राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : पेड़ के लिए मां का विलाप
12-Oct-2025 7:22 PM
राजपथ-जनपथ : पेड़ के लिए मां का विलाप

पेड़ के लिए मां का विलाप

देओला बाई ने बीस साल पहले अपने हाथों से पीपल का एक पौधा लगाया था। अब यह एक विशाल पेड़ हो चुका था किसी कारोबारी ने कटवा दिया। पेड़ के कट जाने पर देओला ऐसे बिलखने लगी, जैसे कोई अपना सगा छिन गया हो। यह चीख सिर्फ एक पेड़ की वजह से नहीं निकल रही है, बल्कि हमारी उस संवेदना के लिए है जिसे विकास के लिए धीरे-धीरे कुंद किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ की विडंबना है कि आदिवासियों और ग्रामीणों ने सदियों से जंगलों को मां समझकर बचाया, आज वही लोग पेड़ों के लिए न्याय मांगते भटक रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ के सर्रागोंदी गांव में पीपल पर हुए अत्याचार का यह बुजुर्ग महिला महसूस कर रही है। शायद हमें आपको भी इस तस्वीर को देखने से थोड़ी तकलीफ महूसस हो। देओला बाई का यह विलाप बताता है कि गांवों में पेड़ केवल ऑक्सीजन देने वाली मशीन नहीं, बल्कि उनके परिवार के सदस्य की तरह होते हैं। 

पर्चियों का दौर

बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर पं धीरेन्द्र शास्त्री चार दिनों के प्रवास के बाद रायपुर से विदा हो चुके हैं। मगर उनके दरबार में हुए शंका-समाधानों पर अब भी बात हो रही है।  पं शास्त्री दरबार में पर्ची लिखकर भूत, भविष्य, और वर्तमान बता कर लोगों चौंकाते रहे हैं। इस पूरे आयोजन में जमीन कारोबारी बसंत अग्रवाल की भूमिका अहम रही है।

बसंत अग्रवाल अवैध प्लाटिंग, और कई अन्य आरोप घिरे हैं। बसंत के खिलाफ आरोपों को फेसबुक पर साझा कर कांग्रेस प्रवक्ता आरपी सिंह ने चुटकी ली कि बागेश्वर बाबा इसकी पर्ची कब निकालेंगे?

पं शास्त्री ने बसंत अग्रवाल की पर्ची निकाली है या नहीं, यह तो पता नहीं। लेकिन ईओडब्ल्यू-एसीबी ने आरपी सिंह की पर्ची जरूर निकाल दी है। कोल स्कैम केस में आरपी सिंह का नाम भी सामने आया है। करीब दो साल पहले ईडी ने उनके यहां रेड की थी। कोल स्कैम के 1 करोड़ 13 लाख की राशि आरपी सिंह से जोड़ा गया है।

हालांकि आरपी सिंह कोल कारोबार से किसी तरह से जुड़े नहीं थे, लेकिन कई ऐसे लोगों के नाम हैं, जो कोल स्कैम के हितग्राहियों में रहे हैं। जांच एजेंसी ने लेनदेन के वाट्सएप चैट साक्ष्य के रूप में अपने पूरक चालान में पेश किए हैं। इसमें कितना दम है, ये तो अदालत के फैसले के बाद ही साबित हो पाएगा, लेेकिन आरपी सिंह के ‘पर्ची’ की काफी चर्चा हो रही है।

 

भारतमाला और भ्रष्टाचारमाला

रायपुर-विशाखापटनम भारतमाला परियोजना का निर्माण अंतिम चरण में है। इस परियोजना के पूरा होने पर रायपुर से विशाखापटनम के बीच की दूरी करीब 126 किमी कम हो जाएगी, और यात्रा का समय भी कम होकर 6 से 7 घंटे रह जाएगा। खास बात ये है कि यहां एक सिक्स लेन टनल बनाया जा रहा है, जो कि पूर्ण हो चुका है। यह छत्तीसगढ़ की पहली टनल है, और करीब पौने तीन किमी की यह टनल कांकेर के आखिरी गांव से शुरू होकर कोंडागांव जिले में निकलती है। इतनी बेहतर परियोजना होते हुए भी जमीन मुआवजा घोटाले को लेकर ज्यादा चर्चा हो रही है, और इससे केन्द्र सरकार काफी खफा हैं।

