राजपथ - जनपथ
ब्राह्मण अचानक केंद्र में
रायपुर दक्षिण में भाजपा को ब्राम्हण वोटरों की नाराजगी का खतरा है। पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल खुद चुनाव लड़ते थे, तो ब्राह्मण समाज के 80 फीसदी वोट उन्हें मिल जाते थे। बृजमोहन के विरोधी ब्राह्मण प्रत्याशियों को अपने समाज का समर्थन नहीं मिल पाता था। मगर इस बार का माहौल बदला-बदला सा है।
इसकी बड़ी वजह यह है कि बृजमोहन अग्रवाल खुद चुनाव मैदान में नहीं है। और आम चुनाव में भारी वोटों से चुनाव जीतने के मंत्री बने, तो बृजमोहन कोई ठोस काम नहीं कर पाए। उनके तीन हजार शिक्षकों के तबादला प्रस्ताव पर कोई फैसला नहीं हुआ। इसके बाद प्रदीप उपाध्याय आत्महत्या प्रकरण पर उनकी चुप्पी से न सिर्फ ब्राम्हण बल्कि अन्य कर्मचारियों में नाराजगी देखी जा रही है।
बताते हैं कि पार्टी संगठन को इसका अंदाजा भी है और इसके बाद डैमेज कंट्रोल के लिए व्यूह रचना तैयार की गई है। महामंत्री (संगठन) पवन साय ने रायपुर दक्षिण, और अन्य इलाकों के ब्राह्मण नेताओं के साथ बैठक की।
बैठक का प्रतिफल यह रहा है कि सरकार ने प्रदीप उपाध्याय आत्महत्या प्रकरण की कमिश्नर से जांच की घोषणा हो गई। यही नहीं, परिवार के एक सदस्य को तुरंत अनुकंपा नियुक्ति सहित कई और कदम उठाए जा रहे हैं।
रायपुर के ब्राह्मण युवाओं के बीच अच्छी पकड़ रखने वाले योगेश तिवारी, नीलू शर्मा, अंजय शुक्ला, मृत्युजंय दुबे सहित अन्य नेताओं को प्रचार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। देखना है कि आगे क्या नतीजा निकलता है।
एक समाज की अहमियत
दक्षिण के दंगल में एक कारोबारी समुदाय की इन दिनों खूब पूछ परख हो रही है। वैसे यह समाज हमेशा से भाजपा का वोट बैंक रहा है। फिर भी इस बार भाजपा को बहुत मेहनत करनी पड़ रही है। क्षेत्र में दूसरा बड़ा वोट बैंक कहे जाने वाले समाज के लिए हर रोज किसी न किसी होटल में दीपावली मिलन का आयोजन हो रहा है। और इसमें यह कहा जा रहा है कि वोट देने जरूर जाए। क्योकिं भाजपा का पुराना अनुभव है कि इनके वोटर पहले दुकान जाते हैं और फिर दोपहर तक बूथ। और वहां लिस्ट में नाम न होने या बूथ बदलने से नाराज होकर लौट जाते हैं।
इस बार ऐसे वोटर की जिम्मेदारी पार्टी के ही सामाजिक नेताओं को दी गई है। इस समाज का कांग्रेस में अनुभव खट्टा ही रहा है । पार्टी ने कभी भी समाज के किसी नेता को बी फार्म नहीं दिया। खेमे में एक पूर्व मुख्यमंत्री कहते रहे हैं कि जितने लोग मुझसे मिलने आए हैं, उतने भी कांग्रेस को वोट नहीं देते । कांग्रेस ने मनभेद-मतभेद भुलाकर एक वर्ष पहले बागी होकर लड़े प्रत्याशी को भी प्रचार में उतार दिया है ।हालांकि बागी बेटे की वजह से पिता पार्टी में लौट नहीं पाए हैं। अब देखना है कि इस बार समाज का वोट स्विंग कैसे रहता है। वैसे समाज दरबार की बात बहुत मानता है।
अब हादसे हुए तो मंत्रीजी को पकड़ें?
