पहले मुख्य सचिव
राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश के चार राज्यों के मुख्य सचिवों को एग्जांपलर लीडरशिप सर्टिफिकेट से सम्मानित किया है। इनमें छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव अमिताभ जैन भी शामिल हैं। जैन के अलावा जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव अटल दुल्लू, राजस्थान की उषा शर्मा, हरियाणा के टीवी एस एन प्रसाद को भी इस प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया है। इनके अलावा जम्मू कश्मीर, असम, तमिलनाडु, यूपी और मप्र के डीजीपी को भी यह सम्मान दिया गया है।
यह सम्मान बीते एक वर्ष में हुए विधानसभा और लोकसभा चुनावों के बेहतर संचालन और निष्पक्ष निर्भीक व्यवस्था के लिए दिया गया है । 25 वर्ष पूर्व गठित छत्तीसगढ़ राज्य में अब तक हुए 12 मुख्य सचिवों में से केवल जैन ने ही यह उपलब्धि हासिल की है। स्वच्छ छवि और प्रचार से दूर रहने वाले जैन ने अपनी इस उपलब्धि को भी प्रचार से दूर रखा। यह सम्मान पिछले दिनों एलटीसी अवकाश के दौरान ही बिना किसी तामझाम के हासिल किया। चुनाव आयोग ने देश भर में केवल जम्मू कश्मीर के ही मुख्य सचिव और डीजीपी को ही यह सम्मान दिया है।
अन्य राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ के डीजीपी इससे चूक गए। वैसे भाजपा के राष्ट्रीय प्रतिनिधि मंडल ने ने एक वर्ष पूर्व हुए विधानसभा चुनाव के दौरान छत्तीसगढ़ के डीजीपी अशोक जुनेजा को बदलने भारत निर्वाचन आयोग से लिखित में मांग की थी। और उसके बाद जुनेजा ने लोकसभा चुनाव कराए और अभी छ माह की सेवा वृद्धि पर कार्यरत हैं । छत्तीसगढ़ के इतिहास में एक बार आयोग ने डीजीपी विश्वरंजन को हटाया था।
देवजी का इंकार
भाजपा में पंचायत चुनाव के लिए प्रत्याशियों की सूची जारी कर रही है। चूंकि चुनाव दलीय आधार पर नहीं हो रहे हैं। इसलिए जिले की कमेटी जिला पंचायत सदस्य प्रत्याशियों की सूची जारी कर रही है जिन्हें पार्टी का समर्थन है। खबर है कि विधानसभा टिकट से वंचित कई सीनियर नेताओं को जिला पंचायत चुनाव लडऩे की सलाह भी दी गई थी। मगर कुछ ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है।
चर्चा है कि धरसींवा से तीन बार के विधायक रहे पाठ्यपुस्तक निगम के पूर्व चेयरमैन देवजी पटेल को भी रायपुर जिला पंचायत सदस्य क्रमांक-एक से चुनाव लडऩे का प्रस्ताव दिया गया था। रायपुर जिला पंचायत अध्यक्ष पद अनारक्षित है। ऐसे में चुनाव जीतने के बाद बहुमत मिलने की दशा में देवजी को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने का भी विचार था, लेकिन देवजी ने साफ तौर पर पंचायत चुनाव लडऩे से मना कर दिया।
चूंकि देवजी ने चुनाव लडऩे से मना कर दिया है इसलिए उनकी जगह चंद्रशेखर शुक्ला को पार्टी की तरफ से अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया गया है। शुक्ला लोकसभा चुनाव के ठीक पहले भाजपा में आए थे। वो प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महामंत्री रहे हैं। कांग्रेस के कई दिग्गज नेता पंचायत चुनाव में हाथ आजमाने की तैयारी कर रहे हैं। अभी नामांकन दाखिले की प्रक्रिया चल रही है। तीन फरवरी को नामांकन दाखिले के बाद प्रत्याशियों को लेकर तस्वीर साफ होगी।
