राजपथ - जनपथ
मेहमाननवाजी से दूर रहें
कांग्रेस ने जिला अध्यक्षों की नियुक्ति के लिए नया तरीका अपनाया है। इसके लिए पार्टी ने संगठन सृजन कार्यक्रम शुरू किया है। कार्यक्रम के तहत पर्यवेक्षक जिलों में जाएंगे, और फिर जिला अध्यक्ष के लिए छह नामों का पैनल हाईकमान को भेजेंगे। पार्टी इसमें से किसी एक नाम पर मुहर लगाएगी।
वैसे तो अविभाजित मध्यप्रदेश, और फिर छत्तीसगढ़ में जिला अध्यक्ष स्थानीय बड़े नेताओं की मर्जी से ही तय होते रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में रायपुर-दुर्ग संभाग में पूर्व सीएम भूपेश बघेल, बस्तर में कवासी लखमा, मोहन मरकाम, और प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज व सरगुजा संभाग में टीएस सिंहदेव और बिलासपुर संभाग में डॉ. चरणदास महंत के सुझाव को ही महत्व मिलता रहा है। मगर अब ऐसा नहीं होगा। जिला अध्यक्ष के चयन में जिले कार्यकर्ताओं की राय को महत्व मिलेगा,यह दावा किया जा रहा है। हाईकमान ने ओडिशा, मध्य प्रदेश, झारखंड, और अन्य राज्यों के 17 सीनियर नेताओं को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा गया है। इन नेताओं में ओडिशा के सांसद सप्तगिरि उल्का, आरसी खुंटिया छत्तीसगढ़ में संगठन का काम देख चुके हैं। पर्यवेक्षकों में पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय, महाराष्ट्र सरकार के पूर्व मंत्री नितिन राउत, और उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू भी हैं। ये पर्यवेक्षक, जिलों में जाकर कार्यकर्ताओं से रायशुमारी करेंगे।
पर्यवेक्षकों के जिलों में ठहरने की व्यवस्था पीसीसी करेगी। खास बात ये है कि पर्यवेक्षक को स्थानीय बड़े नेताओं की मेहमान नवाजी से दूर रहने की हिदायत दी गई है। पर्यवेक्षक स्वतंत्र रूप से कार्यकर्ताओं से चर्चा कर पैनल तैयार करेंगे। जिला अध्यक्षों के चयन में बड़े नेताओं की चलती है या नहीं, यह देखना है।
हिसाब-किताब चलते रहता है
हालांकि यह उपक्रम सरकारी विभागों में नया नहीं पुराना है। वह यह कि सहकर्मी यदि किसी अहम पद पर है तो उसके खिलाफ माहौल बनाकर कुर्सी से हटने के बाद ही दम लिया जाए। इसके लिए विरोधी बेनामी शिकायतों के साथ जातिगत, दलीय विचारधारा समेत कामकाज के तरीके पर शक भी पैदा करने से नहीं चूकते। फिर इसमें महिला पुरुष भी नहीं देखा जाता।
विभागीय अधिकारी, बजट, स्थापना, तबादले जैसे सेक्शन के अहम पदों पर महिलाओं को इसलिए नियुक्त करते हैं कि काम गोपनीय, ईमानदारी से हो। राज्य मंत्रालय में यह काम देख रही कुछ महिला कर्मचारी ऐसी शिकायतों से परेशान हैं। हाल में विरोधी ने एक ऐसी ही बेनामी शिकायत कर दी। वह भी भाजपा के एक ऐसे नेता के नाम से, जो मंडल अध्यक्ष जैसे इतने छोटे पद पर कभी रहा ही नहीं। शिकायतकर्ता ने जोश में होश खो दिया। इस हाई प्रोफाइल नेता को इस पद का मंडल अध्यक्ष लिख दिया। यह शिकायत, उस सहकर्मी ने किया जो अर्से से मलाईदार स्थापना विंग पर नजर गड़ाए हुए है।
ऐसे ही पिछले दिनों एक मंत्रालय अटैच कॉलेज कर्मी के साथ हुआ। एक अवर सचिव ने एक पत्रकार के नाम से मिली शिकायत पर महिला कर्मी को वापस कालेज लौटा दिया। हालांकि यह मामला, पहले वाले से कुछ अलग है। इससे मंत्रालय अटैच लोगों की मूल कार्यस्थल पर वापिसी के कवायद शुरू की गई।
