राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : नेता हवा में, उम्मीदवार मिट्टी में
05-Feb-2025 4:31 PM
 राजपथ-जनपथ : नेता हवा में, उम्मीदवार मिट्टी में

नेता हवा में, उम्मीदवार मिट्टी में 

कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के लिए एक हेलीकॉप्टर किराए पर लिया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, पूर्व सीएम भूपेश बघेल हेलीकॉप्टर से प्रचार के लिए प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में जा रहे हैं। ये अलग बात है कि विशेषकर पार्टी के वार्ड प्रत्याशी संसाधनों की कमी का रोना रो रहे हैं, और उन्हें संसाधन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी मेयर प्रत्याशियों पर छोड़ दिया गया है। 

वार्ड प्रत्याशियों को संसाधन मुहैया कराना एक तरह से मेयर प्रत्याशियों की मजबूरी भी है। वजह यह है कि वार्ड प्रत्याशी मजबूत होंगे, तो इसका फायदा मेयर प्रत्याशियों को मिलेगा। वैसे भी समय कम रह गए हैं, और हर गली-मोहल्ले तक मेयर प्रत्याशी का पहुंच पाना संभव नहीं है। इससे परे कई जगहों पर कई वार्डों में निर्दलीय भी मजबूत स्थिति में  दिख रहे हैं। इनमें से ज्यादातर कांग्रेस के ही बागी हैं। ऐसे में मेयर प्रत्याशी निर्दलीयों का साथ लेने की भी कोशिश कर रहे हैं। देखना है कि कांग्रेस के मेयर प्रत्याशियों को इसका कितना फायदा मिलता है। 

54 विभाग, अवर सचिव, एसओ दोगुने

सोमवार को मंत्रालय कैडर में  हुए अवर सचिवों की पदोन्नति के बाद यही स्थिति हो गई है । विभागों में डेढ़  दो गुने से अधिक अवर सचिव अनुभाग अधिकारी हो गए हैं । अब जीएडी के पास समस्या यह आ खड़ी हुई है कि इन्हें कौन सा काम दिया जाए या बैठे बिठाए जीएडी पूल में रिजर्व रखकर वेतन दिया जाए। पूरी सरकार 54 विभागों से चलती है। और उसे गवर्नमेंट बिजनेस रूल के हिसाब से अवर सचिव ही संचालित करते हैं, आईएएस या अन्य नहीं।

राज्य मंत्रालय में सांख्येत्तर पद लेकर धड़ाधड़ पदोन्नति तो दे दी गई या ले ली गई । लेकिन अब सभी पदोन्नति के समक्ष काम का संकट आ खड़ा हुआ है। खासकर इस अवर सचिव, अनुभाग अधिकारी कैडर में। कैडर में अवर सचिव के 52 पहले से कार्यरत हैं और अब परसों 21 और बना दिए गए । 

विभाग हैं 54। अब जीएडी इनके लिए काम की तलाश कर रहा है। क्योंकि लोनिवि,पीएचई,वन,ऊर्जा, कृषि जैसे तकनीकी विभागों में उनके मूल कैडर के भी अवर सचिव तकनीकी सेक्शन सम्भाल रहे हैं । तो कई विभागों में डिप्टी कलेक्टर अवर सचिव बन बैठें हैं।  उन्हें बाहर कर मंत्रालय कैडर के इन नए नवेलों को नियुक्त नहीं किया जा सकता।  क्योंकि बहुतेरे मैट्रिकुलेट और तकनीकी ज्ञान से मामले में जीरों होते हैं। 

ऐसे में इन्हें रिजर्व पूल में रखकर, हर रिटायरमेंट के बाद नियुक्ति देने के अलावा विकल्प नहीं हैं। तब तक ये रोज आफिस आकर बिना काम के रोजी पकाएंगे। जैसे कलेक्टरों को  बिना विभाग के  मंत्रालय में पदस्थ करने की परंपरा पिछली सरकार से चली आ रही। हालांकि यह भी बताया गया है कि कुछ को लूप लाइन में डालने के लिए संस्कृति प्रकोष्ठ, एनआरआई सेल उपयुक्त माने जा रहे हैं। 21 लोगों के अवर सचिव बनने के बाद दूसरा संकट अनुभाग अधिकारियों का आ खड़ा हुआ है। यह कैडर भी ओवर लोडेड है। 