खुुशवंत-मनहरे आमने-सामने
नगरीय निकाय की तरह कांग्रेस, और भाजपा के कई नेता अपने नाते रिश्तेदारों को पंचायत चुनाव में उतारने की तैयारी कर रहे हैं। भाजपा ने यह तय किया है कि सांसद, और विधायकों के नाते रिश्तेदारों को प्रत्याशी बनाने से पहले प्रदेश की समिति से औपचारिक अनुमति लेनी होगी। इसकी वजह से कई दिग्गज नेताओं के प्रत्याशी बनने का मामला अटका पड़ा है।
चर्चा है कि सतनामी समाज के गुरु, और आरंग के विधायक खुशवंत साहेब अपने छोटे भाई को जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ाना चाहते हैं। मगर पार्टी संगठन ने पहले यहां से पूर्व जनपद अध्यक्ष वेदराम मनहरे का नाम तय किया था। वेदराम मनहरे विधानसभा टिकट के दावेदार थे, लेकिन अंतिम समय में उनकी टिकट कट गई, और खुशवंत साहेब प्रत्याशी बन गए। अब मनहरे हर हाल में चुनाव लडऩा चाहते हैं, और खुशवंत साहेब भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में उक्त जिला पंचायत क्षेत्र में प्रत्याशी तय करने का मसला जिले की कमेटी ने प्रदेश पर छोड़ दिया है। देखना है पार्टी इस पर क्या फैसला लेती है।
कांग्रेस का पत्नीवाद
आखिरकार निवर्तमान मेयर एजाज ढेबर अपनी पत्नी अंजुमन ढेबर को प्रत्याशी बनवाने में कामयाब रहे। शहर जिला कांग्रेस कमेटी ने चुपचाप ढेबर की पत्नी के नाम बी-फार्म जारी कर उन्हें अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया है। बताते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के हस्तक्षेप के बाद ही उन्हें टिकट मिली है।
ढेबर खुद भगवती चरण शुक्ल वार्ड से लड़ रहे हैं। जबकि उनकी पत्नी अंजुमन बैजनाथपारा वार्ड से अधिकृत प्रत्याशी हैं। पहले चुनाव समिति की बैठक में यह तय किया गया था कि एक ही परिवार के दो सदस्यों को टिकट नहीं दी जाएगी।
रायपुर नगर निगम के चार वार्डों की टिकट रोक दी गई। इसमें बैजनाथ पारा वार्ड भी है। बाद में पार्टी की गाइडलाइन को दरकिनार कर ढेबर की पत्नी को प्रत्याशी बना दिया गया। यही नहीं, पार्टी ने टिकरापारा वार्ड के निवर्तमान पार्षद समीर अख्तर की टिकट काट दी, जिनके वार्ड से रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस बढ़त मिली थी। अख्तर ने पार्टी छोडक़र आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया है। कुल मिलाकर कांग्रेस की टिकट वितरण में भाई-भतीजावाद देखने को मिला है। इसका क्या असर होता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
अंडा मेन्यू में तो है, थाली में नहीं
अक्टूबर 2023 में छत्तीसगढ़ की पूर्व सरकार और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के बीच हुए एमओयू के तहत सरकारी स्कूलों के मध्यान्ह भोजन में सप्ताह में एक दिन अंडा शामिल किया जाना था। इसके अलावा, प्रत्येक शनिवार को खीर-पूड़ी परोसने की भी योजना थी। कांग्रेस सरकार ने अंडे को मेन्यू में शामिल किया, लेकिन उसका यह कहकर विरोध किया गया कि कई बच्चे शाकाहारी हैं और अंडा नहीं खाना चाहते। विरोध के बाद अंडे के विकल्प के तौर पर सोयाबड़ी को जोड़ा गया। सरकार बदलने के बाद भी अंडा मेन्यू में बना हुआ है, लेकिन यह सवाल कायम है कि क्या बच्चों को यह वास्तव में मिल रहा है?
