राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : बन पाएंगे सक्रिय सदस्य ?
25-Oct-2024 2:37 PM
राजपथ-जनपथ : बन पाएंगे सक्रिय सदस्य ?

बन पाएंगे सक्रिय सदस्य ?

भाजपा का संगठन महापर्व सदस्यता अभियान का पहला और अहम चरण पूरा हो गया है। इसमें 50 लाख से अधिक पुराने सदस्यों का नवीनीकरण और नए सदस्य बनाने का दावा है। दूसरा चरण भी शुरू हो गया है, इसमें एक लाख सक्रिय सदस्य बनाए जाने हैं। संगठन के 404 मंडलों में से हरेक में 200 सक्रिय सदस्य बनेंगे। उसके बाद बूथ समितियों, मंडल, जिला समिति और फिर प्रदेश समिति सदस्य और अंत में प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होगा। सक्रिय सदस्य बड़े कांट-छांट के बनाए जाते हैं।

सबसे अहम यह कि सदस्य कितने वर्षों से भाजपा का प्राथमिक सदस्य है। उसकी सक्रियता कितनी रही है। चुनाव के दौरान का आया- राम, गया-राम तो नहीं। यदि है तो वह वेटिंग में रहेगा। विधानसभा चुनाव के पहले से अब तक प्रवेश करने वाले कांग्रेस से आए नेताओं को अभी इंतजार करना होगा। क्योंकि इनकी रेफरल आईडी से कितने नए सदस्य बने होंगे यह भी संदिग्ध हैं।

इनमें राज्यसभा,लोकसभा के पूर्व सांसद, नेता प्रतिपक्ष, एमपी- सीजी में प्रदेश अध्यक्ष, कोर ग्रुप के सदस्य के रूप में जनसंघ, और बाद में स्थापना काल से भाजपा में रहे नंदकुमार साय भी शामिल हैं। वर्ष 22 में भाजपा छोड़ भूपेश बघेल का हाथ थामने वाले साय ने विधानसभा बाद कांग्रेस छोड़ा और पिछले दिनो भाजपा की प्राथमिक सदस्यता का फार्म भरा। उसके बाद उन्हें सक्रिय सदस्य बनाने को लेकर जशपुर जिला संगठन सहमत नहीं है। इसमें सबसे बड़ा रोड़ा, उनके संगठन और सरकार विरोधी बयान बाजी को बताया जा रहा है। चाहे वह रमन सिंह हो या कांग्रेस छोडऩे से पहले बघेल सरकार, वे बयान देते रहे। और अब सक्रिय सदस्य बनने के बाद कुछ दिन महीने शांत रहने के बाद मुंह खोलने लग जाएंगे। जशपुर से लेकर राजधानी तक के संगठन नेता उन्हें नहीं चाहते। सीएम और महामंत्री संगठन दोनों ही जशपुर से ही आते हैं। वे दोनों नंदकुमार साय से ज्यादा जानते हैं। अब देखना है कि नंदकुमार साय सक्रिय सदस्य बनते हैं, या नहीं।

देवतुल्य कार्यकर्ता और बेरुखी 

भाजपा ने देश भर में अपने कार्यकर्ताओं को देवतुल्य उपनाम दिया है। संगठन की बैठकों में उनके सुख दुख में सहभागी बनने विधायक, मंत्रियों को विशेष निर्देश दिए जाते हैं। इसके लिए सहयोग (सहायता) केंद्र  की भी व्यवस्था की गई है। जहां सरकार के मंत्रियों को बैठकर कार्यकर्ताओं की मांग-समस्या सुनकर दूर करने की जिम्मेदारी दी गई। इसके गवाह के रूप में संगठन ने उपाध्यक्ष,मंत्री आदि भी बिठाए जाते हैं। इस केंद्र में कार्यकर्ता के दो ही मुद्दे बहुतायत में आते हैं। एक, मोहल्ले-वार्ड में सडक़ कांक्रीटीकरण और एक-दो तबादले के आवेदन। मगर कार्यकर्ताओं के ये दोनों काम नहीं हो रहे। कांक्रीटीकरण के प्रस्ताव संबंधित निगम आयुक्तों, सीएमओ महापौरों को भेज दिए जाते हैं।और ट्रांसफर एप्लीकेशन पर मंत्रियों का सीधा जवाब रहता है कि अभी रोक लगी हुई, हटने पर कर देंगे। यह कहकर पीए को आवेदन थमा देते हैं। और अगले ही दो-तीन दिनों में मंत्री के विभाग से तबादला आदेश निकलते हैं लेकिन देवतुल्य कार्यकर्ता का दिया नाम नहीं होता।

यही देवता जब बंगले या फिर साप्ताहिक केंद्र में मंत्री के सामने प्रकट होता है तो समन्वय समिति में होने के जवाब दे कन्नी काट लिया जाता है। यह पुराने ही नहीं नए नवेले मंत्रियों का भी हाल है। ऐसी बेरुखी से कार्यकर्ता भरे पड़े हैं, न जाने किस दिन फट पड़े। आने वाले दिनों में बड़े चुनाव भी है। जो इन मंत्रियों की जमीनी पकड़ का आईना होंगे। कार्यकर्ता आइना लेकर खड़े हैं।

