गीता की क़सम!
वैसे तो अदालतों में धार्मिक ग्रंथ गीता की शपथ लेते सुना, और देखा जा सकता है। मगर चुनाव में भी गीता की शपथ लेते देखा जा रहा है। रायपुर नगर निगम के एक वार्ड प्रत्याशी डॉ. विकास पाठक, लाल कपड़े में गीता लपेटकर घर-घर जा रहे हैं, और उनके सामने गीता की शपथ लेकर वार्ड की हर समस्याओं को हल करने का वादा कर रहे हैं। देश-प्रदेश में कई चुनाव हुए लेकिन पहली बार किसी प्रत्याशी को ऐसी शपथ लेते देखा गया।
पाठक कांग्रेस में थे पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दी। इस पर वो पार्टी से बगावत कर चुनाव मैदान में कूद गए हैं, और आज ही उन्हें निष्कासित किया गया। पाठक के चुनाव प्रचार के तौर तरीके की खूब चर्चा हो रही है। मगर मतदाता उन पर भरोसा करते हैं या नहीं, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
जेल के बाद अब चुनाव प्रचार
रायपुर की धर्मसंसद में महात्मा गांधी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने, और राजद्रोह के आरोप में 95 दिन जेल में गुजारने वाले विवादास्पद कालीचरण महाराज की निकाय चुनाव में एंट्री हुई है। कालीचरण महाराज ने दो दिन पहले रायपुर के एक भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव प्रचार भी किया।
कालीचरण महाराज के खिलाफ रायपुर में राजद्रोह का प्रकरण दर्ज हुआ था, और वो रायपुर के सेंट्रल जेल में थे। यहां रायपुर में उनके बड़ी संख्या में अनुयायी हैं। इन्हीं में से एक भाजपा प्रत्याशी बद्री गुप्ता ने कालीचरण महाराज को चुुनाव प्रचार के लिए आमंत्रित किया था। बद्री गुप्ता शहीद राजीव पांडे वार्ड से चुनाव लड़ रहे हैं।
कालीचरण महाराज ने दिन भर बद्री गुप्ता के साथ गली-मोहल्लों में भाजपा का प्रचार किया। उनका काफी स्वागत भी हुआ। उन्होंने हिन्दुत्व के लिए भाजपा को जिताने की अपील की। दिन भर प्रचार करने के बाद शाम को महाराष्ट्र चले गए। विवादास्पद कालीचरण महाराज का मतदाताओं पर कितना असर होता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
कांग्रेस नेताओं के पोस्टर लिए निर्दलीय!!
अंबिकापुर नगर निगम के एक वार्ड में कांग्रेस आखिरी तक प्रत्याशी घोषित नहीं कर पाई। इस वार्ड को रफी अहमद किदवई वार्ड के नाम से जाना जाता है। यहां शत-प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं, और कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। मगर आखिरी तक दावेदारों में सहमति नहीं बन पाई, और इस वजह से किसी को बी-फार्म जारी नहीं किया जा सका। खास बात यह है कि यहां आधा दर्जन प्रत्याशी चुनाव मैदान में है, जिनमें से दो निर्दलीय प्रत्याशी, टी.एस.सिंहदेव और मेयर प्रत्याशी डॉ.अजय तिर्की की तस्वीर लगाकर वोट मांग रहे हैं।
हु्आ यूं कि कांग्रेस ने अंबिकापुर नगर निगम को 8 जोन में बांट रखा है। इनमें से एक जोन के प्रभारी श्रम कल्याण बोर्ड के पूर्व चेयरमैन शफी अहमद हैं। शफी अहमद के जोन के अंतर्गत रफी अहमद किदवई वार्ड आता है।
रफी अहमद किदवई वार्ड पिछड़ा वर्ग आरक्षित है। यहां से कांग्रेस के दावेदारों में पहले पिछड़ा वर्ग की सर्टिफिकेट को लेकर विवाद चलता रहा। बताते हैं कि शफी अहमद ने हसन पठान को प्रत्याशी बनाने की सिफारिश की थी, इसके अलावा सरफराज और रशीद पेंटर नामक दो और दावेदार थे।
