आयुष्मान पर सवाल-जवाब
राज्यसभा सदस्य रंजीत रंजन ने कल सदन में सवाल उठाया कि छत्तीसगढ़ में आयुष्मान योजना के तहत 5 से 6 हजार करोड़ रुपये का भुगतान बकाया है, जिससे निजी अस्पताल मरीजों का इलाज करने से इंकार कर रहे हैं। उन्होंने पूछा कि क्या यह सही है कि सरकार प्रति व्यक्ति 5 लाख रुपये तक का बीमा देती है, लेकिन अस्पतालों में इलाज का खर्च 1.5 से 2.5 लाख रुपये तक ही मिलता है, शेष राशि मरीजों को अपनी जेब से चुकानी पड़ती है? इस पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा ने जवाब दिया कि केंद्र सरकार की ओर से कोई भुगतान नहीं रुका है। अगर कोई देरी हुई है, तो राज्य सरकार उसे हल करे। उन्होंने यह भी कहा कि डिजिटलीकरण की प्रक्रिया के चलते कुछ मामलों में भुगतान अलर्ट मिलते हैं, जिन्हें जांच के बाद निपटाया जाता है।
छत्तीसगढ़ आईएमए ने हाल ही में सरकार को बताया था कि जून 2024 से करीब 1500 करोड़ रुपये का भुगतान लंबित है, सांसद को 5 से 6 हजार करोड़ का आंकड़ा कहां से मिला यह साफ नहीं है। मगर, केंद्रीय मंत्री नड्डा ने कहा कि केंद्र से भुगतान जारी कर दिया जाता है, अगर कहीं अड़चन है, तो राज्य सरकार को इसे सुलझाना होगा।
पांच लाख रुपये तक के मुफ्त इलाज की योजना है, मगर इसमें 40 प्रतिशत राशि राज्य सरकार को वहन करनी पड़ती है। पूर्ववर्ती राज्य सरकार ने इसी हिस्सेदारी को लेकर असहमति जताते हुए इस योजना से बाहर निकलकर यूनिवर्सल हेल्थ स्कीम लागू करने का प्रस्ताव दिया था। देश के कुछ अन्य राज्य, जैसे पश्चिम बंगाल और दिल्ली ने भी इस योजना को लागू नहीं किया और मुफ्त इलाज की योजनाएं शुरू कीं।
छत्तीसगढ़ के मामले में यदि केंद्र सरकार कह रही है कि उसने भुगतान नहीं रोका, तो क्या राज्य सरकार का 40 प्रतिशत अंश न मिलने के कारण यह संकट खड़ा हुआ है? इसके अलावा, प्रदेश के कई निजी अस्पतालों द्वारा फर्जी क्लेम किए जाने की घटनाएं भी सामने आई हैं, जहां बिना विशेषज्ञ डॉक्टरों और आवश्यक उपकरणों के इलाज दिखाया गया। पिछले महीने ऐसे करीब तीन दर्जन अस्पतालों को प्रतिबंधित किया गया था। ये गड़बडिय़ां और भुगतान का रुकना- दोनों मसले आपस में जुड़े दिखते हैं। यदि स्वास्थ्य विभाग को लगता है कि अन्य अस्पतालों में भी ऐसी अनियमितताएं हुई हैं, तो उनकी जांच में देरी क्यों हो रही है? क्या निगरानी के लिए कोई सख्त व्यवस्था खड़ी करने की जरूरत नहीं है?
राज्यसभा में यदि सांसद इस विषय को और विस्तृत जानकारी के साथ गहराई से उठाते, तो छत्तीसगढ़ में गरीबों को मिलने वाली मुफ्त इलाज की सुविधा की स्थिति अधिक स्पष्ट हो पाती।
किसी के अपने किसी के पराए
प्रदेश के कांग्रेस विधायकों ने बड़े उद्योग समूह जिंदल स्टील के खिलाफ विधानसभा में मामला उठाया, तो सत्ता पक्ष के सदस्य चौंक गए। यह संभवत: पहला मौका है जब कांग्रेस विधायकों ने रायगढ़ के जिंदल स्टील एण्ड इंडस्ट्रीज के खिलाफ सदन के अंदर, और बाहर कोई बात उठाई है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि जिंदल समूह के मुखिया नवीन जिंदल कांग्रेस के सांसद रहे हैं, और उनकी विशेषकर कांग्रेस के नेताओं से घनिष्ठता रही है। मगर अब परिस्थितियां बदल गई हैं। नवीन जिंदल भाजपा के सांसद हैं। ऐसे में जिंदल घराने की गड़बडिय़ों पर पूर्व सीएम भूपेश बघेल भी काफी मुखर दिखे।
पूर्व मंत्री उमेश पटेल ने केलो परियोजना के लिए अधिग्रहित जमीन जिंदल स्टील को देने का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। और जब उमेश पटेल सवाल पूछ रहे थे, तो पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने कह दिया आप कब से जिंदल के खिलाफ हो गए हैं? चंद्राकर यही नहीं रूके, उन्होंने यह भी कह दिया जिंदल का प्लेन तो आपके लिए ही चलती थी। हालांकि इस पर उमेश पटेल ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। चंद्राकर के कथन में सच्चाई भी है। रायगढ़ के कई नेता रायपुर आने-जाने के लिए जिंदल का प्लेन इस्तेमाल करते रहे हैं। ये अलग बात है अब राजनीतिक परिस्थितियां बदल गई हंै। चाहे कुछ भी हो, दशकों तक जिंदल उद्योग समूह की गड़बडिय़ों पर चुप्पी साधने के बाद मुखर होने पर सवाल तो उठेंगे ही।
रिकेश को स्पीकर की फटकार
नए नवेले विधायकों के साथ समस्या ये है कि वो कई बार संसदीय परम्परा को तोड़ देते हैं। ऐसे ही एक भारत माला सडक़ मुआवजा घोटाले में चर्चा के दौरान स्पीकर डॉ रमन सिंह ने वैशाली नगर विधायक रितेश सेन को फटकार लगाई। दरअसल, चर्चा के दौरान रितेश सेन, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत के साथ एक तरह से वाद विवाद करने लगे थे।
महंत इस घोटाले की सीबीआई से जांच कराने की मांग कर रहे थे। इस पर रिकेश, महंत से बार बार पूछते रहे कि आप पहले बताएं कि आपको केंद्रीय जांच एजेंसी पर कब से भरोसा हो गया। भरोसा है कि नहीं? नेता प्रतिपक्ष के वक्तव्य के समय बार-बार की टोकाटाकी देख स्पीकर डॉ. सिंह ने रिकेश से कहा बैठ जाइए, यह ठीक नहीं है सदन आपको नहीं चलाना है। इसके बाद रिकेश सेन शांत हुए।