राजपथ - जनपथ
दक्षिण किस दिशा जाएगा?
रायपुर दक्षिण विधानसभा में आम चुनाव की तुलना में 10 फीसदी कम मतदान से भाजपा, और कांग्रेस के रणनीतिकार भी हैरान हैं। यद्यपि दोनों ही दलों के नेता, अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। इससे परे खुफिया सूत्रों का अंदाजा है कि दक्षिण के चुनाव नतीजे चौंकाने वाले आ सकते हैं।
रायपुर दक्षिण में वर्ष-2023 के विधानसभा आम चुनाव में 61.78 फीसदी मतदान हुआ था। जबकि लोकसभा चुनाव में रायपुर दक्षिण में 61.42 फीसदी मत पड़े थे। मगर उपचुनाव में 50.50 फीसदी मतदान हुआ। वह भी तब, जब दोनों ही दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। भाजपा सरकार के तमाम मंत्री, गली-मोहल्लों में प्रचार के लिए उतरे थे। कांग्रेस के सभी प्रमुख नेता और विधायक भी अंतिम दिनों तक प्रचार में डटे रहे। बावजूद इसके मतदान में 10 फीसदी की कमी आई है।
भाजपा प्रत्याशी, पूर्व सांसद सुनील सोनी के निवास स्थान शैलेन्द्र नगर के मतदान केन्द्र में 40 फीसदी के आसपास मतदान हुआ। यही हाल, कांग्रेस प्रत्याशी आकाश शर्मा के मतदान केन्द्र में भी रहा। आकाश के निवास सुंदरनगर के मतदान केन्द्र में करीब 52 फीसदी मतदान हुआ है। यानी दोनों ही प्रत्याशी अपने क्षेत्र से अच्छा मतदान करा पाने में विफल रहे हैं। आम चुनाव में भाजपा प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल ने करीब 67 हजार वोटों से जीत हासिल की थी। मगर इस बार हार-जीत का अंतर कम रहने का अनुमान लगाया जा रहा है।
जमीनी अफसरों का हाल-बेहाल
खबर है कि बलौदाबाजार, कवर्धा और सूरजपुर की घटना के बाद शीर्ष स्तर पर मैदानी इलाकों में पुलिस अफसरों की कार्यप्रणाली पर नजर रखी जा रही है। कुछ आईजी को उनके अपने क्षेत्र के जिलों में पदस्थ अफसरों का नाम भेजकर उनके खिलाफ शिकायतों की जानकारी ली जा रही है।
बलौदाबाजार में तत्कालीन एसपी के खिलाफ काफी शिकायतें थी। मगर उनके खिलाफ शिकायतों पर गौर नहीं किया गया। इसके फलस्वरूप वहां बड़ी घटना हो गई। इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब एसपी-कलेक्टर दफ्तर को उपद्रवियों ने फूंक दिया। यह घटना विशुद्ध रूप से पुलिस और प्रशासन की विफलता मानी गई है। कलेक्टर और एसपी को सस्पेंड भी किया गया।
सूरजपुर में भी पुलिस की कार्यप्रणाली को लेकर काफी शिकायतें थी। वहां प्रधान आरक्षक की पत्नी, और पुत्री की नृशंस हत्या के बाद एसपी को हटाया गया। इस मामले में भी एसपी को हटाया गया है। कवर्धा के लोहारीडीह, और अन्य घटनाओं में भी पुलिस की चूक सामने आई है। कुछ अफसरों के खिलाफ लेनदेन की शिकायतें रही हैं। इन सबके चलते शीर्ष स्तर पर पुलिस अफसरों की कार्यप्रणाली पर निगाहें हैं। चर्चा है कि कुछ अफसरों को बदला भी जा सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
आईएएस के लिए जनदर्शन
अब तक हम सबने कुछ प्रधानमंत्री और लगभग हर मुख्यमंत्री के जनदर्शन और मुख्य सचिव, सचिवों से एक फिक्स टाइम में मुलाकात की व्यवस्था देखी और सुनते भी रहे हैं, लेकिन देश में पहली बार केंद्रीय कैबिनेट सेक्रेटरी टीवी सोमनाथन (टीवीएस) ने ओपन हाउस तय किया है। यह विशुद्ध रूप से अभा सेवा अफसरों के लिए होगा। यह ओपन हाउस हर सप्ताह मंगल, गुरु और शुक्रवार को (छुट्टी न होने पर)सुबह रहेगा। इस दौरान केंद्रीय विभागों के साथ दिल्ली दौरे पर आने वाले राज्यों के आईएएस भी देश के अपने सबसे बड़े बॉस से मिल सकेंगे। और अपनी बात रख सकेंगे । इसमें गवर्नमेंट बिजनेस रूल, आईएएस अफसरों के सर्विस कंडीशन्स के साथ साथ कैडर में चल रही खुसुर-फुसुर और हलचल की भी चर्चा कर सकेंगे। बस एक दिक्कत है? समय की। मुलाकात के लिए मात्र 20 मिनट रखे गए हैं, और उसमें भी फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व के आधार पर। अब इसमें कितने जगह पाते हैं, पता नहीं लेकिन नॉर्थ ब्लॉक दिल्ली में लंबी लाइन लगना तय है। यह देश के किसी पहले कैबिनेट सेक्रेटरी ने की है। इसे लेकर उन्होंने बाकायदा पत्र भेजकर सूचित भी किया है। देखना यह है कि कितने लाभ उठाएंगे।
स्टारलिंक का इंतजार और चिंता
भारत में इस समय सबसे सैटेलाइट आधारित इंटरनेट सेवा स्टारलिंक की जबरदस्त चर्चा हो रही है। यह एलन मस्क की कंपनी है, विशेष रूप से ग्रामीण और दूर-दराज के क्षेत्रों में, जहां टावरों और तारों के बिना इंटरनेट सेवा मिल सकेगी। लोग जहां जियो, एयरटेल और आइडिया-वोडाफोन की सेवाओं से अलग-अलग वजहों से नाखुश हैं वहीं पहाड़, नदी, घाटी, जंगल तक में इंटरनेट सेवा देने वाले स्टारलिंक की प्रतीक्षा हो रही है।
मगर दूसरा पहलू भी है। एक संस्था कूटनीति फाउंडेशन की रिपोर्ट में सुरक्षा पहलुओं पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है। उनके अनुसार, बिना तार-टॉवर के सैटेलाइट इंटरनेट सेवाएं विदेशी नियंत्रण में होने के कारण सुरक्षा के दृष्टिकोण से भारत के लिए संभावित खतरा बन सकती हैं। यह तर्क दिया जा रहा है कि यदि स्टारलिंक जैसे विदेशी सैटेलाइट नेटवर्क को भारत में स्वतंत्र रूप से संचालित करने की अनुमति दी जाती है, तो यह देश की डिजिटल संरचना और संप्रभुता पर प्रभाव डाल सकता है। फाउंडेशन ने तो इसे ‘भेड़ की खाल में भेडिय़ा’ करार दिया है। कहा है कि विदेशी कंपनियों द्वारा भारतीय डेटा को नियंत्रण में लेना सुरक्षा जोखिम उत्पन्न कर सकता है।
यकीन करना चाहिए कि हमारी सरकार सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं पर गौर कर कर रही होगी। ग्राहकों को तो इंतजार है कि कब ये सेवा शुरू होगी। हो सकता है जियो, वोडाफोन और एयरटेल भी प्रतिस्पर्धा में अपनी टैरिफ कम करें।