बताते हैं कि इस परियोजना में घोटाले की कई शिकायत हुई है, और इससे केन्द्रीय सडक़-परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को भी प्रदेश के कई नेताओं ने अवगत कराया है। ईओडब्ल्यू-एसीबी प्रकरण की जांच कर रही है, और चर्चा है कि जांच से एनएचएआई (राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण) संतुष्ट नहीं है। वजह यह है कि एनएचएआई के तीन अधिकारियों की घोटाले में संलिप्तता बताई गई है। जांच एजेंसी ने कार्रवाई की अनुमति के लिए केंद्र को पत्र भी लिखा है। जिन जमीन कारोबारियों पर घोटाले के आरोप थे, वो सभी जमानत पर रिहा चुके हैं। राज्य सरकार प्रशासनिक जांच भी करा रही है, जिसमें ज्यादा दम नहीं दिख रहा है।

ईओडब्ल्यू-एसीबी सोमवार को प्रकरण 10 हजार पन्ने का चालान पेश करने जा रही है। इन सबके बावजूद जांच में अब केंद्र की एजेंसी की एंट्री हो सकती है। शिकायतकर्ताओं का मानना है कि प्रदेश के कई ताकतवर लोग इसमें संलिप्त हैं। ऐसे में निष्पक्ष जांच के लिए सीबीआई को सौंपा जाना चाहिए। देखना है केन्द्र सरकार इस मसले पर आगे क्या कुछ करती है।

डिजिटल इंडिया का एनालॉग चालान

(एक आम नागरिक की डिजिटल दास्तान)

मैंने गाड़ी खरीदी — सरकार के रिकॉर्ड में दर्ज।

ड्राइविंग लाइसेंस लिया — सरकार के रिकॉर्ड में दर्ज।

पॉल्यूशन सर्टिफिकेट लिया — सरकार के रिकॉर्ड में दर्ज।

इंश्योरेंस कराया — वो भी रिकॉर्ड में दर्ज।

टैक्स दिया — वो तो रिकॉर्ड का रिकॉर्ड है!

अब जरा सोचिए, सरकार के दफ्तर में कंप्यूटर हैं, इंटरनेट है, सैटेलाइट तक हैं, और ऊपर से हर तीसरे दिन भाषण होता है — ‘पूरा भारत डिजिटल हो गया है।’

लेकिन जैसे ही मैं सडक़ पर निकलता हूँ, चौक-चौराहे पर कोई खाकी वर्दी वाला रोककर पूछता है —

‘लाइसेंस दिखाओ, पॉल्यूशन दिखाओ, इंश्योरेंस दिखाओ!’

अब मैं कहूँ — भाई, ये सब तुम्हारे कंप्यूटर में है,

तो वो कहे — ‘हाँ, पर सिस्टम डाउन है।’

सिस्टम डाउन — ये वो नया ब्रह्मवाक्य है जिससे डिजिटल इंडिया चलता है!

हमारे टैक्स से सरकार के हर दफ्तर में कंप्यूटर हैं,

पर उनका इस्तेमाल सिफऱ् सॉलिटेयर खेलने और फेसबुक स्क्रॉल करने में होता है।

डेटा वहीं पड़ा रहता है, जैसे पुराने जमाने में ‘फाइलें लंबित’ रहती थीं।

बस अब नाम बदल गया —

पहले कहा जाता था ‘फाइल गुम हो गई’,

अब कहा जाता है ‘सर्वर कै्रश हो गया।’

सरकार को ये समझना चाहिए कि अगर सारे रिकॉर्ड उनके पास हैं —

तो ट्रैफिक पुलिस का काम ‘शिकारी’ वाला नहीं होना चाहिए।

उसे बस ये देखना चाहिए कि मैं ट्रैफिक नियम तो नहीं तोड़ रहा।

बाक़ी सब डेटा के बल पर अपने ऑफिस में ही चेक किया जा सकता है।

पर नहीं — भारत में डिजिटल इंडिया का मतलब है —

आपके सारे कागज़ ऑनलाइन हैं,

लेकिन अधिकारी को तब तक भरोसा नहीं जब तक आप प्रिंटआउट ना दिखा दें।

कभी-कभी तो लगता है कि ये ‘डिजिटल इंडिया’ नहीं,

‘डिजिटल ढोंग इंडिया’ है।

जहाँ हर काम का ऐप है,

पर हर ऐप के बाद एक लाइन भी —

‘सर्वर रिस्पॉन्ड नहीं कर रहा, कृपया बाद में कोशिश करें।’

अब बस यही उम्मीद है कि जिस दिन सरकार सचमुच डिजिटल हो जाएगी,

उस दिन चौक पर कोई सिपाही यूँ नहीं कहेगा —

‘गाड़ी साइड में लगाओ, कागज दिखाओ।’

बल्कि मोबाइल में टाइप करेगा —

‘वाह! इस आदमी के सारे डॉक्युमेंट अपडेट हैं।’

तब शायद हम भी कह सकेंगे —

‘अब सचमुच भारत डिजिटल हुआ है।’

(सोशल मीडिया की पोस्ट, chatgpt से रूपांतरित)

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