राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : कांग्रेस-भाजपा भाई-भाई
29-Jan-2025 3:56 PM
 राजपथ-जनपथ : कांग्रेस-भाजपा भाई-भाई

कांग्रेस-भाजपा भाई-भाई 

चर्चा है कि नगरीय निकाय चुनाव में कुछ जगहों पर कांग्रेस, और भाजपा के नेताओं के बीच आपसी समन्वय से प्रत्याशी तय किए गए। बताते हैं कि कांग्रेस के एक मेयर प्रत्याशी ने पहले भाजपा नेताओं से बात की, और फिर चुनाव लडऩे के लिए तैयार हुए। 

दरअसल, मेयर प्रत्याशी का सरकार के एक मंत्री, जो स्थानीय विधायक भी हैं, उनसे बेहतर रिश्ते हैं। मेयर प्रत्याशी ने विधानसभा चुनाव में मंत्री जी की काफी मदद की थी। मेयर प्रत्याशी यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि उनके खिलाफ भाजपा से कोई कमजोर ही चुनाव मैदान में उतरे। 

चर्चा है कि मंत्री जी ने भाजपा प्रत्याशी तय करने में अहम भूमिका निभाई है, जिन्हें अपेक्षाकृत कमजोर माना जा रहा है। सरकार के मंत्री के कांग्रेस प्रत्याशी से अघोषित गठजोड़ की खबर से स्थानीय स्तर पर हलचल मची हुई है, और इसकी शिकायत प्रदेश संगठन के शीर्ष नेताओं तक पहुंचाने की तैयारी चल रही है। 

संकेत साफ है कि नतीजे अनुकूल नहीं आए, तो मंत्री जी को जवाब देने में मुश्किल खड़ी हो सकती है। फिलहाल तो संगठन के नेता भाजपा प्रत्याशी को ताकत देने में जुट गए हैं। देखना है आगे क्या होता है। 

बीवी के साथ-साथ बेटा भी ! 

पंचायत चुनाव के लिए कांग्रेस, और भाजपा ने जिला व जनपद सदस्य के लिए समर्थित उम्मीदवारों की सूची जारी करने जा रही है। भाजपा में सभी जिलों में बैठकों का दौर चल रहा है। यह खबर सामने आई है कि भाजपा के प्रभावशाली नेता अपने परिजनों को चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रहे हंै, और इसके लिए पार्टी के समर्थन के लिए जोड़ तोड़ कर रहे हैं। 

चूंकि पंचायत चुनाव दलीय आधार पर नहीं होता है। इसलिए जिलाध्यक्षों की अगुवाई में एक कमेटी बनी हुई है, और यह कमेटी भाजपा समर्थित प्रत्याशियों की सूची जारी कर रही है। बताते हैं कि सरगुजा सहित कई जिलों में बड़े नेता आपस में भिड़ गए हैं। पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा अपनी पत्नी के साथ-साथ अपने पुत्र लवकेश पैकरा को जिला पंचायत चुनाव लड़ाना चाहते हैं। 

पार्टी के स्थानीय नेता दोनों में से किसी एक को ही प्रत्याशी बनाने पर जोर दे रहे हैं, लेकिन पूर्व गृहमंत्री दोनों के लिए अड़े हुए हैं। चर्चा है कि पूर्व गृहमंत्री की स्थानीय प्रमुख नेताओं से बहस भी हुई है। कुल मिलाकर विवादों के निपटारे के लिए कई जगहों पर अधिकृत प्रत्याशी तय करने का जिम्मा प्रदेश की समिति पर छोड़ दिया गया है। 

अब कहां दफनाएंगे शव?

