सब कुछ ऊपरवाला तय करेगा
नगरीय निकायों में सभापति के चुनाव को लेकर हलचल शुरू हो गई है। सभी नगर निगमों, और ज्यादातर पालिकाओं में पार्षदों की संख्या के आधार पर भाजपा का सभापति बनना तय है। सभी नगर निगमों में 50 फीसदी से अधिक पार्षद भाजपा के ही जीतकर आए हैं। ऐसे में सभापति कौन होगा, यह प्रदेश भाजपा संगठन तय करेगा। ज्यादातर निकायों में तो भाजपा पार्षदों ने बकायदा प्रस्ताव पारित कर सभापति प्रत्याशी तय करने का जिम्मा प्रदेश संगठन पर छोड़ दिया है।
रायपुर नगर निगम के तो सभापति का नाम तय करने के लिए शनिवार को बैठक हुई। बैठक में पार्षदों ने पर्यवेक्षक धरमलाल कौशिक की मौजूदगी में एक लाइन का प्रस्ताव पारित कर सभापति प्रत्याशी तय करने का जिम्मा पार्टी पर छोड़ दिया। पहले पार्षदों को उम्मीद थी कि पर्यवेक्षक एक-एक कर पार्षदों से राय लेंगे। मगर ऐसा नहीं हुआ। हालांकि कौशिक ने कहा कि यदि पार्षद अपनी तरफ से कोई सुझाव देना चाहे, तो वो अकेले में दे सकते हैं। लेकिन किसी भी पार्षद ने सुझाव नहीं दिया। वैसे भी प्रदेश संगठन से नाम आएंगे, तो सुझाव देने का मतलब नहीं था। न सिर्फ नगरीय निकायों बल्कि जिला पंचायतों के लिए भी नाम प्रदेश से संगठन से आएंगे। यही वजह है कि कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में नवनिर्वाचित जनप्रतिनिधियों की भीड़ लगी है।
मॉडल सरीखा ऑटो-ड्राइवर
राजधानी रायपुर की सडक़ पर अभी कुछ दिन पहले एक ऐसा ऑटोरिक्शा ड्राइवर दिखा जो कि किसी फैशन मॉडल की तरह था। एकदम साफ धुली हुई, प्रेस की हुई जींस, उस पर अच्छा काला टी-शर्ट, और ऑटोरिक्शा ड्राइवर की पोशाक का खाकी शर्ट भी एकदम चमचमाता। चश्मे की बड़ी अच्छी फ्रेम, किसी मॉडल की तरह के बाल और दाढ़ी-मूंछ, एक हाथ में सुनहरा कड़ा, और एक हाथ में फिटनेस बैंड। सिर से पैर तक बेदाग! देखकर लगा मानो किसी फिल्म की शूटिंग चल रही हो, लेकिन आसपास दूर-दूर तक कोई कैमरे नहीं थे। लोग किसी भी काम में रहें, चुस्त-दुरूस्त और शानदार तरीके से भी रह सकते हैं।
मन के हारे हार, मन के जीते जीत
पंचायत चुनावों में इस बार अधिकारियों ने लोकतंत्र को नयी ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। जीतने-हारने का साधारण नियम है। जिसे ज्यादा वोट मिले वह जीता, जिसे कम मिला वह हारा। पर अधिकारियों ने जीत और हार की परिभाषा को ही बदल डाला और जीतने हारने वाले दोनों प्रत्याशियों को जीत का प्रमाण पत्र दे दिया।
एक तो कोंटा, बस्तर के कांग्रेस नेता हरीश कवासी का आरोप है। उनका कहना है कि एर्राबोर पंचायत में जीते हुए प्रत्याशी को छुट्टी का बहाना बनाकर प्रमाण पत्र देने से इनकार किया गया, और हारे हुए प्रत्याशी को चुपचाप रात के अंधेरे में विजयी घोषित कर दिया गया। मगर बात यहीं खत्म नहीं हुई।
सुकमा के ग्राम पंचायत गुमोड़ी में कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी हेमला कोसा और भाजपा समर्थित प्रत्याशी अनिल मोडियम सरपंच पद के उम्मीदवार थे। शाम को मतगणना पश्चात अनिल मोडियम 23 मतों से सरपंच का चुनाव जीत गए। लेकिन कोंटा के रिटर्निंग ऑफिसर ने अनिल की जगह हेमला कोसा को प्रमाण बना दिया। इतना ही नहीं कार्यालय से हेमला कोसा को प्रमाण पत्र लेने के लिए फोन के माध्यम से बुलाया गया। जब कोसा कांग्रेस पार्टी के नेताओं के साथ प्रमाण पत्र लेने पहुंचा तो मामला उजागर हुआ। जब भाजपा प्रत्याशी अनिल को इसका पता चला तो अधिकारी हड़बड़ा गए और हेमला के हाथ से जीत का सर्टिफिकेट लेकर फाड़ दिया। ऐसी ही शिकायत एमसीबी जिले के भरतपुर तहसील से आई है। यहां के ओहनिया पंचायत के सरपंच उम्मीदवार जगत बहादुर सिंह ने एसडीएम से शिकायत की है कि उन्हें ज्यादा वोट मिले लेकिन जीत का प्रमाण पत्र हारे हुए उम्मीदवार जयकरण सिंह को दे दिया गया