राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : छत्तीसगढ़ से सीजेआई...?
12-May-2022 5:38 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : छत्तीसगढ़ से सीजेआई...?

छत्तीसगढ़ से सीजेआई...?

छत्तीसगढ़ में पैदा हुए और पले-बढ़े आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस प्रशांत मिश्रा सुप्रीम कोर्ट जजों की नई नियुक्तियों में जगह नहीं बना सके। हाईकोर्ट जजों की ऑल इंडिया रैंकिंग में उनका स्थान इस समय तीसरा है। बीते सोमवार को जिन दो हाईकोर्ट जजों को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया है,  उनमें गोहाटी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुधांशु धूलिया रैंकिंग में 30वें स्थान पर हैं। गुजरात हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जेबी पादरीवाला 49वें पर हैं।

जस्टिस मिश्रा से ऊपर पहली और दूसरी वरिष्ठता क्रमश: सिक्किम के चीफ जस्टिस विश्वनाथ सोमद्दर और मुंबई हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता की है। दोनों का संबंध पश्चिम बंगाल से है। दोनों भी सुप्रीम कोर्ट में लिए जा सकते थे, पर अवसर नहीं मिला।

जानकार कहते हैं कि सामान्य परिपाटी वरिष्ठता क्रम को ध्यान का ही है, पर सदैव यही एक मापदंड लागू नहीं होता है। कई बार सुप्रीम कोर्ट जज ही नहीं बल्कि सीजेआई की नियुक्ति में भी इसका ध्यान रखना जरूरी नहीं समझा जाता। वरिष्ठता के आधार पर नियुक्ति होती तो इस बार जस्टिस सोमद्दर और जस्टिस दत्ता को मौका मिलता। उसके बाद जस्टिस मिश्रा का नंबर आता।

सोमवार को नियुक्ति दो जजों की हुई। उस दिन जजों के सारे पद सुप्रीम कोर्ट में भर गए। पर अगले ही दिन जस्टिस विनीत शरण सेवानिवृत हो गए। अब सुप्रीम कोर्ट में फिर एक जज का पद खाली हो चुका है। अब जब पदों को भरने की प्रक्रिया होगी तब क्या जस्टिस प्रशांत मिश्रा के नाम पर विचार होगा?

न्यायिक क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि इसकी संभावना बनती है। और यह भी है कि यदि नियुक्ति जल्द हो गई तो चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया तक पहुंचने का मौका है।

राजद्रोह लगाने, हटाने का एक वाकया..

राजद्रोह का अपराध दर्ज करने पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद अब सोशल मीडिया पर कुछ ज्यादा खुली सांस लेते हुए लोग दिखाई दे सकते हैं। कांकेर के पत्रकार कमल शुक्ला के खिलाफ 4 साल पहले फेसबुक पर पोस्ट किए गए एक कार्टून की वजह से राजद्रोह का जो मुकदमा दर्ज किया गया था वह अब तक अस्तित्व में है। अब तक न मामले का खात्मा किया गया है ना उनके खिलाफ चार्ज शीट पेश की गई।

पर ऐसे मौके पर सोशल मीडिया से ही जुड़े दो मामले याद आते हैं। दोनों इसी कांग्रेस सरकार के हैं और दोनों ही बिजली विभाग के। 12 जून 2019 को डोंगरगढ़ के मांगीलाल अग्रवाल ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट कर कहा कि इन्वर्टर बनाने वाली एक कंपनी से छत्तीसगढ़ सरकार की सेटिंग हो गई है। इसके लिए पैसे दिए गए हैं। करार के मुताबिक हर दो घंटे में 10 से 15 मिनट बिजली बंद कर दी जाएगी। इससे इन्वर्टर की बिक्री बढ़ेगी।

इसके अगले दिन महासमुंद के दिलीप शर्मा नाम के युवक ने अपने न्यूज पोर्टल वेबमोर्चा पर यह खबर चलाई कि 50 गांवों में 48 घंटे तक बिजली बंद करने का आदेश आया है।

बिजली विभाग की शिकायत पर दोनों ही मामलों में पुलिस ने राजद्रोह का अपराध दर्ज किया। दिलीप को तो उसके घर से आधी रात बनियान-तौलिए में गिरफ्तार कर लिया गया, मांगीलाल को भी उसके गांव मुसरा से पकड़ लिया गया।

दोनों गिरफ्तारियों पर बिजली विभाग और पुलिस की किरकिरी होने लगी। बीजेपी ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरा, कहा- यह बौखलाहट है, अलोकतांत्रिक है, हाहाकार मचा है। अमित जोगी ने मांगीलाल के वीडियो को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए कहा-मुझे भी गिरफ्तार करो।

बात मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ध्यान में आई। उन्होंने तत्काल डीजीपी से बात कर कहा, सोशल मीडिया पर विवादित पोस्ट डालने पर जो धारा लगती है लगाएं, पर बिजली कटौती पर कोई बोल रहा है, भले ही गलत हो, राजद्रोह क्यों लगे?  सीएम के आदेश पर दोनों के ऊपर से राजद्रोह की धारा हटा ली गई।

रेडी टू ईट रेडी नहीं..

रेडी टू ईट मामले में शासन के पक्ष में फैसला आने के बाद बीज निगम पर आंगनबाड़ी केंद्रों में अपना बनवाया हुआ पौष्टिक आहार पहुंचाने की जिम्मेदारी है। अधिकतर जिलों में स्व-सहायता समूहों से कहा गया था कि वे 31 मार्च तक आपूर्ति करें, उसके बाद बीज निगम करेगा। कई समूहों ने बीच में ही आपूर्ति बंद कर दी। इस नाराजगी में कि उनका उत्पाद तो आगे लिया नहीं जाना है। पर बीज निगम ने सप्लाई का नेटवर्क अभी तक बनाया नहीं है। आंगनबाड़ी केंद्रों पर गर्म भोजन तो दिया जा रहा है पर पौष्टिक आहार के पैकेट नहीं पहुंच रहे हैं। बीज निगम को व्यवस्था हाथ में लिए 40 दिन हो चुके हैं। जांजगीर चांपा जिले का ही हाल नमूने के लिए लें, तो यहां अब तक एक भी पौष्टिक आहार पैकेट नहीं बंटा है। निगम चाहता है कि वितरण का काम पहले की तरह स्व सहायता समूह करे, पर महिलाएं इस काम में रुचि नहीं ले रही हैं। उत्पादक को केवल वितरक की भूमिका में रहना शायद पसंद नहीं आ रहा।


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