दिवाली, और सरकारी गिफ्ट

केंद्र सरकार ने सभी मंत्रालयों और विभागों से अब दीपावली या अन्य त्योहारों पर गिफ्ट या इससे संबंधित आइटम पर खर्च की परंपरा को बंद करने के लिए कहा है। वित्त मंत्रालय ने कैबिनेट सचिव के साथ ही सभी मंत्रालयों और विभागों के वित्तीय सलाहकार और सेक्रेटरी को भी पत्र भेजा है।
डीओपीटी के जॉइंट सेक्रेटरी पीके सिंह का यह पत्र सेक्रेटरी (एक्सपेंडिचर) के अप्रूवल से जारी किया गया है।यह आदेश भारत सरकार के आर्थिक सलाहकार डा सुमंत्र पाल की ओर से जारी आदेश के बाद आया है। उन्होंने कहा था कि गिफ्ट देने की परंपरा से सरकार का खर्च बढ़ता है।
पब्लिक रिसोर्स का उपयोग न्यायपूर्ण तरीके से हो, इसके लिए यह कदम उठाना जरूरी है। उन्होंने किसी भी त्योहार पर गिफ्ट के लेनदेन को रोकने के लिए कहा था। वैसे तो इस आदेश का राज्यों से लेना देना नहीं है लेकिन यहां के अफसरों में काफी चर्चा हो रही है। जो सहमत हैं वो कह रहे फिजूलखर्ची रूकेगी, जो नहीं है वो कह रहे एक बूंद निकाल लेने से सागर सूख नहीं जाएगा। ऐसे आदेशों का पालन राज्यों में भी होता है यदि उसमें आल स्टेट्स चीफ सेक्रेटरी लिखा हो। इसमें ऐसा कुछ नहीं लिखा है।
बावजूद इसके, छत्तीसगढ़ में आदेश का पालन हो तो कई विभागों में नेता, अफसर, अन्य गणमान्य लोगों को दिवाली गिफ्ट के नाम पर होने वाले लाखों के वारे न्यारे पर रोक लगेगी। साथ इसकी जरिए पुराने अनाप शनाप खर्च को एडजस्ट नहीं कर पाएंगे। दो दशक पहले छत्तीसगढ़ में ऐसे ही सरकारी गिफ्ट शुरू हुए थे। हर साल बजट पारित होने पर वित्त मंत्री की ओर से सभी 90 विधायकों, अफसरों को यह गिफ्ट दिया जाता था। एक बारगी खबर क्या लीक हुई अब यह घोषित रूप से बंद और अघोषित रूप से घर पहुंच सेवा जारी है।
नेता के जश्न में सिग्नल का क्या काम है?

यातायात नियमों का पालन करने के लिए रोजाना तरह-तरह के चालान करने वाली ट्रैफिक पुलिस और नगर को साफ-सुथरा रखने के लिए अभियान चलाने वाले नगर निगम में बैठे अफसर तब आंख मूंद लेते हैं, जब ऐसी बाधा किसी रसूख वाले जनप्रतिनिधि के समर्थकों की ओर डाली गई होती हो। विधायक मंत्री का करीबी बताने का सबसे आसान तरीका होता है, सडक़ों को पोस्टर बैनर से पाट देना। बिलासपुर के विधायक पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल का हाल ही में जन्मदिन था। उनके समर्थकों ने यही किया। शहर में जगह-जगह बड़े-बड़े पोस्टर, होर्डिंग उनके अभिनंदन के लिए लगाए गए। ऐसा करते समय उन्होंने इस बात की भी परवाह नहीं की, कि बीच चौराहे का सिग्नल उनके पोस्टर से के पीछे छिप गया है। यह पोस्टर कई दिन से लगा हुआ है। जिस दिन जन्मदिन मनाया गया, उसी के आसपास ट्रैफिक पुलिस को हाईकोर्ट ने फटकार लगाई थी, जब कारों के काफिले के साथ हाईवे पर उत्पात मचाने वाले युवकों के साथ पुलिस ने नरमी बरती थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि गरीब लोगों का, आम लोगों का चालान काटा जाता है पर रसूखदारों को छोड़ दिया जाता है।


