा जा सके एवं इनके मैनटेन्स का भी हम सभी बहुत ज्यादा ध्यान रखते हैं। अपने शरीर से भी ज्यादा वाहन को मेंटेन रखते हैं। जिस तरह हमारे शरीर का यदि कोई अंग बीमार हो जाता है तो उसका इलाज कराकर उसको सही करा लिया जाता है लेकिन एक अंग के ऊपर पूरे शरीर को ही नहीं बदला जाता है, ठीक उसी प्रकार वाहन का भी वही पार्ट बदलकर उसे भी ठीक करा लिया जाता है। अत: वाहन को कन्डम घोषित करना अन्याय है।
बड़ी मुश्किल से एक-एक पैसा जोडक़र अपने परिवार के लिए यह सुविधा कर पाते हैं। लेकिन एन.जी.टी. के लोग कुछ घंटों की मीटिंग में ही फैमिली को इस सुविधा से वंचित कर रहे हैं यह सभी के लिए बहुत ही बड़ा अन्याय है एवं अन्याय के ऊपर लडऩा हमारा अधिकार है। लेकिन हम सब चुप रहकर इस अन्याय के विरुद्ध आवाज नहीं उठाते हैं। अब सभी को एकता के सूत्र में बंधकर इसके विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए ताकि सरकार की समझ में आ जाए कि हम लोग अब किसी भी ऐसे अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए एकता के सूत्र में बंधकर सरकार के अन्यायपूर्ण नियमों का विरोध करेंगे एवं सरकार को ऐसे नियम वापस लेने के लिए बाध्य कर देंगे। धन्यवाद।
सभी भाईयों से सविनय निवेदन है आम जनता की आवाज सरकार तक पहुंच जाए एवं सरकार को ऐसे नियम वापिस लेने के लिए बाध्य होना पड़े।
कुछ और तरीकों से बात बनी
हाल में हुए तीन चुनावों की चर्चा अब तक चल रही है। इसमें नगर निगम, पंचायत और चेंबर के जारी चुनाव हैं। इस दौरान दमदार प्रत्याशियों को बैठने-बिठाने यानी नामांकन वापसी का दौर जमकर चला। इसे न मानने वाले निकाय चुनाव में लड़े और जीते भी। जो नहीं माने उन्हें जीतने के बाद भी निलंबन, निष्कासन की तलवारें चलाई जा रहीं हैं। इसमें यह नहीं देखा जा रहा कि वो कितना बड़ा नेता रहा है। ऐसे ही एक दमदार वैश्य नेता जी जो जीत की हैट्रिक लगाने वाले थे, अचानक बैठ गए। सजातीय लोगों को समझ नहीं आया कि अचानक ऐसे कैसे हो गया। एक रात जब सब मिल बैठे तो हुआ खुलासा। नेताजी को पहले कहा गया विपक्ष के करीबी हैं अब विपक्ष के नेताओं का काम नहीं चलेगा। नेताजी नहीं माने। फिर कुछ और तरीके इस्तेमाल हुए।
शिक्षकों का फर्जीवाड़ा, बच्चों में खौफ
भर्ती परीक्षाओं में फर्जी परीक्षार्थियों की घटनाएं अक्सर सुनने को मिलती हैं, लेकिन अगर ऐसा प्राइमरी स्कूल में होने लगे, तो शिक्षा व्यवस्था की दयनीय स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। पहले आठवीं तक बच्चों को बिना किसी ठोस आकलन के पास कर दिया जाता था, और परीक्षा एक औपचारिकता होती थी। लेकिन जब यह नतीजा आने लगा कि शिक्षक बच्चों को बुनियादी अक्षर ज्ञान और गणितीय कौशल सिखाने में लापरवाही बरत रहे हैं, तो नई शिक्षा नीति की गाइडलाइन के तहत इस साल से पांचवीं और आठवीं की बोर्ड परीक्षाओं को अनिवार्य कर दिया गया।
हालांकि, प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था की वास्तविकता इससे कहीं अधिक चिंताजनक है। शिक्षा की गुणवत्ता का आकलन करने वाली संस्था ‘असर’ की रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ की स्कूली शिक्षा की हालत बदतर बताई गई है। सरकार ने शिक्षकों को जवाबदेह बनाने के लिए बोर्ड परीक्षा को अनिवार्य किया, लेकिन कुछ शिक्षक और अधिकारी अब भी इसे गंभीरता से लेने को तैयार नहीं हैं। सरगुजा जिले के लखनपुर ब्लॉक के सुगाआमा गांव में इसका एक चौंकाने वाला उदाहरण सामने आया, जहां कुल दो बच्चों की परीक्षा होनी थी। एक बच्ची परीक्षा में उपस्थित थी, लेकिन दूसरे परीक्षार्थी की जगह स्कूल में काम करने वाले स्वीपर मनीष मिंज को बैठा दिया गया।
