राजपथ - जनपथ

पहले भुगतान का खतरा
खबर है कि सीएम भूपेश बघेल की सख्ती के चलते सरकारी स्कूलों में खेल सामग्री सप्लाई के नाम पर गड़बड़ी की कोशिशों पर अंकुश लगा है। सुनते हैं कि एक दिग्गज नेता ने कई सप्लायरों से ऑर्डर दिलाने के नाम पर काफी कुछ ले लिया था। एक-दो ने तो बाजार से ब्याज पर रकम लेकर नेताजी को अर्पित कर दी थी।
चर्चा है कि काफी दिनों तक ऑर्डर नहीं मिला तो सप्लायरों ने नेताजी के समक्ष गुहार लगाई। नेताजी झांसा देते रहे कि आबंटन अभी जारी नहीं हुआ है जैसे ही जिलों को आबंटन जारी हो जाएगा, उन्हें सप्लाई ऑर्डर मिल जाएंगे। मगर स्कूल शिक्षा विभाग की एक चिट्ठी से सप्लायरों के हाथ के तोते उड़ गए। चिट्ठी में यह साफ उल्लेखित था कि किन-किन जिलों को कितनी राशि का आबंटन हुआ है। कुल मिलाकर साढ़े 11 करोड़ का आबंटन खेल सामग्री का खरीदी आदेश महीनाभर पहले जारी हो चुका है।
खेल सामग्री खरीदी के लिए स्कूल स्तर पर समिति बनाई गई है। ऐसे में सप्लायरों को ऑर्डर लेने के लिए हर स्कूल जाकर मशक्कत करनी पड़ेगी। यानी जिस काम के लिए उन्होंने नेताजी को अपना सबकुछ अर्पित कर दिया था। वह उन्हें नहीं मिलता दिख रहा है। इधर, जिन सूदखोरों ने ब्याज पर रकम दी थी, वे अब वापसी के लिए दबाव बना रहे हैं। नेताजी का हाल यह है कि वे अब भी दिलासा ही दे रहे हैं। इन पूरी गतिविधियों पर नजर रखने वाले कुछ लोगों का अंदाज है कि नेताजी ने रकम वापस नहीं की, तो कुछ अनहोनी घट सकती है।
मिस्टर 35 परसेंट कायम है
इस बीच सुना है कि स्कूल शिक्षा मंत्री रहे बृजमोहन अग्रवाल और बाद में केदार कश्यप के वक्त स्कूल लाइबे्ररी खरीदी में सरकारी मिस्टर 35 परसेंट रहा अधिकारी अभी तक उतने ही परसेेंट पर कारोबार चला रहा है, न महंगाई से परसेंटेज बढ़ा, न मंदी से घटा!
अमितेश हाशिए पर...
खबर है कि पूर्व मंत्री अमितेश शुक्ल के तौर-तरीकों से प्रदेश के बड़े नेता खफा हैं। अमितेश ने पहले मंत्री नहीं बनाए जाने पर खुले तौर पर नाराजगी जाहिर की थी। बाद में वे खामोश भी हो गए। मगर चर्चा है कि वे दिल्ली दरबार में राज्य के प्रमुख नेताओं की शिकायत करते रहते हैं। शुक्ल बंधुओं के इकलौते वारिस होने की वजह से दिल्ली में अमितेश की बातें सुनी भी जाती है।
अमितेश गांधी जयंती के मौके पर विधानसभा के विशेष सत्र में अलग पोशाक में थे। जबकि सभी सदस्यों को एक ही तरह की पोशाक में आना तय हुआ था। इससे डॉ. चरणदास महंत इतने खफा हो गए कि संसदीय कार्यमंत्री के आग्रह के बाद भी अमितेश को बोलने का मौका नहीं दिया। पार्टी की नई समन्वय समिति में भी अमितेश का नाम गायब है। जबकि सत्यनारायण शर्मा और धनेन्द्र साहू को जगह दी गई है। पार्टी नेता बताते हैं कि चूंकि अमितेश को मंत्री नहीं बनाया गया है इसलिए ताकतवर समन्वय समिति में उन्हें जगह मिलना तय माना जा रहा था। मगर उनके तौर-तरीकों से प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया से लेकर सभी बड़े नेता खफा हैं। यही वजह है कि वे खुद ब खुद हाशिए पर जा रहे है।
पत्रकारिता विवि का सस्पेंस
