राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : तनातनी घर के भीतर हावी
27-Nov-2025 6:12 PM
राजपथ-जनपथ : तनातनी घर के भीतर हावी

तनातनी घर के भीतर हावी

चर्चा है कि रायपुर शहर जिला भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। जिलाध्यक्ष रमेश सिंह ठाकुर, और मेयर मीनल चौबे के बीच मतभेद दिख रहे हैं। हाल यह है कि संगठन के लोग मेयर के, और पार्षदगण संगठन के कार्यक्रमों से दूरी बना रहे हैं।

मेयर और जिलाध्यक्ष के बीच मतभेद का अंदाजा उस वक्त लगा जब पिछले दिनों प्रदेश भाजपा के क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जम्वाल ने एसआईआर के मसले पर जिले के नेताओं की बैठक ली। इस बैठक में शहर जिला भाजपा के तमाम पदाधिकारी मौजूद थे, लेकिन रायपुर नगर निगम के 27 पार्षद गैरहाजिर रहे।

जम्वाल ने पार्षदों की गैरमौजूदगी को गंभीरता से लिया। इस पर मेयर को सफाई देनी पड़ी कि पार्षद क्यों नहीं आए, इसका पता लगाएंगी। बात खत्म हो गई। इसके बाद 26 नवंबर को संविधान दिवस जोर-शोर से मनाया गया। अंबेडकर चौक पर कार्यक्रम हुआ, इसमें मेयर और तमाम पार्षद मौजूद थे। लेकिन शहर जिला भाजपा के पदाधिकारी गैरहाजिर रहे। कहा जा रहा है कि नगर निगम के इस कार्यक्रम की सूचना जिले के पदाधिकारियों तक नहीं पहुंची। इस वजह से वो नहीं गए।

पार्टी नेताओं के बीच चर्चा है कि शहर जिला भाजपा और मेयर के बीच समन्वय नहीं होने के कारण ऐसी स्थिति बन रही है। कुछ लोग पार्टी के गुटीय राजनीति से जोडक़र देख रहे हैं। मेयर मीनल चौबे को पूर्व मंत्री राजेश मूणत की करीबी मानी जाती हैं, तो शहर जिला भाजपा अध्यक्ष रमेश सिंह ठाकुर, सांसद बृजमोहन अग्रवाल के कट्टर समर्थकों में गिने जाते हैं।

दोनों ही रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव में टिकट के दावेदार थे। ये अलग बात है कि दोनों की दावेदारी को नजरअंदाज कर सुनील सोनी को टिकट दे दी गई। सुनील सोनी, भारी वोटों से चुनाव जीत गए। मगर चुनाव के वक्त टिकट को लेकर खींचतान चल रही थी, वो अब भी जारी है। कुछ इसी तरह की तनातनी पिछले 5 बरस में कांग्रेस शासनकाल में भी देखने को मिली। तब मेयर एजाज ढेबर, और रायपुर पश्चिम विधायक विकास उपाध्याय के बीच बोलचाल तक बंद थी। कांग्रेस संगठन और मेयर-पदाधिकारियों के बीच दूरियां  रही। इसका नतीजा यह रहा कि विधानसभा चुनाव में न सिर्फ खुद विकास उपाध्याय हारे, बल्कि चारों सीट पर करारी हार का सामना करना पड़ा। निकाय चुनाव में कांग्रेस का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा। मेयर एजाज ढेबर वार्ड का चुनाव नहीं जीत पाए। 

कहावत का फोटोशूट

सरकार ने दो सौ यूनिट तक बिजली बिल हाफ कर दिया है लेकिन इसको बढ़ाकर चार सौ यूनिट तक करने की मांग हो रही है। भूपेश सरकार में चार सौ यूनिट तक बिजली बिल हाफ था। बाद में साय सरकार ने घटाकर सौ यूनिट कर दिया, और अब इसको बढ़ाकर दो सौ यूनिट कर दिया गया है। बावजूद इसके सरकार के खिलाफ प्रदर्शन चल रहा है। मगर दुर्ग में कांग्रेस ने जिस अनोखे अंदाज में प्रदर्शन किया, उसकी गूंज प्रदेश भर में हो रही है।

दुर्ग ग्रामीण जिला कांग्रेस के अध्यक्ष राकेश सिंह ठाकुर ने  दो सौ यूनिट तक बिजली बिल हाफ को ऊंट के मुंह में जीरा करार दिया, और विरोध दिखाने के लिए ऊंट ले आए। दरअसल, ठंड में राजस्थान से छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में बंजारा यहां आते हैं, और वो अपने साथ ऊंट लेकर आते हैं। जिलाध्यक्ष ने एक ऊंट मालिक को तैयार कर शहर के बीचोंबीच प्रदर्शन स्थल पर ऊंट को एक किलो जीरा खिलाया, इस दौरान ऊंट के साथ फोटो खिंचाने होड़ मच गई। एक किलो जीरा खिलाने में सात सौ रूपए खर्च हुए, और ऊंट मालिक को एक हजार रूपए दिए गए। मगर जिस तरह इस प्रदर्शन न सुर्खियां बटोरी है, इस पर प्रदेश भर में चर्चा हो रही है।