विभागों से लगभग दोगुने 97 पहले से कार्यरत हैं और 6 माह पहले पदोन्नत डेढ़ दर्जन और हो गए। और अब एसओ से अवर सचिव बनने से एकाएक 18 विभाग बिना एसओ के हो गए हैं। अब भला, अवर सचिव बनने के बाद इनसे एसओ का काम तो नहीं लिया जा सकता। ऐसे में इनकी पूर्ति के लिए नीचे के ग्रेड 1 बाबूओं को भी समयपूर्व पदोन्नति देनी होगी। यानी 6 माह में दूसरा प्रमोशन। और उधर सरकार के कुछ विभागों का मैदानी अमला बिना प्रमोशन के रिटायर होने मजबूर किया जाता है।

महंत का निशाना किस पर?

नगरीय निकाय चुनाव के प्रचार के बीच नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत के बयान से पार्टी के भीतर खलबली मची है। डॉ. महंत ने कह दिया है कि कांग्रेस विधानसभा का चुनाव पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव की अगुवाई में लड़ेगी। नेता प्रतिपक्ष ने एक तरह से प्रदेश कांग्रेस में बदलाव की तरफ इशारा किया है। हालांकि सिंहदेव ने महंत के बयान से पल्ला झाड़ा है, और कहा कि यह उनकी व्यक्तिगत राय है। और बदलाव का कोई भी फैसला हाईकमान लेता है। 

महंत, पार्टी के सबसे अनुभवी नेता हैं। उनके बयान के मायने तलाशे जा रहे हैं। कई लोग पीसीसी में बड़े बदलाव की तरफ इशारा कर रहे हैं। ऐसी चर्चा है कि प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को बदला जा सकता है। दरअसल, बैज को विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी गई थी, ताकि वो चुनाव प्रचार में पूरा समय दे सकें, मगर वो खुद अडक़र विधानसभा चुनाव लड़ गए, और हार गए। विधानसभा चुनाव में हार के बाद लोकसभा चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा। कोरबा को छोडक़र बाकी सारी लोकसभा सीटें पार्टी हार गई। 

इधर, नगरीय निकाय चुनाव में भी पार्टी के आसार अच्छे नहीं दिख रहे हैं। टिकट वितरण में गड़बड़ी सामने आई है। कई जगहों पर बैज का पुतला फूंका गया है। पहली बार ऐसा हुआ है जब एक नगर पंचायत अध्यक्ष समेत 33 वार्डों में भाजपा प्रत्याशी निर्विरोध चुने गए हैं। इसके लिए भी प्रदेश कांग्रेस के चुनाव प्रबंधन में जिम्मेदार माना जा रहा है। चर्चा है कि प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट भी खफा हैं। ऐसे में महंत के बयान के बाद बैज के भविष्य को लेकर हल्ला उड़ा है, और बदलाव की बात कही जा रही है, तो वह बेवजह नहीं है। 

सरकारी अस्पताल निजी हाथों में?