इस बार बदली हुई तस्वीर 

दीवाली के बीच रायपुर दक्षिण के चुनाव से भाजपा और कांग्रेस में कार्यकर्ताओं में उत्साह का माहौल है। हालांकि भाजपा नेता थोड़े ज्यादा उत्साहित थे क्योंकि उन्हें बृजमोहन अग्रवाल के चुनाव प्रबंधन के तौर तरीके मालूम है। बृजमोहन अपने कार्यकर्ताओं की हर जरूरतों को पूरा करते रहे हैं। वो अपने विरोधी दल के नेताओं का भी ख्याल रखते आए हैं। लेकिन इस बार संशय की स्थिति बन गई है। वजह यह है कि पार्टी संगठन के एक प्रमुख नेता ने भरी बैठक में हिदायत दे रखी है कि इधर-उधर से पैसे नहीं आएंगे। जितना जरूरी होगा, उतना ही खर्च करें। दूसरी तरफ, कांग्रेस में प्रत्याशी ने बैठक में कह दिया कि कार्यकर्ताओं की किसी चीज की कमी नहीं रहेगी। इससे  कांग्रेस कार्यकर्ताओं में खुशी का माहौल है। त्यौहार नजदीक है, ऐसे में देखना है कि दोनों दलों के नेता अपने कार्यकर्ताओं की इच्छाओं को पूरा कर पाते हैं या नहीं।

उप चुनाव क्यों हो, कब हो?

यदि रायपुर दक्षिण सीट से भाजपा प्रत्याशी सुनील सोनी चुनाव जीतते हैं तो वे एक विधानसभा क्षेत्र के प्रतिनिधि बन जाएंगे। पिछले चुनाव में इस सीट पर बृजमोहन अग्रवाल ने रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की थी और केबिनेट मंत्री भी बने। लेकिन, उन्हें विधानसभा से हटाकर लोकसभा चुनाव में भेजा गया, जहां नियमों के अनुसार 15 दिन में इस्तीफा देना पड़ा, जिससे उपचुनाव की स्थिति बनी। यह निर्णय भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा लिया गया। क्या विधायक और मंत्री के रूप में बृजमोहन अग्रवाल का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं था? मगर लोकसभा भेजकर उनकी काबिलियत पर तो पार्टी ने मुहर लगाई है? क्या उन्हें विधानसभा से हटाकर लोकसभा भेजना दक्षिण रायपुर के जनादेश का अनादर नहीं है? सुनील सोनी को उपचुनाव में उम्मीदवार बनाना यह दर्शाता है कि भाजपा ने उनकी जनप्रतिनिधि के रूप में क्षमता को स्वीकार किया है। फिर टिकट काटने की नौबत क्यों आई?

विधानसभा चुनाव 2023 में भाजपा ने अरुण साव, गोमती साय और रेणुका सिंह को सांसद रहते हुए विधानसभा टिकट दी, पर वहां उपचुनाव की जरूरत नहीं पड़ी। इसके विपरीत, 2019 में कांग्रेस ने दीपक बैज को विधानसभा टिकट दी, तो उनकी विधानसभा सीट पर उपचुनाव कराना पड़ा था। यह प्रवृत्ति राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती जा रही है। उत्तर प्रदेश की 9 सीटों पर उपचुनावों का कारण भी यही है, जहां कई विधायकों को सांसद की टिकट दी गई। समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव भी विधायकी छोडक़र संसद पहुंचे हैं। राहुल गांधी ने भी दो सीटों से चुनाव लड़ा। उन्होंने वाराणसी सीट बरकरार रखी, वायनाड में उप चुनाव हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 2014 में वाराणसी और वडोदरा से चुनाव लड़ा और बाद में वडोदरा से इस्तीफा दिया, जिससे उपचुनाव कराना पड़ा।

दो सीटों पर चुनाव लडक़र एक सीट छोड़ देना या एक सदन से दूसरे सदन में जाने के लिए इस्तीफा देना, यह प्रवृत्ति राजनीतिक दलों के लिए फायदेमंद हो सकती है, लेकिन आम जनता के लिए यह समझ पाना कठिन है कि इसमें उनका क्या लाभ है। 1996 से पहले एक व्यक्ति कई सीटों से चुनाव लड़ सकता था, लेकिन अब अधिकतम दो सीटों पर ही चुनाव की अनुमति है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33(7) को सुप्रीम कोर्ट में भाजपा से ही जुड़े अश्विनी उपाध्याय ने चुनौती दी थी, जिसमें दो जगहों से चुनाव लडऩे का प्रावधान है। चुनाव आयोग ने भी ‘एक व्यक्ति, एक सीट’ की नीति का समर्थन किया, पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस कानून में बदलाव संसद द्वारा होना चाहिए।

दूसरे सदन में जाने के लिए एक सदन से इस्तीफा देना और उपचुनाव की आवश्यकता उत्पन्न करना एक ऐसी स्थिति है जिस पर अभी तक कोई चुनौती नहीं आई है। क्या खर्च उन्हें उठाना चाहिए, जिनकी वजह से उपचुनाव की नौबत आ जाती है? चुनाव खर्च को नियंत्रित करने और वन नेशन वन इलेक्शन की बात करने वाले लोग इस तरह के उपचुनाव से होने वाले संसाधनों और सरकारी धन के अनावश्यक खर्च पर क्या कहेंगे? यह सवाल अभी नहीं तो कभी न कभी उठेगा ही।

हो कहीं भी आग, जलनी चाहिए..

रायपुर के एक शॉपिंग मॉल का यह रेस्टॉरेंट है। गौर से देखें यहां काम करने वाली यह युवती किताब पढ़ रही है। जब ग्राहकों को सर्विस देने के बीच समय मिलता है तो वह बुक पढ़ती रहती है। यह किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी भी कर रही हो, या फिर उसकी दिलचस्पी की कोई किताब हो सकती है। मगर यह उन्हें जरूर सीख दे रही हैं जो पढऩे के नाम कहते हैं, क्या करें समय नहीं मिलता।

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