टिकट के बाद बग़ावत का दौर
नगरीय निकाय चुनाव की टिकट जारी करने में कांग्रेस, और भाजपा ने सतर्कता बरती है। दरअसल, छोटे चुनाव में टिकट कटने, या फिर मनमाफिक प्रत्याशी नहीं होने पर कार्यकर्ताओं का गुस्सा फट पड़ता है और वो पार्टी दफ्तर में धरना-प्रदर्शन से परहेज नहीं करते हैं। यही वजह है कि भाजपा ने मेयर, और रायपुर नगर निगम प्रत्याशियों की सूची गणतंत्र दिवस समारोह निपटने के बाद जारी की। कांग्रेस में तो टिकट की अधिकृत घोषणा के पहले ही राजीव भवन में नारेबाजी होती रही।
आधी रात तक मेयर-अध्यक्षों की टिकट को लेकर प्रदेश कांग्रेस प्रभारी सचिन पायलट माथापच्ची करते रहे, और फिर सोमवार की अलसुबह मेयर, पालिकाओं और नगर पंचायतों के अध्यक्षों की सूची जारी की गई। इस दौरान कार्यकर्ताओं का मजमा लगा रहा। चूंकि नामांकन दाखिले की आखिरी तिथि 28 तारीख है इसलिए कांग्रेस नेताओं पर जल्द से जल्द प्रत्याशी घोषित करने के लिए दबाव था। अब हाल यह है कि दोनों दलों में बस्तर से सरगुजा तक बगावत देखने को मिल रहा है। नाराज लोगों को मनाने की कोशिशें चल रही है। अब दोनों ही दलों को डैमेज कंट्रोल में कितना सफलता मिलती है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
नामों से पड़े अब फेर-बदल की बारी
कांग्रेस, और भाजपा में प्रत्याशियों की सूची जारी होने से पहले हेरफेर होता रहा। भाजपा में रायपुर नगर निगम के कई पार्षद प्रत्याशी नाम तय होने के बाद अंतिम क्षणों में बदल दिए गए। मसलन, रायपुर नगर निगम के पूर्व पार्षद अमर बंसल का नाम पहले तय हो गया था। लेकिन सूची जारी होने से पहले उनकी जगह आनंद अग्रवाल को प्रत्याशी घोषित कर दिया गया।
इसी तरह देवेन्द्र नगर वार्ड से तुषार चोपड़ा का नाम फायनल किया गया था। लेकिन सूची जारी होने से पहले उनका नाम काटकर कृतिका जैन को प्रत्याशी बनाया गया। तुषार के खिलाफ कई शिकायतें थी और विरोधियों ने प्रमुख नेताओं को इसकी जानकारी दे दी। इसके बाद उनका पत्ता साफ हो गया। कांग्रेस में तो प्रत्याशियों की सूची में ही चौंकाने वाली गड़बड़ी सामने आई है। रायगढ़ जिले की बरमकेला नगर पंचायत सीट से मनोहर नायक को अध्यक्ष प्रत्याशी घोषित किया गया। जबकि यह सीट महिला आरक्षित सीट है। इस पर भाजपा नेताओं ने चुटकी ली है।
सरकार के मंत्री ओ.पी. चौधरी ने एक्स पर लिखा कि लगता है कोई टाइपिंग एरर है। भूपेश बघेल जी, सचिन पायलट जी ! टायपिंग एरर होगा तो थोड़ा ठीक कर लेवें....। कांग्रेस में तो बी फार्म जारी होने तक बदलाव की गुंजाइश रहती है। खुद भूपेश बघेल इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। भूपेश बघेल जब 1993 में पाटन से पहली बार चुनाव लड़े थे तब पार्टी ने पूर्व मंत्री अनंतराम वर्मा को अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया था। मगर बी फार्म भूपेश बघेल के नाम जारी हो गया। और वो जीतकर पहली बार विधायक बने।