सांप-बिच्छू और दस फीट की बाउंड्री
ये होली के बाद भांग में डूबा वाकया नहीं है। पूरी तरह से नान होली सीरियस है। जो बताता है कि मैडम साहब लोग तय कर लें तो सब संभव है। हम बात कर रहे हैं डाक विभाग की। करीब साल भर साहब मैडम विभाग की छत्तीसगढ़ मुखिया रही। उनके दिल्ली तबादले पर जाने से पहले बंगले में एक सांप निकला। घबराई मैडम साहब ने झट से सिविल विंग की बैठक ली और पांच हजार वर्ग फीट से अधिक के बंगले को सांप- बिच्छू से सुरक्षित करने की योजना बनाने कहा।
बस यही मौका था सिविल विंग के लिए । उसने भी तेजी दिखाई और बना दिया लाखों का प्राक्कलन(एस्टीमेट)। इसमें बंगले की चाहरदीवारी को 10 फीट ईंट- सीमेंट-रेती से ऊंचा कर और उसके उपर कांटेदार ग्रील से कर दी बंगले की किलेबंदी। अभी दीवार बन ही रही थी कि मैडम साहब का तबादला हो गया। लेकिन काम जारी है। इसमें कोई गलत भी नहीं है नए साहब आ रहे हैं तो उनकी सुरक्षा में काम आएगा। जमीन पर चलने बिल में रहने वाले सांप-बिच्छू के लिए उंची दीवार बनाने के हास्यास्पद, फिजूलखर्च पर विभाग में उंगली उठने लगी को सिविल विंग ने जस्टीफिकेशन निकाला। कहने लगे मैडम साहब के यहां एक दिन चोरों ने पांच फीट की पुरानी दीवार को फांदा था। भविष्य में ऐसा न हो इसलिए दीवार ऊंची और कांटेदार बनानी पड़ रही है। मगर क्या करें ये सिस्टम, तकलीफ में पड़े साहब को सुविधा देने कुछ भी कर सकता है।
वैसे इस बंगले के रेनोवेशन में पुराने साहब ने भी लाखों खर्च कराए थे ।और अब नए भी आ रहे। वो भी कुछ न कुछ करवाएंगे। और फंड तो है ही पोस्ट आफिस बिल्डिंग फंड। अब लोग कह रहे हैं इस दीवार की लागत इतनी है कि उससे कम से कम एक ग्रामीण शाखा डाकघर तो बन ही सकता था। सिविल विंग वाले साहब ही हमें बता रहे थे कि साल भर में पूरे छत्तीसगढ़ में दो ही डाकघर के भवन बना पाए हैं।
मंत्री को पहली नोटिस
सरकार के मंत्री लखनलाल देवांगन मुश्किलों से घिर गए हैं। भाजपा संगठन ने उन्हें कोरबा नगर निगम सभापति के चुनाव में बागी प्रत्याशी का समर्थन करने पर नोटिस थमा दिया। देवांगन ने पार्टी के बागी सभापति प्रत्याशी की जीत पर सार्वजनिक तौर पर उन्हें बधाई दे दी थी। देवांगन के बयान को अनुशासनहीनता करार दिया गया और फिर उनसे दो दिन के भीतर जवाब मांगा गया। जैसे ही नोटिस उद्योग मंत्री तक पहुंची, तो वो भागे-भागे प्रदेश अध्यक्ष किरणदेव के घर पहुंचे, और अपनी तरफ से सफाई पेश की। यह पहला मौका है जब राज्य बनने के बाद किसी मंत्री को पार्टी ने अनुशासनहीनता पर सीधे नोटिस जारी किया गया।
सुनते हैं कि देवांगन को नोटिस सीधे पार्टी हाईकमान की दखल के बाद दिया गया है। दरअसल, सभापति के लिए पार्टी ने हितानंद अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया था। पार्टी ने रायपुर ग्रामीण के विधायक पुरंदर मिश्रा पर्यवेक्षक बनाकर भेजा था। चर्चा है कि स्थानीय विधायक और सरकार के मंत्री लखनलाल देवांगन, पार्टी के बागी नूतन ंिसंह राजपूत के समर्थन में थे। राजपूत चुनाव जीते, तो देवांगन ने उन्हें यह कह दिया कि वो भी भाजपा के ही हंै। फिर क्या था, देवांगन के विरोधियों ने न सिर्फ प्रदेश नेतृत्व बल्कि हाईकमान को शिकायत भेज दी।
प्रदेश संगठन पहले तो विधानसभा सत्र को देखते हुए कार्रवाई को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं था लेकिन हाईकमान से मैसेज के बाद देवांगन को नोटिस थमानी पड़ी। पार्र्टी ने सभापति चुनाव में हार के कारणों का पता लगाने के लिए जांच समिति बनाई है। कहा जा रहा है कि जांच रिपोर्ट पर ही कुछ हद देवांगन के भविष्य का निर्भर है। देखना है आगे क्या होता है।
कागजों में सुनहरा बस्तर...
नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर में हर साल हजारों करोड़ रुपये के फंड जारी होते हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश स्थानीय आदिवासियों की बुनियादी जरूरतों की ओर सरकार का ध्यान नहीं जाता। आजादी के 76 साल बाद भी यहां मरीजों को एंबुलेंस जैसी आवश्यक सेवा उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं।
ताजा मामला, अरनपुर ब्लॉक के कुआकोंडा के समीप स्थित बंडीपारा गांव का है। गांव की एक महिला की तबीयत अचानक बिगड़ी, तो उसके परिजनों ने एंबुलेंस के अभाव में उसे कांवड़ में बैठाकर चार किलोमीटर दूर अरनपुर अस्पताल तक पहुंचाया। लेकिन विडंबना देखिए—इतनी तकलीफदेह यात्रा के बाद जब वे अस्पताल पहुंचे, तो वहां डॉक्टर ही नदारद थे।
घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद स्वास्थ्य विभाग की नींद टूटी। सीएमएचओ के निर्देश पर मरीज को दंतेवाड़ा जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया और लापता डॉक्टरों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। लेकिन असली सवाल यह है कि आखिर कब तक बस्तर के मरीजों को इस तरह की अमानवीय परिस्थितियों से गुजरना पड़ेगा? ब्लॉक मुख्यालय में एक भी एंबुलेंस न होना प्रशासन की बड़ी विफलता को सामने लाता है।
साथी के लिए असीम प्रेम और शोक
जानवरों में भी इंसानों की तरह गहरी भावनाएं होती हैं। हाथियों में तो यह भावना हम अपने छत्तीसगढ़ के जंगलों में कई बार देखते हैं। रूस में 25 वर्षों से साथ रहे सर्कस के भारतीय नस्ल दो हाथियों में से एक, जेनी की मूत्राशय की बीमारी से 54 साल की उम्र में मृत्यु हो गई। उसकी साथी मग्दा ने उसे छोडऩे से इनकार कर दिया। जेनी के आखिरी क्षणों में मग्दा ने उसे बार-बार सहलाया, हल्के धक्के देकर उठाने की कोशिश की और जब समझ गई कि वह नहीं उठेगी, तो उसे अपने स्नेह से गले लगा लिया। मग्दा की यह वेदना घंटों तक जारी रही। वह अपने साथी के पास बैठी रही और किसी को भी उसके करीब आने नहीं दिया।
सोशल मीडिया पर वायरल हुए इस वीडियो ने दुनिया भर में लोगों को झकझोर दिया। मग्दा का अपने साथी के प्रति इस प्रेम और शोक ने कई लोगों को रुला डाला। लेकिन क्या अक्सर हम जानवरों के भीतर मौजूद संवेदना को समझ पाते हैं?