है। कोरबा जिले के डोकरमना पंचायत में प्रत्याशियों को चुनाव चिन्ह कुछ और आवंटित किए गए लेकिन जब मतपत्र प्रकाशित होकर आए तो उनके चिन्ह बदल गए थे। बालोद के कोरगुड़ा में एक प्रत्याशी को पहले दो वोट से जीता हुआ बताया गया फिर उसे 8 वोट से हारा हुआ घोषित कर दिया गया। हर जिले से ऐसी खबरें आई हैं। कुछ स्थानों से यह भी शिकायत रही कि मुहर ठीक से दिखाई देने के कारण मतपत्र निरस्त कर दिए गए। पंचायत चुनाव के पहले चुनाव अमले को जो प्रशिक्षण दिया गया था, लगता है उसमें खामियां रह गई थीं।
देसी स्टाइल का ओपन चैलेंज
कोरबा जिले के उरगा थाना क्षेत्र के नवापारा गांव में हुए मर्डर ने अनोखा मोड़ ले लिया है। यहां रात में घर के बाहर सो रहे एक वृद्ध की हत्या से पूरा गांव सहमा हुआ था ही, लेकिन बात आगे बढ़ गई। हत्यारे ने गांव की दीवारों पर पांच और लोगों को मारने की धमकी लिखकर जबरदस्त खौफ पैदा कर दिया है।
आजकल हम देखते आए हैं कि अपराधी फोन कॉल, सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए धमकियां देते हैं। पुलिस आईपी एड्रेस ट्रेस, कॉल डिटेल एनालिसिस और डिजिटल फोरेंसिक से तुरंत अपराधी तक पहुंच जाती है। मगर, यहां पर अपराधी जरा अलग है। उसने तकनीक को पीछे छोडक़र पुराना हाथ से लिखने वाला तरीका अपनाया है। उसने पुलिस को 90 के दशक वाली जांच करने पर मजबूर कर दिया है।
पुलिस अब संदेहियों की हैंडराइटिंग के सैंपल इक_ा कर रही है और इसे जांच के लिए रायपुर भेजा जा रहा है। यानी, जहां देश के कोने-कोने में बैठे साइबर ठगों को पकडक़र लाने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल हो रहा है, वहीं इस गांव में, या आसपास के गांव में बैठे अपराधी की उसकी लिखावट से ढूंढने की कोशिश हो रही है। छह दिन बीत गए सुराग मिला नहीं है।
गांव के लोग खौफ में जी रहे हैं। कोई नहीं जानता कि अगला निशाना कौन होगा। पुलिस के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन गया है। देखना दिलचस्प होगा कि अपराधी की हाथ की लिखाई उसे जेल की सलाखों तक ले जाती है या फिर पुलिस को अभी और पसीना बहाना पड़ेगा। आपको यह घटना हॉरर कॉमेडी मूवी स्त्री और स्त्री-2 की याद दिला सकती है, जिसमें चुड़ैल से बचने के लिए लोगों ने अपने घर के बाहर दीवार पर लिखा था- ओ स्त्री कल आना।
हर आफिस से एक ही जवाब साहब विधानसभा गए हैं
नए वर्ष के संकल्प (रेजुलुशन) के तहत पंचायत से सचिवालय तक राइट टाइम वर्किंग को लेकर बीते दो माह तक भाग दौड़ मची हुई थी। सचिव, कलेक्टर-कमिश्नर, एसपी सभी अपने अपने महकमे के लेट कमर्स की धरपकड़ में लगे हुए थे। कुछेक पकड़े भी गए। इनमें दूर जिलों के एक-दो कलेक्टर भी शामिल रहे । उसके बाद 36 दिन चुनाव में निकल गए। आचार संहिता हटी तो एक बार फिर से पूरा अमला खासकर राजधानी के साहब-बाबू उसी पुराने ढर्रे पर आ गए हैं। वह भी फाइनेंशियल ईयर के अंतिम महीने फरवरी मार्च में। और इसी महीने हर आफिस में आम व्यक्ति को वर्षांत वाले काम निपटाने होते हैं और जब वह आफिस पहुंच रहा है तो बड़े बाबू गायब। 10बजे पहुंचों तो तीन बजे आएंगे और तीन बजे पहुंचों तो आज नहीं आए, का जवाब बाजू में बैठे लोग देते हैं। और बहुतायत के पास तो एक सबसे बड़ा और अहम अनएवायडेबल कारण होता है- विधानसभा गए हैं। चाहे मंत्रालय हो, संचालनालय हो या फिर तहसील और निगम का जोन आफिस। पहले दो तो समझ आता है बाद के दो आफिस के स्टाफ का विधानसभा से क्या काम? लेकिन सुबह आओ हाजिरी रजिस्टर में साइन करो और विधानसभा का बहाना लेकर निकल जाओ। यह सिलसिला अभी अगले पूरे 24 मार्च तक चलेगा। आफिसों में एक बार फिर कुर्सियां बैठने वालों का इंतजार करती रहेंगी। और लोग चक्कर पे चक्कर लगाते रहेंगे। ऐसे में इस वर्ष के काम 1अप्रैल के नए वर्ष में ही हो पाएंगे।