छत्तीसगढ़ के पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति पर 10 महीनों से सस्पेंस बना हुआ है। वो भी तब जब सरकार ने अपने पसंद के व्यक्ति को कुलपति बनाने के लिए नियमों में आमूलचूल परिवर्तन किया। नए नियमों के मुताबिक बीस साल पत्रकारिता का अनुभव रखने वाले को कुलपति बनाया जा सकता है। नियमों में बदलाव के बाद माना जा रहा था कि किसी वरिष्ठ पत्रकार को वीसी की कुर्सी मिल सकती है। दिल्ली के पत्रकार उर्मिलेश का नाम कुलपति के लिए प्रमुखता से उभरा था।
इसी बीच संघ पृष्ठभूमि से जुड़े और वरिष्ठ पत्रकार जगदीश उपासने के नाम ने सभी को चौंका दिया। इसके अलावा बलदेव शर्मा, डॉ. आशुतोष मिश्रा, दिलीप मंडल, डॉ. मुकेश कुमार और पत्रकार निधीश त्यागी, सुदीप ठाकुर का नाम भी गाहे-बगाहे उछलता रहा है। लेकिन कहा जा रहा है कि जगदीश उपासने की एंट्री से पूरा मामला खटाई में चला गया है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि राज्य सरकार ने अपनी पसंद के उम्मीदवार को वीसी बनाने इतनी कवायद की तो देरी किन कारणों से हो रही है? तो इसका जवाब आता है कि राजभवन ने नियुक्ति को अटका कर रखा है, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि वीसी की नियुक्ति राज्य सरकार के परामर्श से होगी। ऐसे में राजभवन नियमों के खिलाफ जाए और सरकार के साथ टकराव की स्थिति निर्मित करे, इसकी संभावना कम ही दिखाई देती है।
विवि के कुछ जानकारों का कहना है कि सरकार ने जिस खास को कुलपति बनाने के लिए सारी कवायद की, उन्होंने पद लेने से इंकार कर दिया है, जिसके कारण पूरा मामला लटक गया है। हालांकि जगदीश उपासने की मजबूत दावेदारी का प्रमाण सोशल मीडिया में देखने को मिला। उनका नाम आते ही सोशल मीडिया में खिलाफ में जमकर लिखा-पढ़ा गया। जेएनयू विवाद में भी वे खूब सुर्खियों में रहे। ऐसे में राजभवन के चाहने भर से राज्य की कांग्रेस सरकार किसी भी कीमत में उनको वीसी बनाने के लिए तैयार होगी, ऐसा लगता तो नहीं। जगदीश उपासने की मां रजनी उपासने भाजपा की विधायक थीं, और छोटे भाई सच्चिदानंद उपासने भाजपा के पुराने नेता हैं और विधानसभा व अन्य चुनाव भी लड़ चुके हैं जिसमें उनके लिए मीडिया मैनेजमेंट करने के लिए दिल्ली से, इंडिया टुडे से, छुट्टी लेकर जगदीश उपासने रायपुर आकर डेरा डालते थे।
कुल मिलाकर इस पूरे एपिसोड में किरकिरी सरकार की हो रही है, क्योंकि संघ के बैकग्राउंड के कारण जिस तत्परता से परमार को हटाया गया था, वैसी तेजी वो नई नियुक्ति में बिल्कुल भी दिखाई नहीं पड़ती, बल्कि संघ के दूसरे दावेदार के कारण कांग्रेस सरकार में नियुक्ति अटकना आश्चर्यजनक लगता है।
जानकार यह भी बताते हैं कि इस पद पर जिस किसी खास के लिए रास्ते खोले गए थे, उनके इंकार के बाद चाहने वाले अभी भी उन्हें मनाने की कोशिश कर रहे हैं। इस चक्कर में विवि को नए कुलपति के लिए कितना इंतजार करना पड़ेगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन वास्तव में अगर कुलपति के लिए मान मन्नौवल का दौर चल रहा है, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो सरकार के लिए कितना खासमखास है। खैर, विवि के लोग तो इस बात से अपने-आपको तसल्ली दे रहे हैं कि अगर समय लग रहा है तो देर आयद दुरुस्त आयद की तर्ज पर यहां किसी विशेष की एंट्री होना तय है। (rajpathjanpath@gmail.com)