जिला पंचायतों में कब्जे के लिए जोड़-तोड़
भाजपा ने प्रदेश के सभी 33 जिला पंचायतों में अपना अध्यक्ष बनाने के लिए कोशिशें तेज कर दी हैं। सभी जिलों में 5 मार्च को जिला पंचायत अध्यक्ष, और उपाध्यक्ष के चुनाव होंगे। इसके एक दिन पहले यानी 4 तारीख को जनपद अध्यक्ष और उपाध्यक्षों के होंगे। भाजपा को भले ही सभी जिला पंचायतों में बहुमत नहीं मिला है, लेकिन निर्दलीयों के सहारे अपना अध्यक्ष, और उपाध्यक्ष बिठाने की जुगत में हैं।
हालांकि कुछ जिले ऐसे हैं, जहां स्थानीय बड़े नेताओं की महत्वाकांक्षा के चलते पार्टी के रणनीतिकार पशोपेश में है। मसलन, सूरजपुर जिले में भाजपा को अपना अध्यक्ष बनवाने के लिए पूर्व केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह की मदद लेनी पड़ सकती है। रेणुका सिंह की पुत्री मोनिका सिंह बागी होकर चुनाव लड़ी थीं, और जिला पंचायत सदस्य बनने में कामयाब रही। चर्चा है कि रेणुका सिंह अपनी पुत्री को अध्यक्ष बनवाना चाहती हैं। मगर स्थानीय नेता इसके लिए तैयार नहीं हैं। ऐसे में रेणुका सिंह के पास विकल्प है कि वो कांग्रेस का समर्थन लेकर अपनी पुत्री को अध्यक्ष बनवा सकती हैं। कांग्रेस नेता इसके लिए तैयार भी हैं। हालांकि रेणुका सिंह भाजपा संगठन के प्रमुख नेताओं से लगातार चर्चा कर रही हैं, और वो बेटी को अधिकृत प्रत्याशी घोषित कराने के लिए प्रयासरत हैं। इसी तरह बलरामपुर-रामानुजगंज जिले में भाजपा को बहुमत मिला हुआ है। यहां के नेता पूर्व संसदीय सचिव सिद्धनाथ पैकरा को अध्यक्ष बनाना चाहते हैं, लेकिन कृषि मंत्री रामविचार नेताम, पैकरा के खिलाफ बताए जाते हैं।
स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल के गृह जिले मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी में भी भाजपा को मुश्किलें आ रही है। रायपुर में कांग्रेस और भाजपा के जिला पंचायत सदस्यों की संख्या बराबर है। मगर दो निर्दलियों के भाजपा के समर्थन में आने से यहां राह थोड़ी आसान हो गई है। भाजपा के रणनीतिकारों ने कुछ जिलों के नवनिर्वाचित सदस्यों को प्रदेश के बाहर भी भेज दिया गया है। भाजपा के पंचायत चुनाव के प्रमुख सौरभ सिंह सभी 33 जिला पंचायतों में अपना अध्यक्ष-उपाध्यक्ष बनाने का दावा कर रहे हैं, तो यह बेवजह नहीं है।
एक हाईवे यह भी है...
जम्मू-कश्मीर-लद्दाख हाईकोर्ट ने नेशनल हाईवे 44 की हालत खराब होने के चलते एनएचआईए को आदेश दिया है कि व टोल टैक्स में 80 प्रतिशत की कमी करे। कोर्ट ने कहा कि जब सडक़ ही दुरुस्त नहीं हो तो टोल टैक्स क्यों पूरा लिया जाए। अपने राज्य छत्तीसगढ़ में भी कुछ नेशनल हाईवे ऐसी स्थिति में हैं कि उन पर टैक्स लेना वाजिब नहीं लगता। यह अंबिकापुर से गढ़वा तक जाने वाली नेशनल हाईवे 343 के शंकर घाट की तस्वीर है, जिसमें कई-कई फीट गड्ढे हैं। राजपुर तक तो सडक़ इतनी खराब कि लोग रास्ता बदलकर जाते हैं, भले ही दूरी और समय अधिक लगे।
राजनीति के धुएं में अफवाहों की आंच
हाल ही में कांग्रेस नेता शशि थरूर के बयान और उनकी भाजपा नेताओं के साथ तस्वीरों ने ऐसा ही माहौल बना दिया, जैसा कभी छत्तीसगढ़ के पूर्व उपमुख्यमंत्री टी.एस. सिंहदेव के साथ हुआ था।
विधानसभा चुनाव से पहले सिंहदेव ने रायगढ़ के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ कर दी- कहा कि हमने जो मांगा-आपसे मिला। ऐसा लगा कि वे कांग्रेस से बगावत करने जा रहे हैं। अटकलों का बाजार और गरम हुआ, जब उन्होंने स्वीकार कर लिया कि दिल्ली में भाजपा के नेताओं से उनकी मुलाकात हुई और ऑफर मिला। फिर तो ऐसा माहौल बन गया मानो बाबा जल्द ही भगवा धारण कर लेंगे। लेकिन कुछ ही दिनों में उन्होंने साफ कर दिया, मेरी विचारधारा उनसे कभी नहीं मिलने वाली।
अब वही स्क्रिप्ट थरूर के लिए रिपीट हुई। उन्होंने मोदी सरकार की कुछ नीतियों की सराहना की। वंदे भारत को लेकर खुशी जताई। इतना ही नहीं केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के साथ फोटो भी शेयर कर दी। फिर तो वे ट्विटर ट्रोल पर आ गए, टीवी डिबेट्स होने लगे। कांग्रेस के अंदर भी कानाफूसी होने लगी। केरल में जल्दी ही विधानसभा चुनाव हैं। भाजपा नेताओं के चेहरे पर मुस्कान दिखने लगी, मजे लेने लगे। मगर , थरूर ने भी सिंहदेव स्टाइल में साफ कर दिया कि वे भाजपा में नहीं जाने वाले।
राजनीतिक दलों में पढ़े-लिखे, बौद्धिक विचार वाले नेताओं का अकाल पड़ता जा रहा है। यह हाल कांग्रेस का भी है। सिंहदेव और थरूर जैसे नेताओं की उनकी पार्टी को भी जरूरत है। पर, जब इन्हें लगता है कि उनकी प्रतिभा और क्षमता का सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है- खेमेबाजी, पैंतरेबाजी के शिकार हो रहे हैं तो इसी अंदाज में अपनी ओर ध्यान खींचते हैं।