हाल ही में, महाराष्ट्र की भाजपा गठबंधन सरकार ने अपने स्कूलों में अंडे के लिए धन देना बंद करने की घोषणा की है। यह कदम दक्षिणपंथी समूहों के विरोध के बाद उठाया गया। इसके उलट दक्षिणी राज्यों जैसे कर्नाटक में, जहां भाजपा सरकार नहीं है, बच्चों को अधिक अंडे दिए जा रहे हैं। पिछले साल कर्नाटक सरकार ने सप्ताह में छह दिन अंडा देने की घोषणा की थी।
छत्तीसगढ़ की स्थिति इन दोनों से अलग है। यहां अंडा मेन्यू में तो शामिल है, लेकिन जमीनी हकीकत अलग है। कुछ समय पहले एक टीवी चैनल की रिपोर्ट में दंतेवाड़ा से बलरामपुर तक की कई स्कूलों में स्थिति का खुलासा हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक, स्कूलों में अंडा तो गायब ही है, सोयाबड़ी भी नहीं दी जा रही।
सरकार द्वारा मध्यान्ह भोजन के लिए तय राशि प्राथमिक स्तर पर प्रति छात्र मात्र 5.69 रुपये और माध्यमिक स्तर पर 8.17 रुपये है। इतनी कम राशि में पौष्टिक भोजन देना व्यावहारिक रूप से असंभव है। कुछ जिलों जैसे दंतेवाड़ा में डीएमएफ (जिला खनिज निधि) से प्रति छात्र 1.80 रुपये अतिरिक्त राशि स्वीकृत की गई है, लेकिन यह भी पर्याप्त
नहीं है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने स्कूलों में न्यौता भोज की परंपरा शुरू की है, जिसमें अफसर और नेता विशेष अवसरों पर बच्चों को भोज देते हैं। लेकिन नियमित पौष्टिक भोजन की स्थिति दयनीय है। अंडा और सोयाबड़ी जैसे विकल्प कम राशि के कारण बच्चों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। यह विरोधाभास ध्यान देने योग्य है। मेन्यू में अंडा बना हुआ है, लेकिन थाली से गायब है।
बेहतर प्लान कर निकलें प्रयागराज
मौनी अमावस्या के दिन महाकुंभ में हुई भगदड़ और उससे हुई मौतों के बाद कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं। हवाई टिकट के दाम, जो घटना के पहले 600 प्रतिशत तक बढ़ गए थे, अब घटकर आधे हो गए हैं। हालांकि, यह किराया अभी भी सामान्य दरों से कई गुना अधिक है। टूर ऑपरेटर्स ने भी राहत दी है। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, रायपुर, रायगढ़ और कोरबा जैसे शहरों के वे अब यात्रियों को पहले के मुकाबले सस्ते पैकेज उपलब्ध करा रहे हैं। रेलवे ने मौजूदा स्पेशल ट्रेनों के साथ-साथ अचानक नई स्पेशल ट्रेनों की घोषणा की है, जिनमें सीटें आसानी से उपलब्ध हो रही हैं। अचानक तय हो रही ट्रेनों में जाने की सुविधा तो है, लेकिन लौटने की नहीं। इन परिस्थितियों में प्रयागराज के लिए निकलना कुछ आसान महसूस हो सकता है, मगर आपको वहां से लौटना भी है।
दरअसल, सडक़ मार्ग की स्थिति अब भी चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। हादसे के बाद भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मेला प्रशासन और राज्य सरकार ने कई कदम उठाए हैं, जिनके चलते प्रयागराज जाने वाली कई सडक़ें घंटों जाम हैं। रास्ते में रुके छत्तीसगढ़ के यात्रियों ने अपने परिजनों को बताया है कि उनकी गाडिय़ां 8-10 घंटे तक एक ही जगह पर फंसी हुई हैं। इससे खाने-पीने की दिक्कतें भी खड़ी हो गई हैं। ऐसे में अगर आप प्रयागराज जाने की योजना बना रहे हैं, तो थोड़ी देर ठहरने और स्थिति का पता करने की सलाह है। वैसे भी महाकुंभ का यह मेला 26 फरवरी तक जारी रहेगा।