कौन आईपीएस कहां?
छत्तीसगढ़ कैडर के एक और आईपीएस अफसर अभिषेक शांडिल्य केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से लौट रहे हैं। आईपीएस के वर्ष-07 बैच के अफसर अभिषेक शांडिल्य सीबीआई में रहे हैं, और प्रतिनियुक्ति की अवधि खत्म होने के बाद उन्हें रिलीव भी कर दिया गया है।
शांडिल्य संभवत: नवम्बर में जाइनिंग दे देंगे। इस बैच के अफसर अभी डीआईजी हैं, जो कि जनवरी में आईजी के पद पर प्रमोट हो जाएंगे। इसी बैच के अफसर रामगोपाल गर्ग भी सीबीआई में रहे हैं। वे करीब 7 साल सीबीआई में थे। वर्ष-2007 बैच के अफसरों में दीपक झा, और बालाजी राव भी हैं। गर्ग, और दीपक झा अभी आईजी के प्रभार में हैं। दूसरी तरफ, बस्तर आईजी सुंदरराज पी का केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाना टलता दिख रहा है। सुंदरराज एनआईए में जाने वाले थे। मगर केन्द्र सरकार उन्हें बस्तर से फिलहाल हटाने के इच्छुक नहीं दिख रहा है। केन्द्र सरकार ने वर्ष-2027 तक नक्सलियों के खात्मे के लिए टारगेट फिक्स किया हुआ है। इसमें बस्तर आईजी के रूप में सुंदरराज प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।
सुंदरराज की बस्तर में पोस्टिंग के बाद से राज्य पुलिस का केन्द्रीय बलों से तालमेल बेहतर हुआ है। केंद्र और राज्य के बेहतर तालमेल से नक्सल मोर्चे पर बड़ी सफलता मिली है। इन सबको देखते हुए सुंदरराज को फिलहाल बस्तर में ही रखने पर सहमति बन रही है। फिर भी आईजी स्तर के अफसरों के प्रभार बदले जा सकते हैं।
बकाया लेन-देन
जैसे जैसे निकाय पंचायत चुनाव का समय नजदीक आ रहा है, एक नेताजी की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। कारण और कुछ नहीं पार्टी फंड की एक बड़ी रकम जो लौटाना है। बड़े ओहदेदार नेताजी से पार्टी नेतृत्व तगादा भी करने लगा है। एक नहीं कई बार-नेताजी जब, जहां मिल जाए। हर बार नेताजी यह कहते बच निकलते हैं, दे दूंगा भाई साहब। फंड सुरक्षित रखा हूं। कुछ हजार, लाख दो लाख होते तो पार्टी नेतृत्व भूल जाता माफ कर देता। लेकिन रकम इससे कहीं अधिक है। एक बड़े निगम से अनुबंधित कंपनियों से मिली इतनी बड़ी रकम से संगठन ने निकाय पंचायत चुनाव की नैया पार लगाने की तैयारी कर रखी है। अब देखना है कि नेताजी से पार्टी फंड वापस लेने में संगठन सफल होता है या नहीं। वैसे नेताजी पर नाइन फिगर में ही एक और लेनदारी की चर्चा आम है। हालांकि वो पुराने बिल पास कराने के लिए व्यक्तिगत रूप से दिए गए थे।
मिठास के इंतजार में गन्ना किसान
छत्तीसगढ़ के शक्कर कारखानों में गन्ना बेचने वाले किसानों का भुगतान कारखाना प्रबंधन द्वारा किया जाता है, जबकि बोनस का भुगतान सरकार की ओर से होता है। हाल ही में हुई मंत्रिपरिषद की बैठक में किसानों को 62 रुपये प्रति क्विंटल बोनस देने का निर्णय लिया गया, जिसके लिए 60 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया है।
इधर, कुछ शक्कर कारखानों से खबरें हैं कि कई किसानों के खातों में अभी तक यह राशि नहीं पहुंच पाई है। बैठक में यह भी कहा गया था कि गन्ना किसानों को उनके उत्पाद का 100 प्रतिशत भुगतान पहले ही किया जा चुका है। किसानों को आशा थी कि दीपावली से पहले बोनस भी मिल जाएगा, जिससे वे दोहरी खुशी के साथ त्योहार मना सकें। लेकिन मंत्रिमंडल का बोनस देने का फैसला भी देरी से आया है। अगस्त में हुई बैठक में कृषि पर चर्चा के दौरान निर्णय हुआ था कि गन्ना उत्पादक किसानों को 50-50 किलो शक्कर रियायती दर पर उपलब्ध कराई जाएगी, लेकिन बोनस पर उस समय कोई चर्चा नहीं की गई थी।
यह बोनस वितरण कृषि विभाग के माध्यम से किया जाना है, और हो सकता है कि प्रक्रियाओं में समय लग रहा हो। सरकार की मंशा है कि किसान धान की खेती का रकबा घटाकर अन्य फसलों की ओर बढ़ें। परंतु जिस तरह गन्ना बोनस में देरी हो रही है, उससे लगता है कि कृषि विभाग इस समय 14 नवंबर से शुरू हो रही धान खरीदी की तैयारियों में अधिक रुचि ले रहा है।
कितना लूटोगे सरकार को?
एक समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर देशभर में सक्षम लोगों ने घरेलू गैस सिलेंडर पर मिलने वाली सब्सिडी का त्याग कर दिया था। इस मुहिम में कई राजनेताओं और समाज के प्रतिष्ठित लोगों ने भागीदारी की, जिससे उनकी समाज में इज्जत और बढ़ी। उस समय आम जनता के लिए त्याग करना मुश्किल था, क्योंकि उस वक्त सब्सिडी का लाभ लगभग 200 रुपये तक होता था।
इधर, वक्त के साथ गैस सिलेंडर की कीमतें लगभग तीन गुना बढ़ गईं और सब्सिडी का लाभ घटते हुए केवल दहाई तक आ पहुंचा। सोशल मीडिया पर साझा की गई जानकारी से यह सामने आया कि कुछ लोगों को सब्सिडी में अब मात्र 4-5 रुपये ही मिल रहे हैं। अगर आप आशावादी हैं, तो मान सकते हैं कि एक दिन सब्सिडी की राशि पुराने स्तर पर वापस आ सकती है। अन्यथा, आप चाहें तो गैस कंपनी के पोर्टल या कस्टमर केयर पर एक फोन करके अपनी भी सब्सिडी का त्याग भी कर सकते हैं। ([email protected])