राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : पहले हो चुका है उपचुनाव
08-Nov-2024 4:37 PM
राजपथ-जनपथ : पहले हो चुका है उपचुनाव

पहले हो चुका है उपचुनाव 

रायपुर दक्षिण विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, और भाजपा ने अपनी  ताकत झोंक दी है। यहां 13 तारीख को मतदान होगा। बहुत कम लोगों को मालूम है कि रायपुर की सीट पर पहले भी एक बार उपचुनाव हो चुका है। तब रायपुर शहर और ग्रामीण मिलाकर एक सीट ही हुआ करती थी। 

आजादी के बाद 1952 में सीपी एंड बरार विधानसभा के पहले चुनाव हुए थे। रायपुर विधानसभा क्षेत्र से प्रजा समाजवादी पार्टी की तरफ से ठाकुर प्यारेलाल विजयी हुए थे। उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी हरि सिंह दरबार को पराजित किया था। बाद में भूदान पदयात्रा के दौरान वर्ष-1954 में जबलपुर के निकट ठाकुर प्यारेलाल सिंह का निधन हो गया। परिणाम स्वरूप यह सीट खाली हो गई। 

प्रजा समाजवादी पार्टी ने दिवंगत ठाकुर प्यारेलाल सिंह के पुत्र ठाकुर रामकृष्ण सिंह को प्रत्याशी बनाया। जनवरी 1955 में चुनाव हुए। कांग्रेस की तरफ से पंडित शारदा चरण तिवारी उम्मीदवार बनाए गए। ठाकुर रामकृष्ण सिंह को करीब ढाई हजार से अधिक वोटों से जीत हासिल हुई थी। उस वक्त सवा 28 हजार वोट पड़े थे। 

तब गुढिय़ारी, राजातालाब, रामसागरपारा, ब्राम्हण पारा, बैजनाथ पारा, छोटा पारा, बैरन बाजार, सदर बाजार, तात्यापारा, अमिन पारा, पुरानी बस्ती, गोल बाजार, रेलवे कॉलोनी, टिकरापारा, मौदहापारा रायपुर विधानसभा क्षेत्र का आता था। अब रायपुर चार विधानसभा, उत्तर, दक्षिण, पश्चिम, और ग्रामीण में तब्दील हो चुका है। वर्तमान में अकेले रायपुर दक्षिण में मतदाताओं की संख्या दो लाख 70 हजार पहुंच चुकी है। अब इस उपचुनाव का क्या नतीजा निकलता है, यह तो 20 तारीख को पता चलेगा। 

9.15 के बाद पहुंचे तो हाफ-डे

 

देश भर के अधिकारी कर्मचारियों के लिए ऑफिस पहुंचने की टाइमिंग को लेकर एक नया फरमान जारी हुआ है। अब इन्हें 15 मिनट लेट आने की ही परमिशन होगी। अब असल बात यह है कि यह आदेश मानता कौन है। जो आधे से पौन घंटे देर से आने वालों के लिए तो एडवांटेज मिल जाएगा। सरकार के दिए ये 15 मिनट उस पर अपना टाइम। यानी राष्ट्रपति सचिवालय से लेकर दूर गांव के डाकघरों  के केंद्रीय कर्मचारियों को हर हाल में दफ्तर में सुबह 9.15 बजे तक पहुंचकर अपनी उपस्थिति बायोमेट्रिक सिस्टम में पंच करना अनिवार्य होगी। 

कोरोना काल के बाद से अधिकांश सरकारी कर्मचारी बायोमेट्रिक पंच नहीं कर रहे थे, जिससे उपस्थिति की समस्या उत्पन्न हुई? इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने आदेश जारी किया है कि सभी कर्मचारी अब नियमित रूप से बायोमेट्रिक उपस्थिति सुनिश्चित करें। डीओपीटी के आदेश में यह भी कहा गया है कि अगर कर्मचारी सुबह 9.15 बजे तक दफ्तर नहीं आए, तो उनका हाफ-डे लगा दिया जाएगा। सभी विभाग प्रमुख अपने स्टाफ के दफ्तर में मौजूदगी और समय पर आने-जाने की निगरानी भी करेंगे।

समय की इसी पाबंदी को लेकर छत्तीसगढ़ कैडर की एक अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटना चाहती थीं। प्रतिष्ठित रक्षा मंत्रालय में पदस्थ थीं। फिर तोड़ निकालकर साउथ ब्लॉक से बाहर के  विभाग में पोस्टिंग करा लिया। अब बात महानदी और इंद्रावती भवन से तहसील तक  के लेट कमर्स की करें। वो तो नवा रायपुर के लिए  मुफ्त की स्टाफ बस की सुविधा न मिली होती तो कोई भी 11 बजे के पहले नहीं पहुंचते। वैसे जीएडी चाहे तो पुराना मंत्रालय से 11 बजे निकलने वाली बीआरटीएस बस को चेक कर लें तो 72 सीटर बस ओवरलोड में 150 लेट कमर्स हर रोज मिलेंगे। ऐसे ही लोग बायोमेट्रिक का विरोध करते हैं ।

वहां हंगामा, यहां सब चंगा जी

अस्पताल में फर्श पर तड़पते मरीज की जिस तस्वीर से हमारी सरकार, डॉक्टर और नर्स ने नजर चुरा ली, कोई भी विचलित नहीं हुआ, उसी को गुजरात ने नाक का सवाल बना लिया। हाल ही में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने बिलासपुर के जिला अस्पताल का एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया था। इसमें अस्पताल के बरामदे पर एक घायल मरीज तड़प रहा था, जिसे डॉक्टर, नर्स और दूसरे स्टाफ नजरअंदाज कर आगे बढ़ जा रहे थे। इसी वीडियो पर गुजरात साइबर सेल ने बैज के खिलाफ भ्रामक खबर फैलाने के आरोप में मामला दर्ज किया है ऐसी खबर उड़ गई। यह कहते हुए कि इस वीडियो को गुजरात के अस्पतालों की स्थिति बताकर जनता को भ्रमित किया गया। हालांकि,  यह बाद में साफ हुआ कि इस वीडियो क्लिप का गुजरात की तस्वीर बताते हुए किसी अन्य महिला ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर पोस्ट कर दी है। पुलिस ने उस महिला के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।

छत्तीसगढ़ में साइबर सेल या सरकार के किसी दूसरे महकमे को इस वीडियो ने विचलित नहीं किया। शायद यह मानकर कि, छत्तीसगढ़ है- यहां तो सब ऐसा ही है। मगर, गुजरात में इसी वीडियो क्लिप ने इतनी सनसनी फैला दी कि वहां एक जांच एजेंसी को सक्रिय होना पड़ गया। इसका मतलब क्या है? मतलब यह है कि गुजरात के अस्पतालों की दशा, छत्तीसगढ़ जैसी नहीं है। ऐसी तुलना भी की गई तो यह प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया जाएगा। भले ही दोनों जगह मोदी की गारंटी वाली सरकार क्यों न हो।

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