इंडियन रोड कांग्रेस के 87वें अधिवेशन में शामिल होने राजधानी रायपुर पहुंचे केंद्रीय सडक़ परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने ऐसी बड़ी घोषणाएं की है, जो पूरी हुईं तो छत्तीसगढ़ की सूरत सचमुच बदली हुई नजर आएगी। उन्होंने 20 हजार करोड़ रुपये की घोषणाएं की हैं और कहा है कि दो साल के भीतर छत्तीसगढ़ की सडक़ें अमेरिका की तरह हो जाएंगी। अपने भाषण में गडकरी ने माना है कि दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं। हर साल 1.50 लाख से ज्यादा सडक़ दुर्घटनाएं होती हैं। वह पिछले साल बढक़र 1.68 लाख पहुंच गई। उन्होंने यह भी कहा कि यदि भविष्य में रोड इंजीनियरिंग के कारण कोई दुर्घटना होती है तो उसे लिए वे खुद को दोषी मानेंगे। मगर, दोषी मान लेने भर से क्या होगा? किसी को सजा मिले तब तो बात बने। गडकरी के बयान से यह बात ध्यान में आती है कि बिलासपुर से पथर्रापाली जाने वाली नेशनल हाईवे पर, सडक़ बन जाने के बाद रतनपुर से पहले सेंदरी गांव के पास तुरकाडीह बाइपास पर रोजाना दुर्घटनाएं होने लगी थी। एक बार तो एक माह के भीतर रिकार्ड 7 मौतें अलग-अलग दुर्घटनाओं में दर्ज की गई। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने प्रदेशभर की सडक़ों की जर्जर हालत पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान इस सडक़ पर भी संज्ञान लिया। न्याय मित्रों ने सडक़ का निरीक्षण तकनीकी जानकारों के साथ किया। यह पाया कि सडक़ के निर्माण में तकनीकी खामी है। डिजाइनिंग में गड़बड़ी होने के कारण बाइक व हल्के वाहन वाले तेज रफ्तार भारी वाहनों की चपेट में आ रहे हैं। बाद में नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने भी इंजीनियरिंग की गड़बड़ी को मान लिया। अब इस रास्ते पर कई बेरिकेट्स और डिवाइडर लगाकर गति को संतुलित किया जा रहा है। अंडरब्रिज बनाने की तैयारी भी है। जब यह हाईवे तैयार हुआ तब भी गडकरी मंत्री थे और ये ही इंजीनियर काम कर रहे थे। इस ब्लैक स्पॉट पर हुई मौतों के लिए कौन जिम्मेदार था। गडकरी की ओर से जिम्मेदारी उठाने के पहले किसकी जिम्मेदारी थी? यह पता नहीं क्योंकि अब तक किसी पर कोई कार्रवाई हुई नहीं है। गडकरी के बयान का सडक़ दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की गंभीरता से शायद ही मतलब निकले।
अशोक स्तंभ के साथ सात फेरे
समय के साथ-साथ सामाजिक परंपराओं में बदलाव आ रहे हैं। पिछले दो तीन वर्षों में छत्तीसगढ़ में हमने देखा कि वैवाहिक समारोह के कार्ड के साथ कई लोगों ने हसदेव अरण्य को बचाने का संदेश दिया था। कुछ ने संविधान की शपथ लेकर शादी की। ऐसा ही पिछले दिनों सूरत में हुआ। एक व्यवसायी परिवार में धूमधाम से एक शादी हुई। मौर्य कुशवाहा समाज के लक्ष्मी और परमानंद मौर्य ने अशोक स्तंभ के फेरे लगाकर विवाह की रस्म पूरी की। वहां मौजूद लोग सम्राट अशोक, भगवान बुद्ध व संविधान का जय-जयकार कर रहे थे। अतिथियों को संविधान की प्रतियां भेंट की गई।