राजपथ - जनपथ
दीपावली के बाद अब मिलन
साय सरकार के मंत्रियों ने भले ही मीडिया से दूरी बना रखी है, लेकिन डिप्टी सीएम अरुण साव का मिजाज थोड़ा अलग है। उन्होंने रोड कांग्रेस का कार्यक्रम निपटने के बाद अपने निवास पर मीडिया कर्मियों को हाई-टी पर आमंत्रित किया, और उनसे विभागीय कामकाज से परे अनौपचारिक चर्चा की।
दस महीने में पहली बार किसी मंत्री के बुलावे पर मीडिया कर्मी काफी खुश थे। मीडिया, और बाकी लोगों को बुलाने का सिलसिला चल रहा है।
अभी बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री आए, तो उनका सीएम के घर जाना कई दिन पहले से तय था। लेकिन उनके रायपुर पहुँचते ही उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने उन्हें अपने घर न्यौता दिया, और रात दस बजे से सुबह दो-तीन बजे तक मुलाकाती उनसे मिलते हुए बने रहे। दो दिन बाद धीरेंद्र शास्त्री का मुख्यमंत्री के घर जाना, हफ्ते भर पहले से तय था, लेकिन भाजपा के अधिकतर नेता, कुछ ख़ास पत्रकार, चुनिंदा अफसर विजय शर्मा के बंगले पर दो तारीख की रात ही अचानक हुए कार्यक्रम में उनसे मिल लिए थे।
उम्मीदवारों की उम्मीदें
रायपुर दक्षिण में कांग्रेस संसाधनों की कमी से जूझ रही है। बावजूद इसके पहली बार चुनाव लड़ रहे युवक कांग्रेस अध्यक्ष आकाश शर्मा अपने युवा साथियों के बूते पर कड़ी टक्कर दिख रहे हैं। इन सबके बीच पार्टी नेता संसाधनों की कमी को पूरा करने के लिए कारोबारियों से मेल मुलाकात कर रहे हैं, जिसकी खूब चर्चा भी हो रही है।
प्रदेश में पार्टी की सरकार नहीं है, स्वाभाविक है कांग्रेस को फंड की कमी तो होगी ही। सुनते हैं कि दो प्रमुख नेता, फंड जुटाने के लिए कुछ कारोबारियों से मिले। इनमें एक निगम के पदाधिकारी भी थे। बातचीत शुरू हुई, और चुनाव खर्च के लिए सहयोग की बात आई।
कारोबारी ने उदारता दिखाते हुए प्रत्याशी तक मदद पहुंचाने का वादा किया। मगर पदाधिकारी ने उन्हें प्रत्याशी के बजाए सीधे पार्टी दफ्तर में ‘मदद’ पहुंचाने के लिए कहा। मदद पार्टी दफ्तर तक पहुंच गई, लेकिन बाद में उसे यह कहकर लौटा दिया गया कि मदद उम्मीद से काफी कम है। अब कारोबारी ने आगे मदद की है या नहीं, यह तो पता नहीं, लेकिन इसकी कारोबारियों के बीच काफी चर्चा हो
रही है।
दूसरी तरफ, भाजपा का भी हाल इससे अलग नहीं है। दिग्गजों के फोन कारोबारी संस्था के प्रमुखों तक पहुंच रहे हैं। यहां तक कहा गया कि चुनाव जीतने के बाद प्रत्याशी मंत्री बन सकते हैं। ऐसे में संस्था के हितों का ध्यान रखा जाएगा। अब इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो पता नहीं लेकिन कई कारोबारी चुनाव के चलते काफी परेशान हैं। और कुछ ने तो सीधे तौर पर हाथ खड़े कर दिए हैं।
नक्सली पीछे हटे पर खौफ नहीं गया
बस्तर में आमतौर पर नए कैंप खोलने पर सुरक्षाबलों का ग्रामीण विरोध करते हैं, लेकिन इस बार उलटा हो रहा है। कांकेर जिले के लोहत्तर थाना क्षेत्र के जाड़ेकूड़से गांव में छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल का कैंप पिछले एक दशक से है। नक्सल गतिविधियों के सिमट जाने के कारण अब पुलिस इस कैंप को किसी दूसरी जगह ले जाना चाहती है। मगर, ग्रामीणों का कहना है कि कैंप की वजह से आसपास के 10-12 गांवों में सुरक्षा का माहौल बना है। स्कूलों में शिक्षक, अस्पतालों में डॉक्टरों की उपस्थिति दिख रही है, विकास कार्यों को बल मिला है। कैंप हटने से नक्सली फिर से सक्रिय होंगे और युवाओं पर जबरन भर्ती का दबाव बनाएंगे, फिर शांति भंग हो सकती है। कैंप के बने रहने की ग्रामीणों की मांग नक्सली खतरे के प्रति उनकी गहरी चिंता को दर्शा रही है। कैंप खुलने से सडक़, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना आसान होता है। आदिवासी भी इसकी जरूरत महसूस करते हैं।
भाजपा सरकार के हालिया कार्यकाल में बस्तर में नक्सलियों पर दबाव बढ़ा है। मुठभेड़ों के दौरान बड़ी संख्या में नक्सलियों की मौत हुई है। लोहत्तर के ग्रामीणों की मांग बताती है कि नक्सलियों के खदेड़े जाने के बावजूद उनका खौफ अब भी बरकरार है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या सुरक्षा कैंप हटाना एक सही कदम होगा या फिर ग्रामीणों का डर दूर होते तक इसे बनाकर रखा जाना।
बैगा चलेंगे, बच्चा होगा...
इस मान्यता पर कितने लोग भरोसा करते हैं? यहां तो दर्जनों महिलाएं लेटी हुई हैं और हजारों की भीड़ है। बच्चा नहीं हुआ तो महिलाओं को ज़मीन में पीठ के बल दण्डवत होना है फिर बैगा आएंगे महिलाओं के पीठ के ऊपर चलते हुए जाएंगे। फिर बच्चा हो जाएगा ! इसके लिए बस एक नारियल और अगरबत्ती चाहिए। अंधश्रद्धा का यह खेल धमतरी के पास गंगरेल में अंगारमोती माता मंदिर में देखा जा सकता है।