बाकी दो दावेदार ने हसन को टिकट देने की खिलाफत कर रहे थे। पूर्व डिप्टी सीएम टी.एस.सिंहदेव ने सभी दावेदारों से आपस में चर्चा कर नाम सुझाने के लिए कहा था लेकिन अंत तक सहमति नहीं बन पाई, आखिरकार यहां बी-फार्म किसी को जारी नहीं किया गया। अब दो निर्दलीय प्रत्याशी शाहिद और सरफराज, टी.एस. सिंहदेव की तस्वीर लगाकर वोट मांग रहे हैं। खास बात यह है कि इस वार्ड को भाजपा आज तक जीत नहीं पाई है। यहां इस बार भाजपा को कांग्रेस का अधिकृत प्रत्याशी नहीं होने से थोड़ी उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है। देखना है आगे क्या होता है।
सरकारी सिस्टम में छिपे कोचिये
राज्य में शराब को लेकर तीन अहम खबरें सामने हैं। सिमगा और बेमेतरा में पुलिस और आबकारी विभाग की कार्रवाई में करीब 1500 पेटी अवैध शराब जब्त की गई, जिसकी अनुमानित कीमत लगभग एक करोड़ रुपये बताई जा रही है। पकड़ी गई शराब कथित तौर पर मध्यप्रदेश से तस्करी कर लाई गई थी।
दूसरी ओर, बिलासपुर के लोफंदी गांव में शराब पीने से 7 लोगों की मौत हो गई, जबकि 4 की हालत गंभीर बनी हुई है। आशंका जताई जा रही है कि यह जहरीली अवैध शराब थी।
तीसरी खबर प्रदेश के आबकारी विभाग की बैठक की है। सचिव ने चिंता जताई है कि सरकारी शराब दुकानों की बिक्री लक्ष्य से कम हो रही है। उन्होंने आने वाले दिनों में बिक्री बढ़ाने का निर्देश जारी कर दिया गया है।
पंचायत और नगरीय चुनाव को देखते हुए पुलिस और आबकारी विभाग लगातार छापेमारी कर रहे हैं। इसके बावजूद अवैध शराब का कारोबार जारी है। दिलचस्प बात यह है कि जहां तस्करी और अवैध शराब की खपत बढ़ रही है, वहीं सरकारी दुकानों की बिक्री घटती जा रही है। इसका सीधा मतलब है कि लोग सरकारी शराब का विकल्प तलाश रहे हैं, भले ही इसके लिए उन्हें अपनी जान जोखिम में क्यों न डालनी पड़े।
सरकार जब शराब की कीमत बढ़ाती है, तो उसका मुनाफा भी बढऩा चाहिए। जब शराब की बिक्री ठेकेदारों के पास थी, तब कीमतों पर कुछ नियंत्रण था। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने शराब ठेका अपने हाथ में लेते हुए दावा किया था कि पृथ्वी पर कोचिए नजर नहीं आएंगे'। हकीकत यह है कि कोचिए अब भी सक्रिय हैं, तस्करी भी जारी है, बस इन्हें संरक्षण देने वाले चेहरे बदल गए हैं।
पहले शराब ठेकेदार आबकारी विभाग की मिलीभगत से अवैध कारोबार चलाते थे, लेकिन अब आबकारी अफसर और मैदानी कर्मचारी खुद इस पर नियंत्रण रख रहे हैं। हालिया छापों में यह सामने आया है कि अवैध शराब सिर्फ कोचियों के जरिए ही नहीं, बल्कि बार में भी महंगे ब्रांड के नाम पर तस्करी की शराब बेची जा रही है।
अगर सरकारी शराब दुकानों की बिक्री घट रही है और अवैध शराब व तस्करी बढ़ रही है, तो यह सरकार की नीति और क्रियान्वयन की विफलता है। ऐसे में महज बिक्री बढ़ाने का लक्ष्य तय करने से समस्या हल नहीं होगी। सरकार को यह समझना होगा कि लोग सरकारी दुकानों से शराब क्यों नहीं खरीद रहे? क्या कीमतें ज्यादा हैं? क्या गुणवत्ता को लेकर अविश्वास बढ़ रहा है? जब तक इन बिंदुओं पर मंथन नहीं होगा, तस्करी और अवैध शराब का कारोबार फलता-फूलता रहेगा।