राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : म्युनिसिपल से पंचायत का फर्क
26-Feb-2025 4:53 PM
राजपथ-जनपथ : म्युनिसिपल से पंचायत का फर्क

म्युनिसिपल से पंचायत का फर्क

नगरीय निकाय चुनाव में तो भाजपा सरकार के सभी मंत्रियों ने अपने इलाके में फतह दिलाई थी। मगर पंचायत चुनाव में सीएम विष्णुदेव साय को छोडक़र विशेषकर सरगुजा संभाग के मंत्रियों के इलाके में भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा है।

निकाय चुनाव में सीएम के विधानसभा क्षेत्र कुनकुरी के नगर पंचायत में भाजपा प्रत्याशी की हार ने सुर्खियां बटोरी थी, लेकिन जिला पंचायत और जनपद में विशेषकर कुनकुरी इलाके में कांग्रेस का सफाया हो गया। यहां  भाजपा समर्थित प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है। इससे परे सरगुजा इलाके के कृषि मंत्री  रामविचार नेताम के विधानसभा क्षेत्र रामानुजगंज में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है।

नेताम के करीबी बलवंत सिंह जिला पंचायत सदस्य का चुनाव बुरी तरह हार गए। यही हाल भाजपा समर्थित प्रत्याशियों का स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल के इलाके में भी रहा है। जायसवाल के विधानसभा क्षेत्र मनेन्द्रगढ़ के भाजपा समर्थित जिला पंचायत सदस्य प्रत्याशियों को हार का मुख देखना पड़ा।

महिला बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े केे विधानसभा क्षेत्र में भी भाजपा का प्रदर्शन फीका रहा है। लक्ष्मी राजवाड़े के विधानसभा क्षेत्र भटगांव में पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा की पत्नी शशिकला जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। सरगुजा संभाग के तीनों मंत्रियों को छोडक़र दोनों डिप्टी सीएम अरूण साव, विजय शर्मा के साथ अन्य मंत्री केदार कश्यप, दयालदास बघेल के विधानसभा क्षेत्र में पंचायत चुनाव में भी भाजपा का प्रदर्शन बढिय़ा रहा है।

वोट के बाद की अगली जीत

भाजपा ने सभी नगरीय निकायों में सभापति पद पर कब्जा जमाने की रणनीति बनाई है। नगर निगम और नगर पालिकाओं में सभापति प्रत्याशी चयन के लिए पार्टी ने पर्यवेक्षक भी नियुक्त कर दिए हैं। नगर निगमों में भाजपा को कोई दिक्कत नहीं है। यहां सभी 10 नगर निगमों में भाजपा के सभापति प्रत्याशी निर्विरोध चुने जाने के आसार है। निगमों में 50 फीसदी से अधिक पार्षद भाजपा के ही हैं।

नगर पालिकाओं की भी स्थिति थोड़ी अलग है। 49 में से 36 नगर पालिकाओं पर तो भाजपा का दबदबा है। यहां भाजपा के सभापति बनने की प्रबल संभावना है। मगर आठ नगर पालिकाओं में कांग्रेस और पांच में निर्दलीय अध्यक्ष चुने गए हैं। इन पालिकाओं में भाजपा अपने पार्षद को सभापति बनवाने के लिए जोड़ तोड़ कर रही है। इससे परे कांग्रेस में सभापति के मसले पर कोई विशेष तैयारी नहीं दिख रही है। स्थानीय नेताओं पर ही सबकुछ छोड़ दिया गया है। ऐसे में भाजपा सभी नगर पालिकाओं में सभापति बनवाने में कामयाब हो जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

कांग्रेस कुछ बेहतर कर लेती...

विधानसभा और नगरीय निकाय चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद कांग्रेस के लिए जिला पंचायत चुनाव में भी कोई बड़ी उम्मीद नहीं रह गई थी लेकिन जैसे-जैसे परिणाम आते जा रहे हैं, यह दिखाई दे रहा है कि यदि कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवारों के चुनाव में सावधानी बरती गई होती तो सम्मानजनक संख्या में जिला पंचायत सदस्य चुने जा सकते थे। कोरबा और राजनांदगांव में कांग्रेस से कोई भी अधिकृत उम्मीदवार जिला पंचायत सदस्य नहीं बन पाया। राजनांदगांव में ऐसे तीन प्रत्याशियों ने मैदान मार लिया, जिन्होंने दावेदारी नामंजूर किए जाने के बाद निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ा। अधिकृत उम्मीदवारों में कोई कांग्रेस विधायक की पसंद था तो कोई संगठन का। बिलासपुर में जितने निर्दलीय उम्मीदवार जीतकर आए हैं उनमें से एक को छोडक़र बाकी 4 कांग्रेस से जुड़े रहे हैं। कांग्रेस के अधिकृत केवल 3 प्रत्याशी चुनाव जीत सके। इनमें से कुछ लोगों को अधिकृत प्रत्याशी घोषित नहीं करने को लेकर संगठन के पदाधिकारी अड़ गए थे। जब अधिकृत उम्मीदवारों की हार हो गई, तो उन्हें समर्थन और बल देने वालों पर कार्रवाई का डंडा घुमा दिया गया। कुछ जगह परिणाम ऐसे रहे जिसमें अधिकृत और बागी उम्मीदवारों के वोट बंट गए और भाजपा समर्थित या निर्दलीय प्रत्याशी की जीत हो गई। कांग्रेस कुछ उम्मीद अंबिकापुर से कर सकती है। यहां जिला पंचायत में कुल 14 सदस्य हैं। इनमें से केवल 4 भाजपा के अधिकृत उम्मीदवारों के खाते में आई है। कांग्रेस के पास भी इतने ही सदस्य हैं। बाकी निर्दलीय हैं। इनमें से दो ऐसी सीटें हैं जिनमें जीते हुए निर्दलीय कांग्रेस के हैं। इन दो सीटों पर किसी को भी अधिकृत उम्मीदवार नहीं बनाया गया था। इस तरह से कांग्रेस के पास 6 सदस्यों का बहुमत हो जाता है। पर जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए 8 लोगों का समर्थन जरूरी है। भाजपा यहां पर कांग्रेस को रोकने के लिए किसी निर्दलीय को भी इस पद पर आगे कर सकती है।

समागम का लंच टाइम

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट हुआ। ग्लोबल समिट का मतलब यह नहीं है कि इसमें सिर्फ विदेशी निवेशक आएंगे, देश के लोग नहीं। अपने देश के लोग खाना पर्याप्त होने पर भी लंच या डिनर के बुफे में भगदड़ मचा ही देते हैं। सोशल मीडिया पर कुछ वीडियोज़ वायरल हो रहे हैं, जिसमें बताया गया है कि लंच के समय ऐसी भगदड़ मची कि लोग एक दूसरे को धकियाते हुए खाने की टेबल की ओर दौड़ पड़े। सबके लिए पर्याप्त भोजन होने के बाद भी हड़बड़ी मची हुई थी। लोगों ने पूछा कि क्या ये वही उद्योगपति हैं, जिनसे अरबों रुपये का निवेश करने का आश्वासन सरकार को मिला है? पता चला कि ये निवेशक नहीं हैं, कुछ भीड़ भी जुटाई गई थी, समारोह को भव्य बनाने के लिए। हो सकता है कि इनमें से कुछ लोग उद्यमियों के यहां के कर्मचारी हों...। ([email protected])

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