यह एक मामला, सरकारी स्कूलों के प्रति लोगों में घटती अरूचि और इनमें ताला लगने के सिलसिले को उजागर करता है। क्या वास्तव में इस स्कूल में पांचवीं कक्षा के केवल दो ही छात्र हैं? अगर हां, तो दाखिले इतने कम क्यों हैं? क्या आसपास के बच्चे निजी स्कूलों में पढऩे जा रहे हैं? एक सवाल यह भी है कि दूसरा विद्यार्थी परीक्षा देने क्यों नहीं पहुंचा? क्या वह परीक्षा के नाम से डर गया और भरपाई स्वीपर से की जा रही थी? एक दूसरा मामला तखतपुर से आया है, जो इस आशंका को बल देता है। शुक्रवार को बोर्ड परीक्षा शुरू हुई तो देवतरी स्थित प्रायमरी स्कूल का छात्र अरमान कुर्रे परीक्षा नहीं पहुंचा। शिक्षक इंतजार करते रहे। जब वह काफी देर हो गई तो एक शिक्षक उसके घर पहुंचा। अरमान घर के एक कोने में दुबका बैठा था। उसने परीक्षा देने से मना कर दिया। माता-पिता पहले ही स्कूल तक छोडऩे की कोशिश कर चुके थे, शिक्षक के मनाने-समझाने पर भी अरमान परीक्षा देने के लिए राजी नहीं हुआ।
इधर लखनपुर के सुगाआमा स्कूल के क्लास रूम की हालत भी शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा को सामने लाती है। दीवारें सीलन से भरी हैं, और छोटा सा कमरा किसी हवालात जैसा नजर आता है। सवाल यह है कि मोटा वेतन पाने के बावजूद जिन शिक्षकों और अफसरों ने शिक्षा की नींव खोखली करने में कसर नहीं छोड़ी है, उन पर कोई कठोर कार्रवाई होगी या नहीं? या फिर केवल मामूली मानदेय पर काम करने वाले अंशकालिक स्वीपर को बलि का बकरा बनाकर इस मामला दबा दिया जाएगा?
प्रसंगवश, शिक्षा विभाग की मंशा, निजी पब्लिक स्कूलों की परीक्षा भी माध्यमिक शिक्षा मंडल से कराने की थी। हाईकोर्ट से निजी स्कूल प्रबंधकों को इस सत्र के लिए स्थगन मिल गया है। लखनपुर की घटना बताती है कि पहले सरकारी स्कूलों में ही परीक्षा लेने का इंतजाम सुधार लिया जाए फिर निजी स्कूलों को बाध्य किया जाए। तखतपुर की घटना बताती है कि शिक्षक और छात्र के बीच इतनी दूरी नहीं होनी चाहिए कि नादान सी उम्र में ही परीक्षा को लेकर डर बैठ जाए।
नौ वर्षों बाद दिखा दुर्लभ पक्षी
छत्तीसगढ़ में नौ वर्षों बाद एक दुर्लभ पक्षी को फिर देखा गया है। युवा फोटोग्राफर राहुल गुप्ता ने 23 मार्च को अचानकमार टाइगर रिजर्व के समीप शिवतराई क्षेत्र में इस पक्षी को कैमरे में कैद किया। यह पक्षी कबूतर जैसा दिखने वाला और दुर्लभ प्रजाति का है।इंडियन बर्ड्स समूह के मॉडरेटर एवं विशेषज्ञ रजुला करीम ने इस पक्षी की पहचान ऑरेंज-ब्रेस्टेड ग्रीन पिजन (मादा) के रूप में की है। इस पहचान की पुष्टि ई-बर्ड से जुड़े छत्तीसगढ़ के पक्षी विशेषज्ञ डॉ. हिमांशु गुप्ता ने भी की।
यह पक्षी येलो-लेग्ड ग्रीन पिजन (हरियल) का नजदीकी रिश्तेदार है, लेकिन इसके पैरों और वक्ष स्थल के पंखों के रंग में विशेष अंतर होता है।
गौरतलब है कि इससे पहले 20 फरवरी 2016 को बस्तर से पक्षी प्रेमी सुशील दत्ता ने इस दुर्लभ पक्षी की फोटो ‘बर्ड एंड वाइल्डलाइफ ऑफ छत्तीसगढ़’ फेसबुक ग्रुप में साझा की थी। यह खोज छत्तीसगढ़ की जैव विविधता और पक्षी संरक्षण के क्षेत्र में एक उपलब्धि मानी जा रही है। ([email protected])