राजपथ - जनपथ
रायपुर में बना एक विश्व रिकॉर्ड...
नगरीय निकाय टिकट वितरण के बीच कईयों की गुटीय निष्ठा भी साबित हुई है। डॉ. चरणदास महंत के करीबी माने जाने वाले बिलासपुर के जिला अध्यक्ष विजय केशरवानी का रूख बदला-बदला सा रहा। वे डॉ. महंत के बजाए सीएम समर्थकों के साथ खड़े दिखे। यही वजह है कि बिलासपुर नगर निगम के टिकट वितरण में महंत समर्थक गच्चा खा गए।
रायपुर के नेताओं ने अपेक्षाकृत होशियारी दिखाई। कुलदीप जुनेजा, विकास उपाध्याय, पंकज शर्मा और प्रमोद दुबे व गिरीश दुबे एक राय होकर आए थे। सब एक-दूसरे का साथ देते नजर आए। प्रमोद दुबे को भगवती चरण शुक्ल वार्ड से प्रत्याशी बनाने की बात आई, तो सबने समर्थन कर दिया। किसी ने भी बाहरी जैसा मुद्दा नहीं बनाया। कुलदीप को अजीत कुकरेजा के नाम पर आपत्ति थी, लेकिन सीएम भूपेश बघेल ने वीटो कर अजीत को टिकट दिलवा दी।
लंबे समय तक कांग्रेस में रहे और अब जोगी कांग्रेस के भीतर या बाहर, पता नहीं कहां खड़े विधान मिश्रा ने कल प्रमोद दुबे के वार्ड चुनाव लडऩे पर प्रतिक्रिया दी, और कहा राजधानी रायपुर से आज प्रमोद दुबे के नाम एक गिनीज रिकॉर्ड बना है। लोकसभा सांसद का चुनाव लडऩे के बाद वार्ड पार्षद का चुनाव लडऩे वाले वे समूचे ब्रम्हांड के प्रथम व्यक्ति बन गए हैं।
सौदान सिंह की मेहरबानी से...
भाजपा की पूर्व मंत्री सुश्री लता उसेंडी और पूर्व विधायक डॉ. सुभाऊ कश्यप को केंद्र सरकार की कमेटियों मेें रखा गया है। दोनों ही बस्तर से हैं। लता को कोल और कश्यप को पेट्रोलियम सलाहकार समिति का सदस्य बनाया गया है। सुनते हैं कि दोनों को सदस्य बनवाने में सौदान सिंह की भूमिका अहम रही है। जबकि विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद पार्टी के भीतर यह चर्चा थी कि सौदान सिंह की पूछ-परख कम हो गई है। मगर नई नियुक्तियों के बाद सौदान सिंह की पकड़ साबित हुई है।
लता और सुभाऊ कश्यप, दोनों लगातार दो चुनाव हार चुके हैं। लेकिन वे पार्टी संगठन के पसंदीदा बने हुए हैं। चुनाव में हार के बाद भी विशेषकर लता के लिए खुशी का क्षण आया है। उनके नाम पर नगरनार में पेट्रोल पंप की लॉटरी निकली है। नगरनार का पेट्रोल पंप कमाई के लिहाज से काफी बेहतर माना जा रहा है। इसके अलावा उनका नाम प्रदेश अध्यक्ष के रूप में प्रमुखता से उभरा है। नए अध्यक्ष के चयन में सौदान सिंह की राय अहम रहेगी।
आखिरी पल की टिकटें बेहतर...
टिकट को लेकर कांग्रेस में विवाद ज्यादा था लेकिन प्रचार भाजपा का ज्यादा हुआ। कांग्रेस नेताओं ने होशियारी दिखाई और नामांकन दाखिले के अंतिम दिन प्रत्याशियों की सूची जारी की। भाजपा एक दिन पहले जारी कर चुकी थी इसलिए टिकट कटने से खफा नेताओं को धरना-प्रदर्शन करने के लिए पर्याप्त समय मिल गया।
एकात्म परिसर में टिकट कटने से नाराज नेता ने दो सौ समर्थकों के साथ डेरा डाल दिया। बाहर से आने वाले नेताओं को परिसर में घुसने में कठिनाई हो रही थी। तनावपूर्ण माहौल के बीच उकसाने वाले नारे लग रहे थे। पुलिस सुरक्षा तो थी नहीं, ऐसे में किसी तरह की अप्रिय स्थिति को टालने के लिए सांसद सुनील सोनी आगे आए और सूझबूझ दिखाते हुए नाराज नेता को बताया कि उन्हें टिकट दी जा रही है। फिर क्या था, तीन घंटे के धरना-प्रदर्शन के बाद माहौल बदल गया। तब कहीं जाकर बाकी प्रत्याशी नामांकन दाखिले के लिए रवाना हो सके।
खुफियागिरी अब गैरजरूरी...
एक वक्त था जब लोगों के मन की टोह लेने की बात होती थी। कुछ लोग इसे मन की थाह लेना कहते थे, कुछ कहते थे कि उसके दिल-दिमाग को भी टटोल लो। लेकिन अब वक्त बदल गया। अब सोशल मीडिया की मेहरबानी से लोग ट्विटर और फेसबुक पर अपने दिल-दिमाग को नुमाइश पर ही बिठा देते हैं, और किसी के मन को टटोलने की जरूरत ही नहीं रह जाती। लोग अपनी पसंद-नापसंद, अपनी हिंसा और अपनी नफरत, इन सबको इतना खुलकर लिखते हैं कि किसी के मन में झांकने की कोई जरूरत ही नहीं रहती। जो लोग सोशल मीडिया पर हैं उनकी उंगलियां दिमाग से अधिक रफ्तार से कुलबुलाती हैं, और दिल से अधिक बेचैन रहती हैं कि अपनी बात कहें। नतीजा यह होता है कि एक वक्त लोगों की जासूसी करने की जरूरत रहती थी, और अब सोशल मीडिया को लेकर यह मजाक बनता है कि अब सरकार ने अपनी खुफिया एजेंसियों का बजट आधा कर दिया है कि लोग तो अपने आपको खुद ही सोशल मीडिया पर उजागर कर रहे हैं, खर्च किस बात का?


