चुनाव प्रचार में शिवजी !!
नगरीय निकाय चुनाव के बीच कांकेर में पंडित प्रदीप मिश्रा का शिव महापुराण की कथा चल रही है। कथा में भारी भीड़ उमड़ रही है। खास बात ये है कि कांकेर जिले में पिछले कई चुनावों में भाजपा का सुपड़ा साफ हो गया था। कांकेर नगर पालिका अध्यक्ष का पद तो भाजपा पिछले 25 साल से नहीं जीत पाई है। इस बार भाजपा यहां चुनाव जीतेगी या नहीं, इसको लेकर कयास लगाए जा रहे हैं।
चुनाव प्रचार की शुरूआत में कांग्रेस बेहतर स्थिति में रही है। वजह यह है कि निकाय-पंचायतों में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी रखने के खिलाफ समूचे बस्तर में सर्व पिछड़ा समाज का बड़ा आंदोलन हुआ था। आंदोलन का केन्द्र बिन्दु कांकेर जिला मुख्यालय रहा है। इसके अलावा ईसाई, और मुस्लिम वोटर भी कांकेर में अच्छी खासी संख्या में हैं। ये कोर वोटर माने जाते हैं।
इससे परे भाजपा ने पिछड़ा वर्ग को साधने के लिए अनारक्षित कांकेर नगर पालिका अध्यक्ष पद पर पिछड़ा वर्ग से प्रत्याशी दिए हैं। इन सबके बीच शिवमहापुराण कथा सुनने के लिए जिस तरह लोगों की भीड़ उमड़ी है, उससे भाजपा को बड़ी उम्मीदें हैं। कुल मिलाकर यहां पार्टी हिन्दुत्व कार्ड खेल रही है। शुक्रवार को कथा का समापन होगा। इसके चार दिन बाद मतदान है। तब माहौल भाजपा के पक्ष में रहेगा या नहीं, यह तो 15 तारीख को चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
छोटा चुनाव हाई प्रोफाइल
सीएम विष्णुदेव साय के विधानसभा क्षेत्र की कुनकुरी नगर पंचायत में कांग्रेस ने ताकत झोंक दी है। नगर पंचायत इलाके में मतांतरित आदिवासी वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। यही वजह है कि कांग्रेस यहां विशेष रूप से ध्यान दे रही है। कांग्रेस ने नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर युवक कांग्रेस नेता विनयशील को चुनाव मैदान में उतारा है। जबकि भाजपा ने सुदबल यादव को टिकट दी है।
कांग्रेस यहां चुनाव जीतकर प्रदेश में एक मैसेज देने की कोशिश में जुटी हुई है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने कुनकुरी में चुनावी सभा लेकर माहौल बनाने की कोशिश की है। मगर सामाजिक समीकरण अनुकूल होने के बाद भी कांग्रेस की राह कठिन हो गई है। वजह यह है कि सीएम के इलाके में पिछले 13 महीने में काफी काम हुए हैं। सीएम खुद एक बार सभा लेकर जा चुके हैं। यहां भाजपा प्रत्याशी के चुनाव प्रचार की कमान सीएम की पत्नी कौशल्या साय ने संभाल रखी है।
सीएम की पत्नी जनपद की पदाधिकारी भी रह चुकी हैं। लिहाजा, इलाके के लोग उनसे परिचित भी हैं, और वो जहां भी प्रचार के लिए जा रही हैं, उनके साथ सेल्फी लेने के लिए महिला-युवाओं की भीड़ जमा हो जा रही है। कुल मिलाकर छोटे से नगर पंचायत में चुनावी मुकाबला हाई प्रोफाइल हो गया है।
पत्रकार की हत्या पर संसद में चर्चा'
बस्तर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या का मामला संसद में उठा। आजाद समाज पार्टी के सांसद चंद्रशेखर आजाद ने लोकसभा में देशभर में दलितों, आदिवासियों और सच बोलने का साहस रखने वालों पर बढ़ते अत्याचार का मुद्दा उठाया। वे राष्ट्रपति के अभिभाषण पर अपनी पार्टी की ओर से वक्तव्य दे रहे थे।
आजाद ने कहा कि पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं। मुकेश चंद्राकर ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई, जिसके कारण उनकी हत्या कर दी गई। ऐसी स्थिति में कौन पत्रकार ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर पाएगा?
आजाद उत्तर प्रदेश की नगीना सीट से सांसद हैं, लेकिन उन्होंने न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि अन्य राज्यों में हुई अत्याचार की घटनाओं का भी अपने भाषण में जिक्र किया।
बलौदाबाजार उपद्रव को लेकर उनकी पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं पर पुलिस-प्रशासन ने कार्रवाई की है। छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान सांसद आजाद ने आरोप लगाया कि इस मामले की आड़ में दलित और पिछड़े समाज के निर्दोष लोगों को निशाना बनाया गया और उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा के अलावा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) तीसरी सबसे प्रभावी राजनीतिक ताकत रही है, लेकिन पिछले दो चुनावों में उसका जनाधार कमजोर हुआ है। 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा के दो विधायक चुने गए थे, लेकिन इस बार 2023 में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी। उत्तर प्रदेश में भी 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 403 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे सिर्फ एक सीट पर सफलता मिली। इन परिस्थितियों में बहुजन समाज पार्टी से जुड़े लोग चंद्रशेखर आजाद को मायावती के संभावित विकल्प के रूप में देखने लगे हैं। छत्तीसगढ़ में जब बसपा ने अपना आधार बढ़ाया था, तब पिछड़ा वर्ग भी उसके साथ था। संसद में अपने भाषण के दौरान आजाद ने ओबीसी के लिए क्रिमीलेयर की व्यवस्था समाप्त करने की भी मांग रखी।
इन सभी पहलुओं को देखते हुए यह साफ दिखाई देता है कि चंद्रशेखर आजाद की नजर बसपा के पारंपरिक वोट बैंक पर है और आने वाले चुनावों में इसका असर देखने को मिल सकता है।