कांग्रेस में महिला प्रपंच
कांग्रेस में निकाय टिकट के लिए माथापच्ची चल रही है। नगर निगमों में तो वार्ड प्रत्याशियों के नाम तक तय नहीं हो पा रहे हैं। इन सबके बीच पार्टी की महिला दावेदारों को झटका लग सकता है, जो पिछले कुछ दिनों से नेता पत्नियों को प्रत्याशी बनाए जाने का विरोध कर रहे थे। महिला कांग्रेस कार्यकर्ताओं की इस मुहिम को राज्यसभा सदस्य फूलोदेवी नेताम, श्रीमती डॉ. किरणमयी नायक का खुला समर्थन रहा है। मगर पार्टी के दिग्गजों ने दो नगर निगम की मेयर टिकट नेता पत्नी को देने का मन बना लिया है।
रायपुर नगर निगम के वार्डों में तो जो कुछ हो रहा है, वो पहले कभी नहीं हुआ। मेयर एजाज ढेबर ने न सिर्फ खुद बल्कि अपनी पत्नी की टिकट भी पक्की करवा ली है। जबकि पत्नी कभी राजनीति में सक्रिय नहीं रही है। और जब ढेबर दंपत्ति की टिकट फाइनल स्टेज में पहुंची है, तो कई सीनियर पार्षद भी अपनी पत्नी को टिकट दिलाने के लिए अड़े हुए हैं। जिन्हें मना करना मुश्किल हो रहा है। प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट की मौजूदगी में रविवार को होने वाली बैठक में औपचारिक रूप से सूची पर मुहर लग सकती है। सूची जारी होते ही कांग्रेस में बवाल मच सकता है।
कांग्रेस के एक बड़े नेता को लेकर राजधानी में चर्चा है कि किस सौदे के तहत वे एक पत्नी को टिकट देने को न सिर्फ तैयार हो गए हैं, बल्कि अड़ गए हैं।
टिकट और राइस मिल
भाजपा में टिकट को लेकर जंग चल रही है। रायपुर नगर निगम के वार्ड प्रत्याशियों की सूची काफी हद तक सांसद बृजमोहन अग्रवाल के हिसाब से तय हुई है। यद्यपि चारों विधायक राजेश मूणत, सुनील सोनी, पुरंदर मिश्रा, और मोतीलाल साहू अपने करीबियों का नाम तय करवाने में सफल रहे हैं। रायपुर नगर निगम के साथ-साथ संभाग की पालिकाओं, और नगर पंचायतों के अध्यक्ष व वार्ड प्रत्याशियों के नाम भी तय किए गए।
सुनते हैं कि टिकट वितरण में एक निकाय के मौजूदा अध्यक्ष का पत्ता साफ हो गया है। निकाय अध्यक्ष टिकट के मजबूत दावेदार थे। निकाय अध्यक्ष की टिकट कटने के पीछे राइस मिलर्स की हड़ताल से जोडक़र देखा जा रहा है। निकाय अध्यक्ष ने पिछले दिनों राइस मिलर्स के आंदोलन की अगुवाई की थी, और फिर इसके चलते धान खरीदी व्यवस्था बुरी तरह लडखड़़ा गई। सरकार ने निकाय अध्यक्ष की मिल को सील भी कर दिया था। बाद में सबकुछ ठीक भी हो गया था, लेकिन टिकट की बारी आई, तो उनके नाम पर विचार भी नहीं हुआ। कहा जा रहा है कि कुछ लोगों के बहकावे में आकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलना भारी पड़ गया।
निजी विश्वविद्यालयों के विदेशी छात्र
छत्तीसगढ़ के शुरूआती दौर के पहले ही तीन वर्ष में ही 136 से अधिक निजी विश्वविद्यालय खुल गए थे। यानी उस वक्त जितने तहसील विकासखंड थे हरेक में एक विवि खुले। इरादा बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं बल्कि 40-40 एकड़ तक जमीन पर कब्जा करना था। बाद में सुप्रीम कोर्ट, यूजीसी की फटकार के बाद इन पर लगाम लगी और आज हालत यह है कि केवल 17 निजी विश्वविद्यालय रह गए हैं। उस दौर के इक्का दुक्का ही रह गए हैं। बाकी एक दशक भर में खोले गए। उच्च शिक्षा विभाग के वार्षिक प्रतिवेदन के मुताबिक इन सभी विश्वविद्यालयों में कुल छात्र संख्या 35000 हजार है। इनमें देश और विदेश,दोनों के छात्र हैं। इनमें भी रायपुर, बिलासपुर के दो विवि में विदेशी छात्रों की संख्या अधिक है। उनमें भी अफ्रीकी देशों के। एक विवि में तो 27 देशों के तीन हजार विद्यार्थी हैं।