कांग्रेस के बड़े नेता इस जिला स्तर के प्रदर्शन में मौजूद तो नहीं थे, लेकिन फोन कर जिलाध्यक्ष की खूब तारीफ कर रहे हैं। यह अनोखा प्रदर्शन था जिसने सोशल मीडिया पर काफी पसंद किया जा रहा है। मीडियाकर्मी प्रदर्शनकारी ऊंट के साथ फोटो खिंचाने के लिए जद्दोजहद करते देखे गए।

 

महतारी वंदन की चमक पर ताजा रिपोर्ट

प्रोफेशनल सर्विसेज रिव्यू (पीएसआर) ने हाल ही में एक ताजा लेजिस्लेटिव रिपोर्ट जारी की है। इसमें बताया गया है कि छत्तीसगढ़, बिहार, दिल्ली, कर्नाटक और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों के बजट का कितना हिस्सा मुफ्त नगद बांटने जैसी योजनाओं पर खर्च हो रहा है। झारखंड जैसे राज्य अपने बजट का लगभग 9.7 प्रतिशत, कर्नाटक लगभग 7.4 प्रतिशत, जबकि दिल्ली और महाराष्ट्र सरकार 5 प्रतिशत से अधिक,  खर्च कर रही है। छत्तीसगढ़ का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम, लगभग 3.333 प्रतिशत है। महिलाओं को लुभाने वाली इन योजनाओं के नाम भी आकर्षक हैं- गृह लक्ष्मी योजना, माझी लाडक़ी बहिनी, सुभद्रा, मइया सम्मान, लाडो लक्ष्मी, प्यारी बहना, महतारी वंदन आदि। 12 राज्यों के इस अध्ययन में बताया गया है कि इन योजनाओं पर समग्र खर्च लगभग 1.68 लाख करोड़ रुपये है। इन योजनाओं ने महिलाओं को कितना सशक्त किया, यह अलग विषय है, लेकिन चुनावी जीत की गारंटी जरूर दिखाई देती है।

पीएसआर की रिपोर्ट कहती है कि चुनावी मुफ्तखोरी के वादे राज्यों को आर्थिक रूप से कमजोर कर रहे हैं। 2023 के चुनाव में भाजपा ने महतारी वंदन योजना का वादा किया। हर विवाहित महिला को साल में 12,000 रुपये। कार्यकर्ताओं ने गांव-गांव जाकर फॉर्म भरवाए, जिन पर मोदी की गारंटी का स्टिकर लगा था। वादा पूरा किया गया, पर इसके साथ ही मोदी की गारंटी के अन्य वादे भी याद किए जा सकते हैं, जो अब तक पूरे नहीं हुए- जैसे एक साल के भीतर 50 हजार से अधिक शिक्षकों की भर्ती का वादा, या घरेलू गैस सिलेंडर में रियायत देने का वादा। महतारी वंदन की राशि तो महिलाओं के खातों में पहुंची, लेकिन उसी दौरान घरेलू बिजली बिल में छूट लगभग समाप्त कर दी गई। पहले 400 यूनिट तक आधे खर्च में बिजली मिलती थी, अब 201 यूनिट पर भी पूरा बिल मिल रहा है। दरें भी बढ़ा दी गई हैं। सरकार का दावा है कि ऐसा लोगों को सूर्य घर योजना की ओर प्रेरित करने के लिए किया जा रहा है, पर साल भर में केवल एक लाख आवेदन आए और केवल 14–15 हजार इकाइयों की ही स्थापना हो पाई है। सोशल मीडिया पर कई महिलाएं कहती सुनी जा रही हैं कि महतारी वंदन की राशि चाहे तो बंद कर दें, लेकिन उन्हें बेतहाशा बढ़ते बिजली बिलों से राहत दें। छत्तीसगढ़ ने देख लिया है कि मुफ्त बांटने का पैसा कहीं और से नहीं आता, यह बजट से ही निकाला जाता है। किसी न किसी रूप में सरकार इसे जनता से ही वापस लेती है।

नोटों का गुलदस्ता

बिलासपुर के एक विवाह समारोह में मां-बेटी द्वारा लाया गया नोटों का गुलदस्ता मेजबान, मेहमान दोनों का ध्यान खींच रहा था। परंपरागत फूलों की जगह मुद्रा के गुच्छों से सजाया गया यह तोहफा बदलते रिवाज और उपहार देने के नए चलन को दर्शा रहा था। हालांकि सवाल भी उठते हैं। ज्यादातर लोग आज भी बंद लिफाफे में रुपये देते हैं, प्रदर्शित करके नहीं। 


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