राजपथ - जनपथ
धान खरीदी में देरी के नुकसान
छत्तीसगढ़ में धान की खरीदी हर साल एक नवंबर से शुरू हो जाती थी, लेकिन इस बार 16 नवंबर से शुरू होगी। सरकार का कहना है कि इस समय तक फसल पूरी तरह तैयार नहीं होती, पर अनेक किसानों के लिए यह देरी उनके लिए एक समस्या बन गई है। जल्दी पकने वाली धान की फसल तैयार हो चुकी है, और किसानों के पास उसे रखने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।
छोटे किसानों के पास खलिहान नहीं होते और वे धान काटते ही उसे बेचने के लिए सोसाइटी में पहुंचाना पसंद करते हैं। बड़े किसानों के ही खलिहान का साझा उपयोग करते हैं, ताकि समय पर अपनी फसल को सुरक्षित कर सकें। इस बार धान खरीदी में देरी होने के कारण इन किसानों को अपनी फसल 10-12 दिन तक अपने पास डंप करके रखने की मजबूरी आ पड़ी है।
हाथी प्रभावित इलाकों के किसानों के लिए यह स्थिति और भी जोखिम भरी है। यदि वे धान को खलिहान में रखेंगे, तो हाथियों के हमले का खतरा बना रहता है, जो उनकी मेहनत को बर्बाद कर सकते हैं। इससे बचने के लिए कई किसान अब अपनी फसल खुले बाजार में बेचने पर मजबूर हैं, जिससे उन्हें समर्थन मूल्य से कम कीमत मिल रही है।
दूसरी ओर, उपार्जन केंद्रों के ऑपरेटरों की हाल ही में समाप्त हुई हड़ताल के कारण किसानों का पंजीयन कार्य पिछड़ गया है। इसके अलावा, अब समितियों के प्रबंधक हड़ताल पर चले गए हैं और राजधानी रायपुर में डेरा जमाए हुए हैं।
कन्फर्म बर्थ का जुगाड़
छठ पूजा आते ही दिल्ली से यूपी-बिहार जाने वाली ट्रेनों का हाल देखिए। रेलवे दावा कर रहा है कि इस बार पिछली बार से दोगुनी स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं, पर भीड़ ऐसी है कि प्लेटफॉर्म और ट्रेन में पैर रखने की जगह भी नहीं। लोग 12-15 घंटे खड़े-खड़े यात्रा कर रहे हैं, मानो रेलवे ने यात्रियों के धैर्य की परीक्षा लेने की ठान ली हो।
मगर कुछ यात्री ऐसे विपरीत हालात में भी धीरज नहीं खोते। इस तस्वीर में दिखाई दे रहा है कि ऊपरी बर्थ के बीच रस्सी बांधकर जुगाड़ से एक और बर्थ बना ली गई है। सीट कन्फर्म नहीं मिली तो क्या, खुद अपनी व्यवस्था कर ली! वैसे भी हमारे देश के लोग किसी भी स्थिति में खुद को एडजस्ट करने की कला में निपुण हैं।
कुछ लोग कह रहे हैं कि रेलवे को इस पर जुर्माना लगाना चाहिए, आखिर बिना अनुमति बर्थ तैयार कर ली गई है। लेकिन जो घर से रस्सी लेकर आए, मेहनत से सीट तैयार की, उनसे उगाही के बारे में सोचना अन्याय होगा। बल्कि, यह क्रिएटिविटी भविष्य की ट्रेनों में काम आ सकती है। हो सकता है, अगली बार शायद रेलवे जुगाड़ बर्थ खुद बनाए और उसके लिए टिकट भी बेचना शुरू कर दे।
आरक्षण और अटकलें
सरकार ने स्थानीय निकाय चुनाव के लिए पिछड़ा वर्ग आरक्षण की नई नीति को मंजूर कर लिया है, और इस सिलसिले में जल्द अधिसूचना जारी होने के संकेत हैं। चुनाव में आरक्षण के मसले पर एक बार फिर प्रदेश की राजनीति गरमा सकती है।
विधानसभा उपचुनाव निपटने के बाद नगरीय निकाय, और पंचायत के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी। राज्य निर्वाचन आयोग ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। ताजा विवाद आरक्षण के मसले पर छिड़ सकता है। विश्वकर्मा आयोग ने एससी-एसटी, और ओबीसी मिलाकर कुल आरक्षण 50 फीसदी तक रखने की सिफारिश की है। पिछड़ा वर्ग का स्थानीय निकायों में पिछले चुनाव में 25 फीसदी आरक्षण रहा है लेकिन नई नीति से नगर-निगमों में पिछड़ा वर्ग का आरक्षण बढ़ सकता है। ऐसे में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीटों में बढ़ोतरी हो सकती है।
यह भी साफ है कि पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित वार्डों की संख्या में बढ़ोतरी होगी। यही नहीं, अनारक्षित वार्डों की संख्या में कमी आ सकती है। सिर्फ अंबिकापुर ही अकेला ऐसा निगम है जहां वार्डों का आरक्षण यथावत रहेगा।
इधर, निगम चुनाव लडऩे के कई इच्छुक नेता पहले परिसीमन को लेकर नाखुश थे और हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। करीब 50 याचिकाएं दायर की गई थी। ये अलग बात है कि कोर्ट ने याचिकाएं खारिज कर दी। अब आरक्षण से प्रभावित कई नेता कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं। फिलहाल अधिसूचना का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है।