इन दोनों विवि की देखा-देखी राजधानी के एक और निजी विश्वविद्यालय भी विदेशी छात्रों के लिए दरवाजे खोले हैं। जहां तक इनमें शिक्षा के स्तर को लेकर परस्पर दावे हो सकते हैं। हाल की एक बैठक में कुलाधिपति ने इन विश्वविद्यालयों से दी गई पीएचडीज की मांगी गई विस्तृत जानकारी से शिक्षा के स्तर को समझा जा सकता है। ऐसे में वहीं डिग्री डिप्लोमा की गुणवत्ता की बात न करे तो बेहतर। स्थिति यह भी है कि मंत्रालय में पदोन्नति के लिए स्नातक,स्नातकोत्तर की आवश्यकता भी ये विवि चुटकी में पूरी कर देते हैं। सब का एक ही ध्येय फीस वसूली ।
निजी विवि और चिंतित अभिभावक
डिग्री बांट कर प्रतिभावान छात्र-छात्राओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ तो कर ही रहे थे । अब इन विवि के हॉस्टल विदेशी छात्रों की शरणस्थली बन कर नारकोटिक्स, और साइबर क्राईम के अड्डे बन गये हैं । और तो और मुझे शक यह भी है कि ये विदेशी छात्र अपने देशों के महंगे और तेज नशे वाले ड्रग्स के पैडलर हो गए हैं। जो प्रदेश के युवाओं को नशे की लत में ढकेल रहे हैं।
इस ओर आगाह करते हुए एक अभिभावक ने फेस बुक पोस्ट कर छत्तीसगढ़ पुलिस से आग्रह किया है कि इन अफ्रीकी देशों के जो छात्र निजी विश्वविद्यालय में छात्र वीजा पर पढ़ाई के नाम पर यहां रह रहे हैं,उनका पुलिस वेरिफिकेशन किया जाए। नाइजीरिया जो फ्रॉड व ड्रग्स के धंधे में कुख्यात है,वहां के लोग यहां के विश्वविद्यालय में छात्र के रूप में कहीं फ्रॉड व ड्रग्स का धंधा तो नहीं कर रहे हैं। बीते एक वर्ष में एमडीएमए ड्रग और अब साइबर ठगी के मामलों में नाइजीरिया मूल के ही छात्र पकड़े गए हैं।
गर्माहट से आई मुस्कान
यह कोरबा जिले के एक पहाड़ी कोरवा बाहुल्य गांव कदमझेरिया के सरकारी प्राथमिक शाला की तस्वीर है। पहाड़ों से घिरे इस इलाके में ठंड का प्रकोप कुछ अधिक ही होता है।
इन बच्चों के पास गर्म कपड़े नहीं होते। स्कूल के शिक्षकों ने इनके लिए बोरी भर गर्म कपड़ों की व्यवस्था की। बच्चों ने अपनी-अपनी नाप से उन कपड़ों को पसंद किया और पहन लिया। शिक्षकों ने तय किया है कि वे हर माह अपने वेतन का एक प्रतिशत जमा करेंगे और बच्चों के लिए स्लेट, पेंसिल, कपड़े, जूते की उनकी जरूरत के अनुसार व्यवस्था करते रहेंगे।
चुनाव और मजदूरों का जाना एक साथ
खरीफ फसल कटने के बाद मजदूर दूसरे राज्यों में काम करने के लिए निकल जाते हैं। छत्तीसगढ़ से हजारों मजदूरों का काम की तलाश में बाहर जाना होता है। इनमें से ज्यादातर अनुसूचित जाति और जनजाति परिवारों के होते हैं। जांजगीर-चांपा, सारंगढ़-बिलाईगढ़ आदि जिलों से बाहर जाने वाले अधिकतर लोग अनुसूचित जाति परिवारों के होते हैं। ये यूपी और उत्तरभारत के अन्य राज्यों में ईंट भ_ों में या फिर बिल्डिंग कंस्ट्र्क्शन के काम में लगे होते हैं। खबर आ रही है कि बस्तर से रोजाना दो ढाई सौ लोग तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु कूच कर रहे हैं। अंतर्राज्जीय बसें खचाखच भरी चल रही हैं। ये मजदूर अकेले नहीं बल्कि अपने परिवार के वयस्क मतदाताओं और बच्चों के साथ जा रहे हैं। इसका असर निश्चित रूप से प्रदेश में होने जा रहे स्थानीय चुनावों में, विशेषकर पंचायतों के चुनाव में दिखाई देगा। प्रशासन की ओर से इनको रोकने के लिए कोई चिंता जताई नहीं जा रही है।