पिछले वर्ष नवंबर में बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण की बैठक में लिए गए निर्णय के परिपालन में राज्य सरकार ने यहां के 240-बेड वाले सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल का संचालन स्वयं करने के बजाय नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एनएमडीसी) को सौंप दिया। यह अस्पताल केंद्र सरकार की योजना के तहत बनाया गया है, जिसमें राज्य सरकार ने भी 40 प्रतिशत खर्च वहन किया है। राज्य सरकार ने इसे एनएमडीसी को इस विश्वास के साथ सौंपा कि एक केंद्रीय उपक्रम के पास होने से इसका बेहतर प्रबंधन होगा। अब स्थिति यह है कि एनएमडीसी ने स्वयं इसे संचालित करने के बजाय निजी कंपनियों के लिए टेंडर जारी कर दिया है। यानी, संचालन और मेंटेनेंस अब निजी हाथों में सौंपे जाने की प्रक्रिया में है। इस टेंडर को लेकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। नगरनार प्लांट की स्थापना के समय एनएमडीसी ने बस्तर के आदिवासियों और गरीब तबके के लिए एक आधुनिक अस्पताल स्थापित करने का आश्वासन दिया था। जिला प्रशासन ने इसके लिए जमीन भी आवंटित कर दी थी, लेकिन दो दशक बीत जाने के बावजूद यह अस्पताल धरातल पर नहीं उतर सका। जो एनएमडीसी, जो एक नया अस्पताल समय पर नहीं बना सकी, उसे एक बड़े सेटअप वाले सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल को संचालित करने की जिम्मेदारी दे दी गई।

सरकार और एनएमडीसी भले ही यह दावा कर रहे हैं कि निजी हाथों में संचालन जाने के बावजूद मुफ्त इलाज की सुविधा बरकरार रहेगी, लेकिन स्थानीय लोगों में संशय बना हुआ है। इधर, बिलासपुर के समीप कोनी में एक मल्टीस्पेशियलिटी अस्पताल की इमारत बनकर तैयार हो चुकी है। मार्च 2023 में उसका औपचारिक उद्घाटन किया गया, मगर एक वर्ष बीतने के बावजूद अब तक वहां ओपीडी से अधिक सुविधा शुरू नहीं हो पाई हैं। करोड़ों की मशीनें धूल खा रही हैं, स्टाफ और तकनीकी विशेषज्ञों की भर्ती पूरी नहीं हुई है।

सरकार पहले ही विभिन्न सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के लिए निजी अस्पतालों के साथ अनुबंध करती आ रही है, अब अरबों रुपये खर्च कर बनाए गए अपने ही अस्पतालों को चलाने से पीछे हट रही है? यदि यही सिलसिला चल निकला तो सरकारी अस्पतालों का भविष्य क्या होगा?

गर्मी की मिठास तैयार हो रही

छत्तीसगढ़ की नदियां केवल जल संसाधन ही नहीं, बल्कि किसानों के लिए आजीविका का महत्वपूर्ण साधन भी हैं। खासतौर पर गर्मी के मौसम में महानदी, शिवनाथ, इंद्रावती, खारून और हसदेव जैसी प्रमुख नदियों के किनारे किसान बड़े पैमाने पर वाटरमेलन (कलिंदर) की खेती करते हैं।

जनवरी से फरवरी के बीच बुवाई करने वाले किसान अप्रैल-मई तक अच्छी उपज प्राप्त कर लेते हैं। कलिंदर की मांग गर्मी में अत्यधिक बढऩे से यह नकदी फसल के रूप में किसानों को अच्छा लाभ देती है।

नदी तटों पर इस खेती के लिए सिंचाई और उर्वरक की कम आवश्यकता होती है क्योंकि मिट्टी में नमी बनी रहती है। तरबूज की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है, जिसमें तापमान 25 से 32 डिग्री सेल्सियस के बीच हो।  अकेले महासमुंद जिले में लगभग एक हजार एकड़ में तरबूज की खेती की जाती है, और इसकी मांग कोलकाता जैसे बड़े शहरों में भी है। मगर, छत्तीसगढ़ में भी दूसरे राज्यों से अलग वैरायटी के कलिंदर आ रहे हैं, जो आकार में छोटे व सस्ते भी हैं। हालांकि, जल स्तर में गिरावट और अवैध रेत उत्खनन से यह खेती प्रभावित हो रही है। नदियों को संरक्षित और और खेती को प्रोत्साहित किया जाए, तो यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को अधिक सशक्त बना सकती है। यह तस्वीर कसडोल के पास महानदी की है, जिसमें जहां तक नजर जा रही है, कलिंदर की खेती दिखाई दे रही है।

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