बस्तर के मेडिकल कॉलेज डिमरापाल में 20 दिनों तक रखे गए पास्टर सुभाष बघेल के शव को अंतत: उनके गांव से 30 किलोमीटर दूर करकापाल स्थित मसीही कब्रिस्तान में दफनाया गया। यह मामला केवल एक शव दफनाने का नहीं, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता, सामाजिक स्वीकृति और कानूनी व्यवस्था के बीच उत्पन्न जटिलताओं का प्रतीक बन गया है।

सुभाष बघेल ईसाई धर्म में परिवर्तित हो चुके थे। उनकी मृत्यु उनके गांव छिंदवाड़ा में हुई। उनके परिवार ने उनकी इच्छा के अनुसार गांव में ही शव दफनाने की कोशिश की, लेकिन गांव के आदिवासी समुदाय ने इसका विरोध किया। परिवार ने तब अपनी निजी जमीन पर दफनाने का प्रस्ताव रखा, लेकिन गांव वालों ने इसका भी विरोध जारी रखा। मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जहां राज्य सरकार ने कानून-व्यवस्था के संकट का हवाला देते हुए परिवार की इच्छा को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट के फैसले से असंतुष्ट परिवार सुप्रीम कोर्ट गया, लेकिन वहां भी दो जजों की बेंच ने अलग-अलग फैसले सुनाए। जस्टिस बी. नागरत्ना ने गांव में सम्मानजनक ढंग से दफनाने की मांग को सही ठहराया, जबकि जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने प्रशासन की दलील को मान्यता दी। अंतत: शव को करकापाल के मसीही कब्रिस्तान में दफनाया गया।

यह मामला बस्तर और छत्तीसगढ़ के अन्य हिस्सों में ईसाई धर्म अपनाने वालों और अन्य समुदायों के बीच बार बार उत्पन्न हो रहे टकराव का है। अक्सर, इन समुदायों को अपने ही गांव में शव दफनाने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। कई मामले हाईकोर्ट तक पहुंच चुके हैं, लेकिन सुभाष बघेल का मामला शायद पहला है जो सुप्रीम कोर्ट तक गया।

बघेल के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन हुआ, लेकिन इस फैसले ने यह स्पष्ट नहीं किया कि ऐसी स्थिति में परिजनों की इच्छा का सम्मान होगा या विरोध करने वालों का दबदबा बना रहेगा। क्या भविष्य में ईसाई धर्म अपनाने वाले लोगों को अपने गांव या निजी जमीन पर शव दफनाने की अनुमति मिल पाएगी? क्या सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का हवाला देकर विरोध करने वाले अब प्रशासन पर आसानी से दबाव डालेंगे? क्या धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक स्वीकृति के बीच संतुलन बनाने के लिए कोई स्थायी समाधान हो सकता है?

उत्सव में लूटपाट

प्रयागराज में मौनी अमावस्या के अवसर पर हुई भगदड़ और उसके बाद मौतों की घटनाओं के बीच कई अलग जानकारियां सामने आई हैं। 28 जनवरी को स्नान के लिए 10 से 12 करोड़ लोग प्रयागराज पहुंचे, जो कई देशों की कुल आबादी से भी अधिक है। इस अवसर का फायदा एयरलाइंस कंपनियां जमकर उठा रही हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से प्रयागराज आने वाली फ्लाइट्स के किराए में भारी वृद्धि हुई है। डीजीसीए ने जब किराया नियंत्रित करने का निर्देश दिया, तब भी इसका कोई असर नजर नहीं आया। 28 जनवरी को फ्लाइट के किराए में 600 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो गई।

दिल्ली से प्रयागराज का किराया 32 हजार रुपये और मुंबई से प्रयागराज का 60 हजार रुपये तक पहुंच गया। हैरानी की बात यह है कि इसी दिन दिल्ली से लंदन की इकॉनमी क्लास फ्लाइट का किराया केवल 25 हजार रुपये था। सोशल मीडिया पर लोग इस मुद्दे पर नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या धार्मिक आयोजनों के नाम पर जनता से इस तरह मनमाना शुल्क वसूलना जायज है? क्या किराए में यह वृद्धि मुनाफाखोरी नहीं है?

([email protected])

अन्य पोस्ट

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news